भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद, पाकिस्तान के किराना हिल्स में न्यूक्लियर लीकेज की अफवाहों ने लोगों का ध्यान खींचा. अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने कहा कि पाकिस्तान में किसी भी परमाणु सुविधा से कोई रिसाव नहीं हुआ. लेकिन इन खबरों ने पहाड़ों में बने एटॉंमिक आर्म्ड स्टोरेज फैसिलिटी के बारे में लोगों की जिज्ञासा बढ़ा दी. ऐसे स्थान कैसे बनाए जाते हैं और क्या ये सामान्य मिसाइल हमलों से सुरक्षित हैं?
पहाड़ों का इस्तेमाल क्यों?
पहाड़ों में परमाणु हथियारों के लिए अंडरग्राउंड फैसिलिटी (UGF) बनाना अब आम हो गया है. इसका कारण यह है कि पहाड़ों में ये सुविधाएं छिपी रहती हैं और इन्हें नष्ट करना मुश्किल होता है. साथ ही, आधुनिक तकनीक और मजबूत कंक्रीट के कारण ऐसी सुरंगें बनाना आसान हो गया है.
पहाड़ प्राकृतिक रूप से एक मोटी सुरक्षात्मक परत देते हैं, जिसे ओवरबर्डन कहते हैं. ये जगहें आमतौर पर दूर-दराज और कम आबादी वाली होती हैं. पहाड़ों में पाई जाने वाली आग्नेय चट्टानें (जो ज्वालामुखी से बनती हैं) मैदानी इलाकों की तलछटी चट्टानों से ज्यादा मजबूत होती हैं. इसीलिए ये हमलों से बेहतर सुरक्षा देती हैं. किराना हिल्स में भी आग्नेय और मेटासेडिमेंट्री (कठोर चट्टानें) पाई जाती हैं.
इनके अंदर क्या होता है?
पहाड़ों की चट्टानें भूकंप या भूस्खलन से बचाती हैं. फिर भी, सुरंगों को और मजबूत करने के लिए रॉक बोल्टिंग जैसी तकनीकों का उपयोग होता है, ताकि हमले के बाद चट्टानें न गिरें. इन सुविधाओं की दीवारें मोटी कंक्रीट और प्राकृतिक चट्टानों से बनी होती हैं, जो सैकड़ों फीट मोटी हो सकती हैं. इनमें कई सुरंगें और प्रवेश-निकास द्वार होते हैं, जो मजबूत, विस्फोट-रोधी दरवाजों से सुरक्षित होते हैं.
पहाड़ों का तापमान और नमी स्थिर रहती है, जो परमाणु हथियारों में इस्तेमाल होने वाले विस्फोटकों और इलेक्ट्रॉनिक्स को सुरक्षित रखने के लिए उपयुक्त है. इन सुविधाओं में उन्नत हवा, तापमान नियंत्रण और फिल्टर सिस्टम होते हैं, जो हथियारों को दूषित पदार्थों से बचाते हैं. बिजली के लिए बैकअप जनरेटर जैसे सिस्टम भी होते हैं.
पहाड़ बाहरी रेडिएशन (जैसे कॉस्मिक किरणों) से हथियारों को बचाते हैं. हथियारों को विशेष तिजोरियों में रखा जाता है, जो एक-दूसरे से थोड़ी दूरी पर होते हैं ताकि न्यूट्रॉन उत्सर्जन से कोई खतरा न हो. न्यूट्रॉन उत्सर्जन की निगरानी से हथियारों की स्थिति का पता चलता है. ये उत्सर्जन हथियारों के कोर (जो प्लूटोनियम-239 या यूरेनियम-235 से बने होते हैं) के कारण होते हैं.
ऐसी सुविधाओं में छिपाव, निरंतर संचालन, मजबूत सुरक्षा, संचार सिस्टम और आसपास हवाई रक्षा होती है. उदाहरण के लिए, किराना हिल्स के पास पाकिस्तान वायु सेना का मुशफ बेस है.
