ईरान के परमाणु कार्यक्रम से कई देशों की नींद उड़ी हुई हैं. ईरान को न्यूक्लियर हथियार बनाने से रोकने के इरादे से अमेरिका और इजरायल ने हाल ही में ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों फोर्दो, नतांज और इस्फहान पर हमला किया था. लेकिन अब अमेरिका ने ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को लेकर उससे सीधी बातचीत का मन बना लिया है. ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि आखिर ईरान से इस सीधी बातचीत के पीछे अमेरिका की मंशा क्या है?
अमेरिका का सबसे बड़ा लक्ष्य ईरान को न्यूक्लियर हथियार बनाने से रोकना है. तेहरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम लंबे समय से पश्चिमी देशों विशेष रूप से अमेरिका और इजरायल के लिए चिंता का सबब रहा है. ऐसे में अमेरिका की ट्रंप सरकार ईरान पर सीधे तौर पर दबाव डालने पर आमादा है ताकि ईरान के साथ जल्द से जल्द समझौते को अंतिम रूप दे सके.
अमेरिका के एक तीर से कई निशाने
ट्रंप साफ तौर पर कह चुके हैं कि वह नहीं चाहते कि ईरान परमाणु संप्रभु राष्ट्र बनें और वह ईरान को परमाणु संपन्न बनने से रोकने के लिए सीधी बातचीत का दबाव बना रहा है.
ईरान को मिडिल ईस्ट में अपने सहयोगियों हमास, हिज्बुल्लाह और हूती विद्रोहियों का पूरा सपोर्ट है, जिन्होंने इस क्षेत्र में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के लिए चुनौतियां खड़ी की हैं. ऐसे में अमेरिका सीधी बातचीत के जरिए ईरान के इन प्रॉक्सी समूहों के प्रभाव को भी कम करने की कोशिश करना चाहता है.
ईरान से नजदीकियों की वजह से मिडिल ईस्ट में चीन और रूस का प्रभाव भी बढ़ रहा है. ऐसे में अमेरिकी प्रत्यक्ष बातचीत के जरिए ईरान को पश्चिमी खेमे की ओर लाने की कोशिश कर सकता है ताकि रूस और चीन का प्रभाव कम हो सके.
अमेरिका, इजरायल का प्रमुख सहयोगी राष्ट्र है. रिपोर्ट के मुताबिक, मिडिल ईस्ट में क्षेत्रीय स्थिरता को बनाए रखने के लिए अमेरिका, ईरान के साथ सीधी बातचीत को प्राथमिकता देना चाह रहा है ताकि इससे तनाव को कम कर सैन्य संघर्ष को रोकने की संभावना को बढ़ाया जा सके.
रिपोर्ट के मुताबिक, मिडिल ईस्ट में ट्रंप के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ आगामी दिनों में ईरान के अधिकारियों के साथ चर्चा करेंगे. इस दौरान ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को लेकर दोनों देशों के बीच होने वाले समझौते पर सहमति बनने की संभावना है.
कहा जा रहा है कि ईरान पर लगे प्रतिबंधों में भारी छूट देने के बदले तेहरान का यूरेनियम एनरिचमेंट प्रोग्राम रोकने के लिए एग्रीमेंट हो सकता है.
बता दें कि हाल के कुछ सालों में ईरान ने उच्च स्तर तक यूरेनियम संवर्धन को 60 फीसदी तक बढ़ा लिया था, जो परमाणु बम बनाने के लिए जरूरी 90 फीसदी के करीब है. अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने मई में पुष्टि की थी कि ईरान के पास 10 परमाणु बम बनाने के लिए पर्याप्त यूरेनियम मौजूद है.