पंजाब हर साल अक्टूबर और नवंबर में एक बेहद गंभीर समस्या का सामना करता है- धान की पराली जलाने की समस्या. यह सिर्फ खेती की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन चुकी है. इस साल राज्य में पराली जलाने की घटनाओं में पिछले वर्षों की तुलना में कमी दर्ज की गई है, लेकिन बीते दस दिनों में जो घटनाएं सामने आईं, उनसे चिंता बढ़ गई है.
पंजाब में दिवाली के दिन और उससे अगले दिन पराली जलाने के मामलों में गिरावट के बावजूद पंजाब के कई शहरों में प्रदूषण का स्तर बढ़ा. दिवाली के दिन पराली जलाने के 45 केस सामने आए, जो पिछले वर्ष के मुकाबले 90 प्रतिशत कम हैं. वर्ष 2024 में 31 अक्टूबर को दिवाली वाले दिन राज्य में पराली जलाने के एक ही दिन में 484 केस आए थे. इस साल दिवाली के अगले दिन यानी मंगलवार को पंजाब में पराली जलाने के 62 नए मामले सामने आए.
पंजाब में इस सीजन में अब तक पराली जलाने के 415 मामले सामने आए हैं, जोकि पिछले साल की तुलना में करीब 85 प्रतिशत कम हैं. सबसे ज्यादा मामले तरनतारन जिले में दर्ज हुए. यहां अब तक पराली जलाने के 136 मामले सामने आ चुके हैं. वहीं दूसरी ओर अमृतसर में ये आंकड़ा अब तक इस सीजन में 120 पर है.
पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PPCB) के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल अब तक केवल 415 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज हुई हैं. यह पिछले साल के इसी अवधि की तुलना में लगभग 72 प्रतिशत कम है. अगर हम पिछले तीन सालों के आंकड़ों पर नजर डालें, तो स्थिति और स्पष्ट हो जाती है. 2023 में पंजाब में 1,764 घटनाएं दर्ज की गई थीं, जबकि 2024 में यह संख्या 1,510 थी. और अब 2025 में यह संख्या 415 तक पहुंच चुकी है.
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यह गिरावट किसानों और राज्य सरकार की सामूहिक कोशिशों का परिणाम है. पंजाब सरकार ने विभिन्न स्तरों पर जागरूकता अभियान चलाए हैं, किसानों को कृषिजन्य मशीनरी के उपयोग के लिए प्रोत्साहित किया और नियमों का उल्लंघन करने वालों पर भारी जुर्माने की धमकी दी. इन प्रयासों का असर दिख रहा है, लेकिन हाल के आंकड़े बताते हैं कि पराली जलाने की प्रवृत्ति अब भी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है.
दरअसल, पिछले 10 दिनों के आंकड़े ने इस बात को और स्पष्ट कर दिया. PPCB की रिपोर्ट के अनुसार, 15 सितंबर से 20 अक्टूबर तक पंजाब में 353 पराली जलाने की घटनाएं हुईं. इनमें तरनतारन और अमृतसर जिलों में सबसे ज्यादा मामले सामने आए, क्रमशः 125 और 112 घटनाओं के साथ. फिरोजपुर में 27, पटियाला में 23 और संगरूर में 8 मामले दर्ज हुए.
बीते दस दिनों में इन घटनाओं में तीन गुना वृद्धि हुई. 11 अक्टूबर तक केवल 116 घटनाएं ही दर्ज हुई थीं, लेकिन उसके बाद अचानक बढ़ोतरी हुई. इसका कारण स्पष्ट है- धान की फसल की कटाई के बाद खेत खाली करने की जल्दी. किसान जानते हैं कि रबी की फसल यानी गेहूं की बुआई में समय कम है. अक्टूबर और नवंबर में धान की कटाई खत्म होने के तुरंत बाद गेहूं की बुआई शुरू करनी होती है. इसलिए कई किसान पराली को जलाकर जमीन साफ करते हैं, ताकि उनकी अगली फसल समय पर बोई जा सके.
हालांकि, पराली जलाने की यह आदत न केवल पंजाब बल्कि दिल्ली-एनसीआर की हवा को भी खराब करती है. दिल्ली में ठंडी हवाओं के कारण स्मॉग और प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है, जिससे सांस लेने में परेशानी, अस्थमा और अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. इस कारण राज्य सरकार और केंद्र सरकार लगातार किसानों को जागरूक करने और पराली प्रबंधन के वैकल्पिक उपाय अपनाने की सलाह दे रही हैं.
कहां-कहां पड़ रहा प्रभाव
- पराली जलाने में सबसे अधिक प्रभावित जिले: तरनतारन, अमृतसर, फीरोज़पुर, पटियाला, संगरूर
- पराली जलाने के कारण: रबी फसल के लिए खेत जल्दी तैयार करना, पारंपरिक आदतें, जागरूकता की कमी
- सरकारी पहल: जागरूकता अभियान, कृषिजन्य मशीनरी का प्रचार, जुर्माना लगाने की कार्रवाई
- पर्यावरणीय प्रभाव: पंजाब और दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण.
PPCB ने इस साल अब तक 162 मामलों में हर्जाने के रूप में 8 लाख रुपये से अधिक का जुर्माना लगाया है, जिसमें से 5.65 लाख रुपये की वसूली भी हो चुकी है. इसके अलावा, 149 एफआईआर दर्ज की गई हैं, जिनमें तरनतारन में 61 और अमृतसर में 39 शामिल हैं.
राज्य सरकार ने किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए मशीनरी जैसे रोटावेटर, पावर कल्टीवेटर और स्ट्रॉ शेडर के इस्तेमाल के लिए जागरूकता अभियान चलाया है. इसके अलावा, किसानों को इस बात की जानकारी दी जा रही है कि मशीनरी का इस्तेमाल करने से समय और श्रम की बचत होती है और रबी की फसल के लिए जमीन तैयार करना भी आसान होता है. फिर भी कई किसान पुराने तरीकों पर बने रहते हैं.
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पिछले सालों का रिकॉर्ड बताता है कि पराली जलाने की घटनाओं में गिरावट और बढ़ोतरी दोनों देखी गई हैं. इस साल 415 घटनाओं तक गिरावट पिछले कई सालों की तुलना में काफी राहत देने वाली है. लेकिन तीन गुना वृद्धि की हाल की घटनाएं यह दिखाती हैं कि समस्या अभी भी पूरी तरह खत्म नहीं हुई. राज्य सरकार और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के लिए यह चुनौती बनी हुई है कि वे किसानों को नियमों का पालन करने के लिए कैसे प्रेरित करें और पराली प्रबंधन के वैकल्पिक उपायों को अपनाने में कैसे सफलता पाएं.
पिछले वर्षों का रिकॉर्ड बताता है कि पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में समय-समय पर गिरावट और वृद्धि दोनों होती रही है. 2024 में कुल 10,909 घटनाएं हुईं, जो 2023 की 36,663 घटनाओं की तुलना में 70 प्रतिशत कम थीं. लेकिन 2025 के हाल के आंकड़े दिखाते हैं कि समस्या अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है.
पंजाब में इस साल की स्थिति दिखाती है कि जागरूकता और नियमों का असर दिख रहा है. 415 घटनाओं तक गिरावट उत्साहजनक है, लेकिन 10 दिनों में तीन गुना वृद्धि याद दिलाती है कि यह समस्या जमीनी स्तर पर अभी भी मौजूद है. पर्यावरण संरक्षण, कृषि उत्पादन और किसानों की आर्थिक चिंता के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण है.
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(एजेंसी के इनपुट के साथ)