दिल इलाहाबादी, घर इटली, भाषा हिंदी... कहानी फ्रांसेस्का की जिन्हें भारत सरकार ने डिपोर्ट कर दिया

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जन्मभूमि इटली है. लेकिन कर्मभूमि लंदन और भारत. क्षेत्र है साहित्य, फोकस हिंदी पर. ये परिचय उस अंतरराष्ट्रीय शिक्षिका-लेखिका का है जिन्हें भारत में प्रवेश नहीं दिया गया. इनका नाम है फ्रांसेस्का ओरसिनी. आखिर वीजा होने के बावजूद उन्हें नई दिल्ली एयरपोर्ट से क्यों वापस कर दिया गया. इससे जुड़ा विवाद क्या है. हम आपको बताएंगे?

लगभग एक ही महीने पहले एक इंटरव्यू में फ्रांसेस्का ओरसिनी ने कहा था कि उनका दिल इलाहाबादी है. फ्रांसेस्का ओरसिनी लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज में हिंदी और दक्षिण एशियाई साहित्य की प्रोफेसर हैं. 'इलाहाबाद' को वो अपना दूसरा घर बताती हैं. 

इटली के मिलान शहर में रहने वाली फ्रांसेस्का ओरसिनी की हिंदी भाषा में रुचि कैसे हुई? इस प्रश्न के जवाब में ओरसिनी ने सिने इंक नाम के यट्यूब चैनल पर दिए इंटरव्यू में कहा था, "मेरी हिंदी की यात्रा 41 साल पहले शुरू हुई थी, असल में मेरी मां को साहित्य में दिलचस्पी थी और मेरे घर में कई किताबें थी, मुझे कुछ भी पढ़ने की आजादी थी, इसी दौरान मेरी साहित्य में रुचि विकसित हुई."

फ्रांसेस्का साहित्य के प्रति अपना कायम रखा और वेनिस विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ने लगीं. यहां उन्होंने हिंदी में बीए की उपाधि ली.

भारत में अपने सफर को याद करते हुए फ्रांसेस्का कहती हैं कि वो जब 20 साल की थीं तब पहली बार भारत आईं. यहां वाराणसी स्थित नागरी प्रचारिणी सभा में वे एक महीने तक रहीं. इस दौरान उनकी मित्रता कथा सम्राट प्रेमचंद की पोती से मित्रता हो गई. 

इसी दौरान उन्होंने इलाहाबाद की भी यात्रा की और फिर यहीं की होकर रह गईं.

इसके बाद वे केंद्रीय हिंदी संस्थान से उन्हें स्कॉलरशिप मिल गई. फिर वे जेएनयू में आ गईं. फ्रांसेस्का को जाने-माने आलोचक नामवर सिंह से पढ़ने का मौका मिला. इसके अलावा उन्हें केदारनाथ सिंह से पढ़ने का अवसर मिला. 

ओरसिनी ने दक्षिण एशिया की बहुभाषी साहित्यिक संस्कृति का अध्ययन किया. वे हिंदी-उर्दू की साझा साहित्यिक परंपराओं को समझने में माहिर हैं, जो एक जटिल और कम अध्ययन किया गया क्षेत्र है. 

ओरसिनी के अध्ययन का मुख्य फोकस उत्तर भारत की बहुभाषी साहित्यिक परंपराओं पर है, जिसमें अवध क्षेत्र (जिसमें इलाहाबाद शामिल है) की हिंदी-उर्दू साझा विरासत प्रमुख है.

उनकी पुस्तक 'Print and Pleasure' विशेष रूप से इलाहाबाद की प्रिंट संस्कृति और लोकप्रिय साहित्य पर केंद्रित है. वे इलाहाबाद के साहित्यिक इतिहास को बहुभाषी दृष्टिकोण से देखती हैं, जहां हिंदी-उर्दू की साझा दुनिया को समझा जाता है. उनके शोध प्रोजेक्ट में उत्तर भारत, विशेष रूप से अवध-इलाहाबाद क्षेत्र की साहित्यिक भूगोल पर जोर है. 

ताजा विवाद क्या है

रिपोर्ट के अनुसार फ्रांसेस्का ओरसिनी के पास पांच साल का वैध ई-वीजा था फिर भी उन्हें दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अधिकारियों ने प्रवेश नहीं करने दिया. फ्रांसेस्का चीन में एक अकादमिक सम्मेलन में भाग लेने के बाद हांगकांग से दिल्ली पहुंची थीं. वीजा नियमों के उल्लंघन के लिए बाद में उन्हें डिपोर्ट कर दिया गया. 

ओरसिनी को वीजा नियमों के उल्लंघन के कारण मार्च 2025 से ब्लैक लिस्ट में डाल दिया गया था. गृह मंत्रालय के एक सूत्र ने समाचार एजेंसी पीटीआई के हवाले से बताया कि वह पर्यटक वीजा पर यात्रा कर रही थीं, जिसका उन्होंने पहले शैक्षणिक गतिविधियों के लिए दुरुपयोग किया था. 

सूत्रों ने आगे कहा, "फ्रांसेस्का ओरसिनी पर्यटक वीजा पर थीं, लेकिन उन्होंने वीजा शर्तों का उल्लंघन किया. यह दुनिया भर में प्रचलित स्टैंडर्ड प्रथा है; वीजा नियमों का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को काली सूची में डाला जा सकता है."

ओरसिनी को कुछ ही घंटों में हांगकांग भेज दिया गया क्योंकि उसकी यात्रा का उद्देश्य उसकी वीजा श्रेणी से मेल नहीं खाता था. हालांकि ओरसिनी ने अधिकारियों को बताया कि उसके पास पांच साल का वैध वीज़ा है और वह दोस्तों से मिलने भारत आ रही थी. 

साहित्य-लेखक बिरादरी ने तीखी आलोचना की

फ्रांसेस्का ओरसिनी को भारत में प्रवेश न देने पर साहित्य बिरादरी ने तीखी आलोचना की है. 

इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने ओरसिनी को भारतीय साहित्य का एक महान विद्वान बताया. उन्होंने कहा, "बिना किसी कारण के उन्हें निर्वासित करना एक ऐसी सरकार की निशानी है जो असुरक्षित, विक्षिप्त और यहाँ तक कि मूर्ख भी है."

उन्होंने कहा कि उनके कार्यों ने हमारी अपनी सांस्कृतिक विरासत की समझ को समृद्ध किया है. 

लेखक, आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि ओरसिनी ने आधुनिक हिन्दी लोकवृत्त के निर्माण पर जो काम किया है, वह मील के पत्थर की हैसियत रखता है. इसके अलावा आरंभिक आधुनिक कालीन भारत में विभिन्न ज्ञानकांडों और  भाषा तथा इतिहास के अध्ययन, अध्यापन संदर्भों के बहुविध परीक्षण में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान किया है. 

उन्होंने कहा कि मैं सचमुच नहीं समझ पा रहा कि ओरसिनी के किस काम से किस की कौन सी कोमल भावना आहत हो गयी, कौन सा राष्ट्रहित खतरे में पड़ गया. 

एक अन्य इतिहासकार मुकुल केसवन ने कहा कि एनडीए सरकार का विद्वानों और विद्वत्ता के प्रति "शत्रुता" देखने लायक है.

केसवन ने एक्स पर लिखा, "हिंदी के प्रति वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध सरकार ने फ्रांसेस्का ओरसिनी पर प्रतिबंध लगा दिया है."

ओरसिनी ने आखिरी बार अक्टूबर 2024 में भारत का दौरा किया था.
 

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