राहुल गांधी ओबीसी लोगों को उनका हक दिलाने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन कर्नाटक में लगता है जैसे अलग ही खेल शुरू हो गया है - और हैरानी की बात ये है कि खेल शुरू किया है कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने.
केंद्र की बीजेपी सरकार की तरफ से राष्ट्रीय जनगणना के साथ ही जाति जनगणना कराये जाने का फैसला आने से पहले से ही राहुल गांधी कास्ट सेंसस के लिए कैंपेन कर रहे हैं. मल्लिकार्जुन खड़गे भी देश भर में राहुल गांधी के साथ जाति जनगणना के पक्ष में कैंपेन का मजबूत हिस्सा रहे हैं, लेकिन कर्नाटक में उनको अपनी बिरादरी के दलित हित पहले नजर आ रहे हैं.
कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अनुसूचित जाति और सब-कास्ट को लेकर सर्वे करा रहे हैं, लेकिन वो तरीका मल्लिकार्जुन खड़गे को नागवार गुजर रहा है.
सिद्धारमैया ओबीसी समुदाय से आते हैं, और मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस का दलित चेहरा हैं. कर्नाटक में कांग्रेस के ये दोनो ही चेहरे आमने सामने आ गये हैं, जिससे पार्टी में दो फाड़ नजर आने लगा है.
मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक में बेडा जंगमा समूह को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल किये जाने के विरोध में खड़े हो गये हैं.
कर्नाटक में ओबीसी को लेकर दो धड़ों में बंटी कांग्रेस
कर्नाटक में कांग्रेस के जातीय राजनीति का नया रूप देखने को मिला है. पूरे देश में राहुल गांधी जाति जनगणना के जरिये एक्स-रे कराकर ओबीसी को हक दिलाने की बात कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे दलितों की सूची में ओबीसी को शामिल करने का विरोध कर रहे हैं.
मल्लिकार्जुन खड़गे ने ये बात उस वक्त कही जब सिद्धारमैया सरकार की दूसरी सालगिरह के मौके पर विजयनगर जिले के होस्पेट में रैली हो रही थी. और, खास बात ये रही कि रैली में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के साथ राहुल गांधी भी मौजूद थे.
कर्नाटक की अपनी ही कांग्रेस सरकार को निशाने पर लेते हुए मल्लिकार्जुन खड़गे कह रहे थे, हम लिंगायत समुदाय के गरीबों का समर्थन करेंगे, और उनको सपोर्ट करेंगे, लेकिन बेडा जंगमा को SC सूची में शामिल करने के बाद, उनकी संख्या 500 से बढ़कर अब 4-5 लाख कैसे हो गई?
मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस बात पर चिंता जताते हुए सीधे तौर पर इसे अनुचित बताया है. उनका सवाल होता है, क्या ऐसा करके अनुसूचित जाति के अधिकारों को एक-एक करके छीनना है?
नवंबर, 2024 में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अनुसूचित जातियों के लिए आंतरिक आरक्षण देने के मुद्दे पर जस्टिस नागमोहन दास आयोग बनाया था. आयोग 5 मई से सरकार की तरफ से किये जा रहे अनुसूचित जातियों की उप-जातियों के राज्यव्यापी सर्वेक्षण की निगरानी कर रहा है - और ऐसे वक्त मल्लिकार्जुन खड़गे की ये टिप्पणी कांग्रेस में झगड़ा बढ़ाने वाली ही लगती है.
कांग्रेस नेता का कहना है, अगर दलितों के साथ अन्य जातियों को शामिल किया गया, तो इससे न तो राज्य को और न ही देश को कोई मदद मिलेगी.
कर्नाटक में दलित मुख्यमंत्री का मुद्दा
कर्नाटक की कहानी भी दूसरे कांग्रेस शासित राज्यों से मिलती जुलती ही है. चुनाव में कांग्रेस की जीत के साथ ही झगड़ा शुरू हो जाता है, और मुख्यमंत्री पद को लेकर पूरे पांच साल चलता रहता है, बशर्ते सरकार भी कार्यकाल पूरा कर पाये.
कर्नाटक में भी डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे, लेकिन सिद्धारमैया को कुर्सी मिल गई. अब एक चर्चा रह रह कर ये भी चलती रहती है कि 2023 में जब सरकार बनी थी, तो ढाई साल बाद नेतृत्व परिवर्तन की बात हुई थी. जैसे राजस्थान में अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ मे भूपेश बघेल ऐसी मांगों को दरकिनार कर पूरे पांच साल मुख्यमंत्री बने रहे, सिद्धारमैया की भी ऐसी ही कोशिश है.
अभी जनवरी में ही, कर्नाटक सरकार में आबकारी मंत्री आरबी टिम्मापुर ने मुख्यमंत्री पद के लिए अपना दावा पेश कर दिया था. उनका कहना था कि वो दलित हैं, और वो मुख्यमंत्री क्यों नहीं बन सकते?
मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे प्रियांक खड़गे भी कर्नाटक सरकार में मंत्री हैं, मन ही मन दावेदार तो वो भी होंगे ही. और, मौके तो मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने भी मुख्यमंत्री बनने के आये थे, लेकिन सपना अधूरा रह गया. जो सपना इंसान खुद नहीं पूरा कर पाता, वो चाहता है कि बेटा पूरा करे, तो क्या मल्लिकार्जुन खड़गे के मन में ऐसे ख्याल नहीं आते होंगे?
कर्नाटक की आबादी में दलितों की हिस्सेदारी 19 फीसदी है, जबकि सिद्धारमैया वाले कुरुबा उससे कम हैं, करीब 10 फीसदी.
इस बीच एक विवाद फर्जी जाति प्रमाण पत्र को लेकर भी हुआ है. जिस बेडा जंगमा जाति को एससी में शामिल करने का मल्लिकार्जुन खड़गे विरोध कर रहे हैं, वे लिंगायत कैटेगरी में सूचीबद्ध हैं. रिपोर्ट के मुताबिक उत्तरी कर्नाटक के कुछ हिस्सों में एक जाति का नाम शेयर करने के कारण उनको फर्जी अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र जारी कर दिये गये हैं.
मल्लिकार्जुन खड़गे को लगता है कि बेडा जंगमा को एससी में शामिल कर दिये जाने पर दलितों का मौजूदा दबदबा खत्म हो सकता है, क्योंकि वे भी हिस्सेदार हो जाएंगे.
अभी तक तो राहुल गांधी को मुख्यमंत्री पद का झगड़ा सुलझाना ही मुश्किल हो रहा था, अगर ऐसा हुआ तो गुटबाजी और भी बढ़ जाएगी - और ये सरकार के लिए भी खतरा पैदा करेगा.