India Today Conclave South 2025: इंडिया टुडे कॉन्क्लेव साउथ 2025 में कोवई मेडिकल सेंटर एंड हॉस्पिटल (KMCH) के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. अरुण एन पलानीस्वामी पहुंचे और उन्होंने दक्षिण भारत की स्वास्थ्य सेवा की सफलता पर खुलकर बात की. उन्होंने कहा, 'दक्षिण भारत की हेल्थकेयर सफलता की कहानी लंबे समय की सोच और मजबूत संस्थानों पर टिकी हुई है. यहां अस्पतालों के विकास के पीछे 50 से 100 साल की नेतृत्व क्षमता और संस्थान खड़े करने की परंपरा रही है. अपोलो और अरविंद आई केयर जैसे हॉस्पिटल भी पूरे देश के लिए उदाहरण बने हैं.
डॉ. अरुण ने बताया, कोवई हॉस्पिटल 250 बिस्तरों से शुरू होकर आज 1600 बिस्तरों का सुपर-स्पेशलिटी सेंटर बन गया है जिसमें मेडिकल और नर्सिंग कॉलेज भी शामिल है. इस तरह का माहौल दक्षिण भारत को न केवल बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाएं देता है बल्कि मेडिकल क्षेत्र में बड़ी मात्रा में मानव संसाधन भी तैयार करता है.
शिक्षा है सफलता की सीढ़ी
डॉ. अरुण ने कहा, सेविता इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एंड टेक्निकल साइंसेज (SIMATS) के वाइस चांसलर अश्विनी कुमार ने कहा, शिक्षा को इस सफलता की असली रीढ़ माना जा रहा है. दक्षिण भारत में मेडिकल कॉलेजों का घना नेटवर्क है जो देशभर के टैलेंटेड स्टूडेंट्स को अट्रैक्ट करता है. दक्षिण भारत नंबर वन है क्योंकि यहां इनोवेशन, रिसर्च और क्लिनिकल केयर को एक साथ आगे बढ़ाया जाता है. यहां मोबाइल क्लिनिक और लर्निंग प्रोग्राम्स जैसे इवेंट्स स्टूडेंट्स को वास्तविक चुनौतियों से जोड़ते हैं.
दोनों एक्सपर्ट्स का मानना है कि समझदारी, रिसर्च और अलग-अलग तरह के मरीजों ने डॉक्टरों और हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स को और भी संवेदनशील और सक्षम बनाया है.
टेक्नोलॉजी और फ्यूचर
डॉ. पलनीस्वामी ने टेक्नोलॉजी के बढ़ते इस्तेमाल पर चर्चा करते हुए कहा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक सर्जरी हॉस्पिटल्स में में जगह तो बना रहे हैं लेकिन डॉक्टरों की भूमिका कोई तकनीक नहीं ले सकती. एआई उतना ही अच्छा है जितना डेटा उसमें डाला गया है, लेकिन मरीजों से बात करना, जब वे सर्जरी से डर रहे हों तो उन्हें समझाना और मुश्किल समय में उनका सहारा बनना सिर्फ डॉक्टर ही कर सकता है. एक डॉक्टर का आधा काम सिर्फ़ जानकारी देना नहीं होता, बल्कि मरीजों को निर्णय लेने में मदद करना, सिंपेथी दिखाना और उन लोगों के लिए इलाज के लिए तरीके खोजना भी होता है जो इलाज का खर्चा नहीं उठा सकते. ये सिर्फ डॉक्टर ही कर सकता है, एआई नहीं.
वहीं अश्विनी कुमार ने बताया कि सेविता संस्थान में एआई, रोबोटिक सर्जरी और 3D-प्रिंटेड ऑर्गन मॉडल का इस्तेमाल एजुकेशन और रिसर्च में किया जा रहा है जिससे शवों (स्टडी के लिए उपयोग होते हैं) पर निर्भरता कम हो गई है. रिकॉर्ड के डिजिटलाइजेशन से पैशेंट और स्टूडेंट्स दोनों में पारदर्शिता भी बढ़ी है.
क्या है सबसे बड़ी चुनौती?
सस्ती और अच्छी देखभाल के बीच बैलेंस बनाना अभी एक बड़ी चुनौती है. डॉ. पलनीस्वामी ने बताया कि कोवई हॉस्पिटल '30 रुपये का अस्पताल' मॉडल चलाता है, जहां गरीबों का इलाज स्टूडेंट फीस और कॉर्पोरेट ऑपरेशंस की क्रॉस-सब्सिडी से किया जाता है. बच्चों के कैंसर और हृदय रोग जैसे मामलों में भी गरीब परिवारों को मदद दी जाती है. हम कोशिश करते हैं कि कोई भी मरीज वापिस ना जाए.
सेविता संस्थान ने भी मरीजों की चिंता कम करने के लिए अनोखा तरीका अपनाया है. अश्विनी कुमार ने कहा कि जब कोई मरीज भर्ती होता है तो उसके खाते में तुरंत 5000 रुपये जमा कर दिए जाते हैं ताकि शुरुआती जांच और आपातकालीन सेवाओं में पैसे की चिंता न रहे. इसके अलावा हॉस्पिटल में मुफ्त भोजन और जरूरतमंद परिवारों के लिए लाखों रुपये तक के बिल माफ किए जाते हैं.
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