असरानी की एक्टिंग का असर देखना हो तो सिर्फ उनकी कॉमेडी नहीं, ये किरदार देखना

3 hours ago 1

रौशनी के त्यौहार दिवाली पर जब घर-घर दीयों की कतारें सजी थीं, तब हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का एक ऐसा चिराज बुझ गया जिसने 50 सालों से ज्यादा बड़े पर्दे को रौशन किया. फिल्म फैन्स की कई पीढ़ियों को एंटरटेन करने वाले असरानी ने सोमवार को, दिवाली के दिन इस संसार को अलविदा कह दिया. 

असरानी साहब की फिल्मी विरासत के लिए शब्द शायद ही कभी पूरे पड़ें. मगर इंडियन सिनेमा के सच्चे फैन्स के लिए वो ऐसे आइकॉन थे, जिनके पर्दे पर आते ही थिएटर्स का माहौल बदल जाता था. ऐसा अधिकतर उनकी कॉमेडी की वजह से हुआ. 'शोले' के एवरग्रीन जेलर का किरदार हो, या प्रियदर्शन की तमाम मॉडर्न फिल्मों में कन्फ्यूजन का चेहरा बने असरानी... फिल्में चलें ना चलें, असरानी के सीन्स के बीच सीट छोड़ने का खयाल किसी को आ ही नहीं सकता था. 

असरानी भले ही आज लोगों को अपनी कॉमेडी की वजह से याद रहते हों, उन्होंने हर तरह के किरदारों को यादगार बनाया था. उनके निभाए सपोर्टिंग किरदारों की अपनी एक बड़ी विरासत है, इनमें वो किरदार भी खूब हैं जिन्हें 'सीरियस' एक्टिंग के चश्मे से देखा जाता है. 

असरानी के 'गंभीर' किरदार
सपोर्टिंग किरदारों में असरानी के दमदार काम का एक सबूत ये है कि गुलजार, बासु चैटर्जी और ऋषिकेश मुखर्जी जैसे बेहतरीन डायरेक्टर्स ने उनके साथ खूब काम किया. इन डायरेक्टर्स ने अपनी फिल्मों में उन्हें वो किरदार दिए जो जिंदगी के अलग-अलग पहलुओं और संघर्षों का चेहरा होते थे. 

ऋषिकेश मुखर्जी की 'सत्यकाम' (1969) अपने आदर्शवादी फलसफे से दुनिया नापने निकले धर्मेंद्र के किरदार की कहानी थी. मगर इस फिल्म में असरानी ने पीटर का किरदार निभाया था. असरानी के एक्सप्रेशंस के खजाने को मुखर्जी ने फिल्म की टोन सेट करने वाले गाने 'जिंदगी है क्या' में बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल किया था. उस दौर में असरानी ने कई किरदारों में ये दिखाया कि उनके पास भले एक्सप्रेशंस का खजाना हो, मगर वो इसे खर्च करने में किफायत बरतना भी जानते हैं. 

'खून पसीना' में कहानी के कनफ्लिक्ट का महत्वपूर्ण हिस्सा थे असरानी (Photo: Screengrab- Youtube/Goldmines Bollywood)

1971 में आई आइकॉनिक फिल्म 'मेरे अपने' में श्याम (विनोद खन्ना) और छेनू (शत्रुघ्न सिन्हा) के लीड किरदार लोगों को आज भी याद रहते हैं. मगर छेनू की गैंग में रघुनाथ ही वो लड़का था, जिसके अफेयर के चक्कर में श्याम की गैंग के साथ क्लेश शुरू हुआ था. गुलजार की इस फिल्म में असरानी को देखकर शायद ही कोई कह सके कि ये लड़का आगे चलकर बॉलीवुड का आइकॉनिक कॉमेडियन कहलाएगा. गुलजार की ही 'कोशिश' (1972) में असरानी ने एक लालची भाई का किरदार निभाया था. जिसकी वजह से उसकी गूंगी-बहरी बहन के बच्चे की मौत हो जाती है. 

शक्ति सामंत की प्लेटिनम जुबली 'अजनबी' (1974) में भी असरानी सपोर्टिंग रोल में ही हैं. मगर यहां वो फिल्म के ड्रामा का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. फिल्म में जीनत अमान को उसके महत्वाकांक्षी सपने पूरे करने का रास्ता असरानी ने ही दिखाया था. इस फिल्म में असरानी की एक्टिंग तो दमदार थी ही. मगर असरानी का फैशनेबल, स्टाइलिश अवतार किसी भी तरह फिल्म के हीरो और उनके रियल लाइफ दोस्त राजेश खन्ना से कम नहीं था.

