नेपाल एक बार फिर गहरे राजनीतिक संकट से जूझ रहा है. प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारी जनआंदोलन और हिंसक प्रदर्शनों के दबाव में मंगलवार को इस्तीफा दे दिया. सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुआ यह ‘Gen Z आंदोलन’ राजधानी काठमांडू समेत पूरे देश में उग्र हो गया, जिसमें प्रदर्शनकारियों ने कई शीर्ष नेताओं के निजी आवासों पर हमला कर दिया, संसद भवन को निशाना बनाया और आगजनी की.
ऐसे में पहले श्रीलंका, फिर बांग्लादेश और अब नेपाल... एक के बाद एक भारत के पड़ोसी देशों का बुरा हाल है. ऐसे में बाहरी ताकतों के हाथ होने के भी सवाल उठ रहे हैं. साथ ही यह भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये कोई संयोग है या प्रयोग? कारण, तीनों देशों में एक ही तरह का पैटर्न देखने को मिला है. चाहे प्रदर्शन हो या फिर तख्तापलट की कोशिश. इसको लेकर पूर्व राजनयिक अचल मल्होत्रा ने आजतक से खास बातचीत में समझाया.
अचल मल्होत्रा ने कहा कि श्रीलंका में काफी आक्रोश था अर्थव्यवस्था को लेकर. महंगाई चरम पर थी. लोगों को खाने पीने तक की किल्लतका सामना करना पड़ा था. ये आक्रोश उभरकर सामने आया. वहीं बांग्लादेश की स्थिति अलग नजर आती है. कारण, जिस तरह मोहम्मद यूनुस को अमेरिका से वहां लाया गया. इसके पीछे का कारण यह भी सामने आता है कि अमेरिका बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार से खुश नहीं था. अमेरिका वहां के द्वीप बेस बनाना चाहता था लेकिन उसकी अनुमति शेख हसीना ने नहीं दी थी. इसके पीछे यही समझ आता है कि बांग्लादेश में रणनीति के तहत बवाल कराया गया.
उन्होंने कहा कि नेपाल की स्थिति बिल्कुल अलग नजर आ रही है. यहां किसी बाहरी का हाथ होने का आधार अभी नजर नहीं आता है. अब जिस तरह काठमांडु मेयर बालेंद्र का नाम चल रहा है, हो सकता है आंदोलन की शुरुआत में इनका हाथ न हो. लेकिन अब स्थिति ऐसी है कि उनके समर्थक चाहेंगे कि इसका लाभ उन्हें मिले. लेकिन ये तो स्पष्ट है कि नेपाल के लोग घूम फिरकर सत्ता में आने वाले तीन-चार चेहरों से थक चुके हैं.
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