क्या ये पूरी तरह सुरक्षित हैं?
ऐसी सुविधाओं को सामान्य हथियारों से नष्ट करना बहुत मुश्किल है. 2000 के दशक में अमेरिका के अध्ययनों से पता चला कि ऐसी सुविधाओं को केवल उनके प्रवेश द्वार बंद करके ही नुकसान पहुंचाया जा सकता है. इसीलिए अमेरिका ने पृथ्वी-भेदी परमाणु हथियारों पर काम शुरू किया था, लेकिन इसे बाद में रोक दिया गया.
पहाड़ों की चट्टानें विस्फोट और झटकों को सहन कर सकती हैं. गहरे भंडारण तिजोरियां सामान्य हथियारों, जैसे अमेरिका के जीबीयू-57 बंकर-बस्टर (जो 60 मीटर कंक्रीट भेद सकता है) की पहुंच से बाहर होती हैं. पहाड़ विस्फोट के दबाव और गर्मी को कम करते हैं, जिससे सीधा या पास का हमला भी ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सकता.
उदाहरण के लिए, 200-300 किलोग्राम का ब्रह्मोस मिसाइल वॉरहेड ऐसी सुविधा को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सकता. यह केवल प्रवेश द्वार को हल्का नुकसान या स्थानीय चट्टानों को तोड़ सकता है. गहरी तिजोरियों तक इसके झटके नहीं पहुंच सकते. अगर सुविधा में पर्याप्त मजबूती और बैकअप सिस्टम हों, तो ऐसा हमला केवल अस्थायी रुकावट पैदा कर सकता है.
सबसे खराब स्थिति क्या हो सकती है?
पारंपरिक हमले से परमाणु आपातकाल होने की संभावना बहुत कम है. इसके लिए कई असंभावित शर्तों का पूरा होना जरूरी है. फिर भी, अगर ऐसा हो, तो क्या हो सकता है?
परमाणु हथियार को विस्फोट करने के लिए बहुत खास परिस्थितियां चाहिए, जो सामान्य झटकों से नहीं बनतीं. अगर हथियार क्षतिग्रस्त हो, तो वह अनियंत्रित श्रृंखला प्रतिक्रिया शुरू नहीं कर सकता.
पुराने हथियारों में, जिनमें प्लूटोनियम-240 की मात्रा ज्यादा होती है, क्षतिग्रस्त कोर में छोटा विस्फोट (फिज़ल) होने का जोखिम बहुत कम होता है. पास के हथियारों में भी ऐसा होने की संभावना न के बराबर है, जब तक कि परिरक्षण विफल न हो और हथियार बहुत करीब न हों.
अधिक संभावित (लेकिन फिर भी बहुत कम) खतरा यह है कि पुराने हथियारों में मौजूद पारंपरिक विस्फोटक शुरू हो जाएं.
ये झटके, गर्मी या प्रभाव से विस्फोट कर सकते हैं. इससे परमाणु विस्फोट नहीं होगा, लेकिन रेडियोधर्मी सामग्री फैल सकती है, जैसे 1966 के पालोमारेस हादसे में हुआ, जहां दो हथियारों के विस्फोटकों ने 558 एकड़ क्षेत्र में प्लूटोनियम फैलाया.
ऐसी स्थिति में, पहाड़ अधिकांश रेडियोधर्मी सामग्री को रोक सकता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान न हो. इसे नियंत्रित करने के लिए बोरॉन पाउडर का छिड़काव किया जा सकता है, जो न्यूट्रॉन को सोख लेता है और रेडियोधर्मिता को कम करता है.
युद्ध के माहौल में चिंता होना स्वाभाविक है, लेकिन ऐसी मजबूत भूमिगत सुविधा में परमाणु हादसा होना बहुत मुश्किल और जटिल है—यह अफवाहों से कहीं ज्यादा असंभावित है.
- सौरव झा
(लेखक दिल्ली डिफेंस रिव्यू के संस्थापक हैं, लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं)