चीन और ऑस्ट्रेलिया के बीच डार्विन बंदरगाह को लेकर विवाद गहराता जा रहा है. तनावपूर्ण संबंधों के बीच खबर है कि ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज अगले हफ्ते अपने दूसरे आधिकारिक दौरे पर चीन पहुंचेंगे. अल्बानीज डार्विन बंदरगाह पर चीनी स्वामित्व को लेकर हाल के समय में आपत्ति जताते रहे हैं और माना जा रहा है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात में वो बंदरगाह से चीनी स्वामित्व पर बात कर सकते हैं.
हॉन्गकॉन्ग के अखबार 'साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट' को सूत्रों ने चीन दौरे में अल्बानीज के एजेंडे पर बात की. विश्लेषकों का कहना है कि अल्बानीज डार्विन बंदरगाह से चीनी स्वामित्व हटाने की बात करते हैं तो इससे बातचीत तनावपूर्ण हो सकती है.
पनामा नहर में चीनी स्वामित्व वाले बंदरगाहों पर अमेरिकी कार्रवाई से चीन भविष्य में निवेश को लेकर पहले ही हाई अलर्ट पर है और अगर अल्बानीज नियंत्रण हटाने की बात करते हैं तो तनाव बढ़ सकता है.
वहीं, एक सूत्र ने बताया कि ऑस्ट्रेलिया डार्विन पोर्ट को लेकर चीन के साथ तनावपूर्ण संबंध नहीं चाहता और संबंधों में मिठास बनाए रखने को लेकर ही अल्बानीज 15 जुलाई के आसपास चीन जा रहे हैं.
एक अन्य सूत्र ने बताया कि प्रधानमंत्री अल्बानीज चाइना इंटरनेशनल सप्लाई चेन एक्सपो में हिस्सा लेंगे. एक्सपो 2023 से हर साल चीन की राजधानी बीजिंग में आयोजित किया जाने वाला कार्यक्रम है. इस साल का आयोजन 16 जुलाई से 20 जुलाई तक चलेगा.
चुनावी कैंपेन में अल्बानीज ने बंदरगाह वापस लेने की कही थी बात
ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने दोबारा चुने जाने से पहले अपने चुनावी कैंपेन के दौरान कहा था कि उनकी सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर डार्विन बंदरगाह को उसके चीनी मालिकों से वापस खरीदने के लिए काम करेगी.
इसके तुरंत बाद, कैनबरा में चीन के राजदूत शियाओ कियान ने एक बयान में अल्बानीज के बयान को 'संदिग्ध' बताते हुए कहा कि चीनी कंपनी लैंडब्रिज ग्रुप, जिसे 2015 में बंदरगाह पर 99 साल का लीज दिया गया था - को अप्रत्याशित भू-राजनीतिक बदलावों के लिए सजा नहीं दी जानी चाहिए.
ऑस्ट्रेलिया ने चीन की सरकारी कंपनी लैंडब्रिज ग्रुप को 2015 में 99 साल की लीज पर दिया था. डार्विन पोर्ट को लेकर चीन-ऑस्ट्रेलिया के इस समझौते को लेकर ऑस्ट्रेलिया में राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेशी निवेश को लेकर चर्चा गर्म हो गई और बहुत से लोग चीन को बंदरगाह लीज पर दिए जाने का विरोध करने लगे.
ऑस्ट्रेलिया के लिए बेहद अहम है डार्विन बंदरगाह
यह बंदरगाह ऑस्ट्रेलिया के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम है क्योंकि यह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया की सैन्य और व्यापारिक गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण है. यहां ऑस्ट्रेलिया के अहम सहयोगी अमेरिकी मरीन कॉर्प्स की भी मौजूदगी रहती है. ऐसे में डार्विन बंदरगाह को चीन को लीज पर दिए जाने पर विवाद थम नहीं रहा है.
मेलबर्न स्थित कंसल्टंसी फर्म जियोपॉलिटिकल स्ट्रैटेजी के सह-संस्थापक और मुख्य रणनीतिकार माइकल फेलर ने कहा कि प्रधानमंत्री अल्बानीज अपने चीन दौरे में कम से कम यह जरूर सुनिश्चित करना चाहेंगे कि चीन-ऑस्ट्रेलिया के द्विपक्षीय और आर्थिक संबंधों डार्विन बंदरगाह पर चीन का निवेश से न्यूनतम प्रभावित हों.
न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी में कानून के प्रोफेसर झोउ वेइहुआन ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा चीन-ऑस्ट्रेलिया के द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है.
वो कहते हैं, 'लेकिन इसके लिए ऑस्ट्रेलिया को सबूत पेश करने होंगे कि उसकी सुरक्षा चिंताएं जायज हैं न कि केवल संदेह या राजनीतिक दावों के आधार पर वो बंदरगाह को वापस चाहता है.'
चीन बिना किसी ठोस सबूत के बंदरगाह से अपना नियंत्रण छोड़ने को तैयार भी नहीं होने वाला है.
दुनिया के 129 बंदरगाहों में चीन ने कर रखा है निवेश
अमेरिका स्थित काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस थिंक टैंक के एक डेटाबेस से पता चला है कि चीनी संस्थाओं न और उनकी उपस्थिति अंटार्कटिका को छोड़कर हर महाद्वीप में कम से कम एक बंदरगाह पर है.
ऑस्ट्रेलिया चीन बिजनेस काउंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष डेविड ओल्सन ने कहा कि दोनों देशों के बीच लगातार मतभेदों के बावजूद, अल्बानीज की आगामी यात्रा संकेत देती है कि दोनों देश संबंधों को सुधारने की इरादा रखते हैं.
ओल्सन ने कहा कि ऑस्ट्रेलियाई कंपनियां उन चीनी कंपनियों के साथ पार्टनरशिप करना चाहेंगी जो स्वच्छ ऊर्जा इंफ्रास्ट्रक्चर, बड़े पैमाने पर प्रोजेक्ट शुरू करने और एडवांस मैन्यूफेक्चरिंग जैसे क्षेत्रों में ताकत ला सकती हैं.
उन्होंने कहा कि RCEP (Regional Comprehensive Economic Partnership trade agreement]) के तहत क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को आकार देने के लिए मिलकर काम करने में भी रुचि बढ़ रही है, विशेष रूप से ग्रीन आयरन जैसे क्षेत्रों में.
ऑस्ट्रेलिया की सबसे बड़ी ऊर्जा कंपनियों ने अभी तक बीजिंग एक्सपो में अपनी उपस्थिति की सार्वजनिक रूप से पुष्टि नहीं की है. एक सूत्र ने बताया कि ब्रिटिश-ऑस्ट्रेलियाई खनन दिग्गज रियो टिंटो की वहां आने की प्लानिंग है लेकिन कंपनी ने इससे संबंधित किसी सवाल का जवाब नहीं दिया.
ऑस्ट्रेलिया के विदेश मामलों और व्यापार विभाग के अनुसार, 2024 में चीन ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा द्विपक्षीय व्यापारिक साझेदार था जिनके बीच 204.24 अरब डॉलर का व्यापार हुआ. ऑस्ट्रेलिया ने जितने भी शिपमेंट निर्यात किए उसमें से लगभग एक तिहाई चीन को गए.
स्टैटिस्टा के आंकड़े बताते हैं कि 2024 में ऑस्ट्रेलिया चीन का सबसे बड़ा लौह अयस्क आपूर्तिकर्ता था, जो देश के कुल आयात लगभग 1.24 अरब मीट्रिक टन में लगभग 74.3 करोड़ मीट्रिक टन है.
---- समाप्त ----