अमेरिका को जो नई खुफिया जानकारी हाथ लगी है, उसके मुताबिक, इजरायल ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला करने की तैयारी कर रहा है. सीसीएन की एक रिपोर्ट में कई अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि 'ईरान के परमाणु ठिकानों पर इजरायली हमले की संभावना हाल के महीनों में काफी बढ़ गई है.'
यह खबर ऐसे वक्त में आई है जब ट्रंप प्रशासन ईरान के साथ एक समझौता वार्ता कर रहा है जिसमें ईरान पर लगे प्रतिबंधों को हटाने के बदले में अमेरिका उसे अपने परमाणु प्रोग्राम को रोकने के लिए राजी करने की कोशिश कर रहा है. जानकारी के मुताबिक, अगर अमेरिका ईरान को अपना परमाणु प्रोग्राम रोकने के लिए राजी नहीं करा पाता तो इजरायल ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला कर सकता है.
ईरान ने 1968 में परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर किया और 1970 में इसकी पुष्टि की. लेकिन 1979 में सत्ता संभालने वाली मौजूदा इस्लामिक सरकार इस समझौते का विरोध करती है. ईरान की सरकार का कहना है कि यह ईरान की पुरानी राजशाही ने किया था और वो इससे सहमत नहीं है. ईरान परमाणु अप्रसार संधि से बाहर नहीं निकला है लेकिन 2000 के दशक से ईरान ने एक परमाणु ऊर्जा उत्पादन प्रोग्राम शुरू किया है.
कई लोगों का मानना है कि इस प्रोग्राम के जरिए वो परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर रहा है जैसा कि भारत, पाकिस्तान और इजरायल ने किया था. इन देशों ने नागरिक परमाणु प्रोग्राम के नाम पर ही परमाणु हथियार विकसित कर लिए थे. ईरान के बारे में माना जाता है कि वह परमाणु हथियारों के लिए दोहरे रास्ते अपना रहा है- असैन्य परमाणु प्लांट्स से प्लूटोनियम निकालना और ईरान से ही निकाले गए यूरेनियम का संवर्धन करना.
किसी भी अरब देश को परमाणु हथियार नहीं बनाने देना चाहता इजरायल
इजराइल ने 1960 के दशक में परमाणु हथियार बनाए थे. भारत और पाकिस्तान की तरह, इसने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया है. इजरायल ने 1948 में अपनी आजादी के बाद से अपने पड़ोसी अरब देशों से तीन लड़ाइयां की है और उन्हें हराया है.
परमाणु हथियार बनाने के बाद से ही इजरायल ने पूरी कोशिश की है कि किसी भी अरब देश के पास परमाणु हथियार न हो जिससे उसके अस्तित्व को खतरा हो. इसने 1981 में इराक और 2007 में सीरिया के खिलाफ हवाई हमले किए ताकि उनके परमाणु रिएक्टरों को नष्ट किया जा सके. इजरायल का मानना था कि ये देश परमाणु हथियार बना सकते हैं.
1979 की क्रांति के बाद से, ईरानी सरकार ने सीधे तौर पर इजरायल को निशाना बनाया है और ईरान के नेताओं ने लगातार ईरान को नक्शे से मिटा देने की धमकी दी है. इजरायल ने 1980 के दशक से एक सीक्रेट प्रोग्राम शुरू किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ईरान को परमाणु बम न मिले. इसके तहत इजरायल ने ईरान के परमाणु हथियार वैज्ञानिकों की हत्या की और कंप्यूटर वायरस का इस्तेमाल कर रिएक्टर सेंट्रीफ्यूज को नष्ट कर दिया है.
इजरायल ने अभी तक अलग-अलग कारणों से ईरानी परमाणु हथियार ठिकानों पर सीधे हमला नहीं किया है. लेकिन हाल की घटनाओं में देखा गया है कि इजरायल दूर स्थित अपने विरोधियों को भी निशाना बना रहा है जिसे देखते हुए संभावना बढ़ जाती है कि वो ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बना सकता है.
8 अक्टूबर 2023 से इजरायल ने कई ईरानी प्रॉक्सी से लड़ाई लड़ी है- गाजा पट्टी में हमास, दक्षिणी लेबनान में हिजबुल्लाह और यमन में हूती विद्रोहियों के खिलाफ उसने कई लड़ाइयां लड़ी. ईरान ने इजरायल के साथ अप्रत्यक्ष तौर पर लड़ाई के लिए अपने प्रॉक्सी से घेरा था. लेकिन 2024 में दोनों आमने-सामने आ गए. इजरायल और ईरान ने लड़ाकू विमानों, ड्रोन और मिसाइलों के जरिए एक-दूसरे के क्षेत्रों पर हमला किया. इससे अब यह संकेत मिलता है कि ईरान के परमाणु हथियार प्रोग्राम के खिलाफ इजरायल का हमला संभव है.
