गोवर्धन पूजा आज, श्रीकृष्ण के गिरधारी स्वरूप का होगा पूजन, लगेगा छप्पन भोग

6 hours ago 1

दीपावली के एक दिन के बाद आज परवा यानी प्रथमा तिथि को गोवर्धन पूजा मनाई जा रही है. पांच दिन की पर्व परंपरा में ये ऐसा पहला त्योहार है, जिसका वैदिक आधार तो स्पष्ट नहीं है, लेकिन इसकी मान्यताएं सीधे पौराणिक कथाओं से निकल कर सामने आई हैं. गोवर्धन पूजा का जिक्र श्रीमद्भभागवत पुराण, महाभारत और हरिवंश पुराण में मिलता है. 

भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित यह पूजा असल में विशुद्ध ग्रामीण परंपरा की पूजा पद्धति की झलक है. जिसे समुदाय, संगठन या फिर एक परिवेश के लोगों के द्वारा मिलजुल कर किया जाता है. 

महाभारत में प्रसंग आता है कि ब्रज (गोकुल, वृंदावन, बरसाना, नंदगांव) के लोग वैदिक आधार पर इंद्र की पूजा करते थे. इंद्र की इस वैदिक पूजा में समय के साथ बहुत आडंबर आ चुका था, साथ ही इस पूजा में आस्था का अभाव और डर का समावेश अधिक हो चुका था. बड़े यज्ञ अनुष्ठान में कई-कई दिनों की मेहनत से तैयार हुए दूध, दही, घी, छाछ  और यहां तक की नई फसल का बहुत सा हिस्सा भी इंद्र यज्ञ में खर्च होता था. 

इसके साथ ही प्रकृति से भी लोगों का जुड़ाव कम था, तब श्रीकृष्ण ने इंद्र की इस पूजा का विरोध किया और सबको सलाह दी कि इसके स्थान पर नदी, ग्राम, गोधन, पशुधन, धरती माता, वृक्ष और इस पवित्र गोवर्धन पर्वत की पूजा की जानी चाहिए. क्योंकि नदी का जल जीवन देता है. गोधन से ही जीवन यापन के लिए दूध-दही, घी मिलता है. पशुधन किसान के बराबर ही मेहनत करते हैं ताकि अनाज उगाया जा सके. धरती अपने सीने पर हल की नोक सहकर भी बीज उत्पादन कर अनाज देती है. वृक्ष पत्थर मारने पर भी फल देते हैं और गोवर्धन ब्रज क्षेत्र की सीमा बनकर सुरक्षा देता है. वर्षा होने में सहायक होता है. 

किशोर कृष्ण की बात मानकर नंदबाबा और सभी ग्रामीणों ने इंद्र की पूजा रोककर गोवर्धन पूजा की थी. तब क्रोधित देवराज ने ब्रज क्षेत्र को डुबो देने का निश्चय किया. सात दिन की घोर वर्षा हुई. तब श्रीकृष्ण ने लोगों की सुरक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठाकर थाम लिया. सात दिनतक वह यूं ही खड़े रहे और इंद्र का क्रोध और उसके अभिमान को आंखें दिखाते रहे.

आखिर देवराज इंद्र ने हार मानी. उन्होंने श्रीकृष्ण के परब्रह्म स्वरूप को पहचाना और फिर उनकी शरण में गए. इस तरह श्रीकृष्ण ने देवराज इंद्र पर विजय पाई. 

हरिवंश पुराण और भागवत पुराण में वर्णित यही कथा आज के गोवर्धन पूजा का आधार है. श्रीकृष्ण ने आठ दिन के पर्व की नींव डाली थी. जिसमें परवा (प्रथमा) के दिन गोवर्धन पूजा से लेकर कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन गोपाष्टमी तक के पर्व शामिल थे. ब्रजवासी आठ दिनों तक प्रकृति की पूजा का उत्सव मनाते थे, जिसमें अन्न, नदी, जंगल, धरती और उनके पशुधन शामिल थे.

आज गोवर्धन पूजा श्रीकृष्ण के उसी गिरधारी स्वरूप के स्मरण का दिन है. गोवर्धन पर्वत अब खुद में एक लोकदेवता हैं. वह कई अलग-अलग परिवारों के कुल देवता भी हैं. ऐसा भी मानते हैं कि श्रीकृष्ण ही अपने अचल स्वरूप में गोवर्धन पर्वत हैं. मथुरा के ब्रज क्षेत्र से लेकर राजस्थान की नाथ परंपरा तक में गिरधारी स्वरूप की बड़ी मान्यता है, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश से निकल कर, राजस्थान, गुजरात और फिर महाराष्ट्र के सागरीय तट तक पहुंचती है. जिसमें स्वरूप कोई भी हो, मूलरूप से श्रीकृष्ण की ही पूजा होती है.

---- समाप्त ----

Read Entire Article