90s के बाद कॉमेडियन के तौर पर लोगों को याद रहने वाले असरानी ने वैसे तो कई फिल्मों में महत्वपूर्ण गंभीर किरदार निभाए. मगर 'खून पसीना' (1977) में किसान मोहन का रोल बहुत लोगों को याद रहता है. मोहन एक ऐसा फार्म मालिक था जो बाहुबल के दम पर रौब झाड़ने वाला जमींदार नहीं था, बल्कि एक सीधा-सादा किसान था. मगर उसकी पत्नी (अरुणा ईरानी) उसकी शराफत को उसकी कमजोरी मानती थी. अपनी पत्नी की उम्मीद पर खरा उतरने के लिए वो जो कुछ करता है, उसमें उसकी जान चली जाती है. 'खून पसीना' के टाइटल ट्रैक में चाकू लेकर टाइगर (अमिताभ बच्चन) की हत्या करने के लिए जाते असरानी की एक्टिंग इस फिल्म में देखने लायक थी. 

रोमांस और खलनायकी का भी चेहरा रहे असरानी
कॉमेडी के अलावा जब असरानी की दमदार एक्टिंग की बात होती है तो उनके कई सपोर्टिंग किरदारों के उदाहरण मिल जाते हैं. मगर कई फिल्मों में उनके सपोर्टिंग किरदार रोमांटिक भी थे. असरानी को रोमांटिक एक्सप्रेशंस के साथ देखने के लिए सबसे बेस्ट है फिल्म 'निकाह' (1982) का गाना 'चेहरा छुपा लिया है'. बी.आर. चोपड़ा की इस फिल्म की शुरुआत में ही ये गाना असरानी पर फिल्माया गया है. इस रोमांटिक कव्वाली में असरानी का जलवा देखने लायक है. 

'निकाह' फिल्म की कव्वाली में देखने लायक है असरानी का रंग (Photo: Screengrab- Youtube/NH Bollywood Songs)

असरानी की रेंज ड्रामा और कॉमेडी में ही नहीं थी, उन्होंने नेगेटिव किरदार भी निभाए हैं. जैकी श्रॉफ की आइकॉनिक फिल्म 'तेरी मेहरबानियां' (1985) में असरानी ने विलेन्स में से एक बनवारी लाल का किरदार निभाया था. उनका ये किरदार जैकी श्रॉफ की मौत का कारण बनता है और लीड महिला किरदार का रेप करता है. सदाशिव अमरापुरकर के सरदारीलाल के साथ, बनवारी लाल उस जगह पर आतंक का चेहरा था जहां फिल्म की कहानी सेट थी.

70s और 80s के दशक में असरानी ने जो कॉमेडी किरदार किए वो अधिकतर फिल्मों में भले कॉमिक रिलीफ के लिए थे, मगर कहानी का महत्वपूर्ण हिस्सा थे. ये किरदार पूरी फिल्म में सिर्फ कॉमेडी ही नहीं करते थे बल्कि ड्रामा और टेंशन का भी हिस्सा बनते थे. मगर 90s के दशक में आते-आते कॉमेडी किरदार सिर्फ एक रंग में ही दिखने लगी. हालांकि, असरानी का काम तब भी फिल्मों को रंग देता रहा. मगर उन्होंने अपनी तरफ से किरदारों में गंभीरता खोजना पूरी तरह जारी रखा था. 

'क्योंकि' में असरानी ने निभाया था एक पागल का किरदार ((Photo: Screengrab- Youtube/Ultra Bolllywood)

इसका एक उदाहरण सलमान खान की फिल्म 'क्योंकि' (2005) है. इस फिल्म में सलमान एक मेंटल हॉस्पिटल में हैं. उन्हीं के साथ एक बूढ़ा किरदार भी है, मनमोहित. असरानी ने ये किरदार निभाया था, जो अपनी प्रॉपर्टी के लिए लड़ते अपने बच्चों से तंग है. मनमोहित वैसे तो पूरी तरह ठीक है, मगर गृह-क्लेश से बचने के लिए पागलपन का नाटक करके हॉस्पिटल में है. इस रोल में आपको असरानी की एक्टिंग की पूरी रेंज एकसाथ दिख जाती है.

---- समाप्त ----

Read Entire Article