लेकिन कुछ तकनीकी और भौगोलिक मुद्दे हैं जिनके कारण ईरान के परमाणु ढांचे पर इजरायली हमला मुश्किल हो सकता है-
1. ईरान का परमाणु हथियार ढांचा अंडरग्राउंड है:
ईरान ने सीरिया और इराक के खिलाफ इजरायल के परमाणु हमलों से सबक सीखा है. ये दोनों हमले सिंगल रिएक्टरों के खिलाफ थे- 1981 में इराक में ओसिरक और 2007 में सीरिया में अल-किबर परमाणु ठिकाने पर इजरायल ने हमले किए थे.
इसलिए ईरान का परमाणु प्रोग्राम उसकी जमीन के भीतर फैला हुआ है. क्षेत्रफल के हिसाब से ईरान भारत का आधा है जो 16 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. ईरान के परमाणु इंफ्रास्ट्रक्चर में यूरेनियम खदानें, गैस सेंट्रीफ्यूज जैसी सुविधाएं शामिल हैं जो इसके यूरेनियम को समृद्ध करती हैं.
इनमें से दो परमाणु ठिकाने- Fordow and Natanz में यूरेनियम संवर्धन ठिकाने कई मीटर गहरी चट्टान और कंक्रीट के नीचे जमीन के अंदर दबे हुए हैं. इन ठिकानों को लेकर सटीक बंकर-बस्टिंग हथियारों से ही निशाना बनाया जा सकता है.
2. इजरायल की वायु सेना की सीमाएं:
ईरान इजरायल की सीमा से 1000 किलोमीटर दूर है. इजरायल उसके परमाणु ठिकानों को बर्बाद करने के लिए एक असाधारण और मुश्किल सैन्य मिशन शुरू कर सकता है जिसमें मुख्य रूप से लड़ाकू जेट शामिल हो सकते हैं. इन लड़ाकू विमानों को हवा में ईंधन भरने और अपने लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए अत्यधिक दूरी तक उड़ान भरने की जरूरत होगी.
लेकिन यहां भी एक समस्या है. इजरायल की वायु सेना के पास ईरान के ऐसे परमाणु ठिकानों को नष्ट करने के लिए न तो प्लेटफॉर्म है न ही विशेष हथियार.
Fordow and Natanz जैसे अंडरग्राउंड ठिकानों को नष्ट करने के लिए इजरायल को GBU-57 मैसिव ऑर्डनेंस पेनेट्रेटर (MOP) जैसी किसी चीज की जरूरत होगी जिसका वजन 12 टन से ज्यादा भारी और जो 6 मीटर लंबा होता है.
MOP मिट्टी के 61 मीटर नीचे घुसकर विस्फोट कर सकता है. लेकिन इसे केवल B-52 और B-2 जैसे अमेरिकी भारी बमवर्षक विमान ही ले जा सकते हैं जो इजरायल के पास नहीं हैं. संक्षेप में कहें तो, इजरायल अपने दम पर ईरान के परमाणु हथियार प्रोग्राम को नष्ट नहीं कर सकता, उसे अमेरिका की जरूरत होगी.
3. क्या इजरायल खुद से ईरान के परमाणु ठिकाने को बर्बाद नहीं कर सकता?
इजरायली सेना की काबिलीयत किसी से छिपी नहीं है. 1976 में इसने दुनिया के सबसे सैन्य ऑपरेशन्स में से एक को अंजाम दिया. सौ इजरायली कमांडो ने युगांडा के एंटेबे में 102 इजरायली बंधकों को बचाने के लिए 4000 किलोमीटर से ज्यादा की उड़ान भरी. बचाव दल ने आतंकवादियों को मारने और जमीन पर युगांडा की वायु सेना के एक चौथाई हिस्से को नष्ट करने के बाद सुरक्षित वापसी की.
2024 में, इजरायली खुफिया एजेंसी ने लेबनान में एक हजार से ज्यादा वरिष्ठ हिज्बुल्लाह के लोगों को उनके रेडियो पेजर में बम लगाकर मार डाला और सैकड़ों को अपाहिज कर दिया.
इजरायल ईरान की अंडरग्राउंड परमाणु ठिकानों को निशाना बनाने के लिए स्वेदशी एमओपी बना सकता है. इजरायली एमओपी को या तो सी-130 हरक्यूलिस विमान या फिर बैलेस्टिक मिसाइल से लॉन्च किया जा सकता है. इनमें से किसी भी प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करना रिस्की और तकनीकी चुनौतियों से भरा होगा. लेकिन जैसा कि इतिहास हमें दिखाता है, इजरायल ने अतीत में हमेशा इन चुनौतियों का सामना किया है.