व्यापार का संसार लेन-देन पर ही टिका है. कभी किसी को उधार देना पड़ता है, तो कभी किसी से लेना भी पड़ता है. यही कारोबार की प्रकृति है. खासकर सोने-चांदी के व्यवसाय में, जहां उधारी का सिलसिला चलता ही रहता है. चाहो या न चाहो, कई बार परिस्थितियां ऐसी बन जाती हैं कि बिना उधार के व्यापार पर असर पड़ने लगता है.लेकिन इसी के साथ मन को यह चिंता सताती है कि अगर जीवन के अंत तक कोई लेन-देन बाकी रह गया तो क्या होगा?
यही सवाल एक भक्त ने प्रेमानंद महाराज जी से पूछा. उसने कहा कि महाराज जी, राधा रानी की कृपा से सब कुछ है, व्यवसाय अच्छा चलता है, पर उधार-लेनदेन के इस चक्र से मन को शांति नहीं मिलती. सुना है कि अगर किसी का कर्ज बाकी रह गया तो आत्मा को फिर जन्म लेना पड़ता है. ऐसे में भगवत् प्राप्ति कैसे होगी?
बकाया चुकाना कर्तव्य है
महाराज जी ने जवाब देते हुए कहा कि व्यापार में लेन-देन कागजों में लिखा जाता है न? तो फिर यह बात केवल तुम्हारे तक सीमित नहीं है. अगर तुम्हारा परिवार है तो तुम्हारी संतानें भी होंगी, जिनका कर्तव्य है कि तुम्हारे जाने के बाद जो भी बकाया रह गया हो, उसे पूरा करें. प्रेमानंद महाराज ने आगे कहा कि इसलिए तो शास्त्रों में कहा गया है कि पिता के ऋण का भुगतान पुत्र करे तो पिता का उद्धार होता है. इसलिए याचना की जाती है कि हमारे संतन हों. संतान का सबसे बड़ा धर्म यही है कि वह अपने माता-पिता के अधूरे कार्य पूरे करे. चाहे वह ऋण का भुगतान हो, या पुण्य का कार्य ही क्यों ना हो.
राधा रानी में रखें श्रद्धा
महाराज जी ने आगे समझाया कि संसार में लेन-देन तो चलता ही रहता है. आज जरुरत है तो किसी से उधार ले लिया, कल कमाकर चुका दिया. इसको लेकर इतना भय करने की आवश्यकता नहीं है. राधा रानी की कृपा में जो श्रद्धा रखेगा, उसका कोई कार्य अधूरा नहीं रहेगा. अगर आपकी संतान अच्छी है, तो वह अपने पिता का ऋण चुका कर न केवल उसका उद्धार करेगी बल्कि यह कार्य भी भगवान की पूजा के समान होगा.
व्यापार में ईमानदारी जरूरी
प्रेमानंद महाराज ने आगे कहा कि भगवत प्राप्ति किसी एक कार्य से नहीं होती, बल्कि जीवन के हर कर्म को भक्ति के भाव से करने से होती है. तुम अपना व्यापार ईमानदारी से करो, किसी का धन मत रखो, और अपनी संतान को भी यही सीख दो कि सत्य और धर्म के मार्ग पर चलें. बाकी जो अधूरा रह जाएगा, वह राधा रानी की कृपा से पूरा हो जाएगा. महाराज जी के ये जवाब हमें सीख देते हैं कि कि व्यापार केवल धन कमाने का साधन नहीं, बल्कि एक साधना है, जिसमें ईमानदारी, श्रद्धा और भक्ति से किया गया हर कर्म भगवान तक पहुंचता है.
---- समाप्त ----

4 hours ago
1






















English (US) ·