चीन में दिखीं किम जोंग की बेटी, क्या उत्तर कोरिया का वारिस तय हो चुका?

3 days ago 1

उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन हाल में चीन की विक्ट्री डे परेड में शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन के साथ दिखे. इन पावर लीडर्स का मिलना तो चर्चा में है ही, लेकिन साथ ही एक और नाम भी सुर्खियों में है. किम की बेटी किम जू ऐ. यह किम जू की पहली इंटरनेशनल मौजूदगी है. पीढ़ी-दर-पीढ़ी सत्ता संभालने वाले परिवार की अगली वारिस यह बच्ची हो सकती है. 

लेकिन उत्तर कोरिया हमेशा से पितृसत्तात्मक देश रहा. ऐसे में जबकि किम जोंग का बड़ा बेटा भी है, क्यों वे अपनी बेटी को चेहरा बना सकते हैं! साथ ही एक बड़ा सवाल ये भी है कि अब तक किम की बहन उनकी उत्तराधिकारी मानी जा रही थीं. वे बड़े मंचों पर भाई के साथ दिखती रहीं. पार्टी में भी उन्हें पद दिया गया. फिर क्या हुआ जो वे पिक्चर में पीछे दिखने लगीं!

शुरुआत नए चेहरे से. किम जू पहली बार लगभग तीन साल पहले अपने पिता के साथ एक मिसाइल लॉन्च में दिखीं. इसके बाद वे कई सैन्य कार्यक्रमों में दिखने लगीं, लेकिन देश के भीतर ही रहीं. पड़ोस में रहते और लगातार नजर रखने वाले देश साउथ कोरिया भी किम जू के बारे में खास जानकारी नहीं.

दरअसल कोरियाई लीडर अपने परिवार की जानकारी काफी सीमित रखते हैं. शादी के कुछ समय बाद तक किम ने अपनी पत्नी को भी गुप्त रखा था और बच्चों के जन्म के दौरान भी गोपनीयता बरती थी. केवल अनुमान है कि किम के तीन बच्चे हैं, जिनमें किम जू मंझली हैं. लेकिन सही-सही कितने बच्चे हैं और उनका क्रम क्या है, ये कोई पक्के तौर पर नहीं जानता. लेकिन यही बच्ची अकेली संतान है, जिनके होने की आधिकारिक पुष्टि उत्तर कोरियाई लीडरशिप ने की. बाकी बच्चे दिखाई नहीं देते हैं. 

Kim Jong Un north korea (Photo- AP)उत्तर कोरिया का समाज काफी पितृसत्तात्मक माना जाता है. (Photo- AP)

किम जू के बढ़ते असर का अंदाजा इससे लगा लें कि कमउम्र ये बच्ची डाक टिकट पर दिखने लगी. यहां तक कि कार्यक्रमों में उन्हें रेस्पेक्टेड डॉटर कहा जाने लगा. यहां बता दें कि रेस्पेक्टेड शब्द उत्तर कोरिया में सिर्फ अहम लोगों के लिए रिजर्व्ड शब्द है. किम जोंग के लिए भी इस टर्म का इस्तेमाल तब हुआ था, जब उन्हें भावी लीडर मान लिया गया था. 

दक्षिण कोरिया की इंटेलिजेंस सर्विस हर वक्त अपने इस पड़ोसी देश पर नजर रखती है. उसके हवाले से दावा किया गया कि किम जू को घुड़सवारी, स्कीइंग और तैराकी पसंद है. वे प्योंगयांग में घर पर ही पढ़ाई करती हैं, और 12 साल के आसपास की हैं. स्टैम्प पर तस्वीर आने के बाद से कयास लगने लगे कि वे संभावित लीडर हैं. हालांकि वक्त के साथ इसमें कई हेरफेर हो सकते हैं क्योंकि अब तक कुछ भी आधिकारिक नहीं हुआ था. 

यह भी हो सकता है कि किम अपनी बेटी को उत्तराधिकारी के तौर पर तैयार नहीं कर रहे हों, बल्कि अपने देश की पितृसत्तात्मक इमेज को तोड़ने के लिए ये सब कर रहे हों. ये देश भले ही खुद कम्युनिस्ट बताता हो लेकिन असल में यह बंद समाज है, जहां का कल्चर कन्फ्यूशियनिज्म के असर में है. यहां पुरुष ही घर और समाज को चलाते हैं. कोरियाई महिलाएं कामकाजी तो हैं लेकिन राजनीति और सेना में उनका कोई रोल नहीं. 

Kim Jong Un with his daughter (Photo- AP) किम जू घरेलू सैन्य मौकों पर भी अक्सर नजर आ रही हैं. (Photo- AP)

हाल-हाल के सालों में जोंग परिवार की कुछ महिलाएं पर्दे के पीछे ताकतवर दिखने लगीं, जैसे किम की बहन किम यो. अपने पिता की मौत के बाद वे पहली बार सार्वजनिक तौर पर दिखीं. इसके बाद से ही वे पार्टी के कामकाज में नजर आने लगीं. पोलित ब्यूरो में उन्हें जगह भी मिल गई. उन्हें दूसरा सबसे ताकतवर चेहरा माना जाने लगा. कई बार किम की गिरती सेहत की अफवाहों के बीच भी बहन का नाम और मौजूदगी आती रही. वे अमेरिका पर भी कड़े बयान दे चुकीं.

हालांकि पिछले कुछ समय से वे उतनी एक्टिव नहीं दिख रहीं. चीन के कार्यक्रम में वे दिखीं लेकिन किम जू के पीछे. ये भी हो सकता है कि राजनीतिक शिफ्ट में बहन की भूमिका अपनी भतीजी के गाइड की तरह रहे. चूंकि ये देश अपने में काफी बंद रहता है, लिहाजा अभी पक्की तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता, बस, कयास लगाए जा रहे हैं. 

क्या कोई इंटरनेशनल सिग्नल देना चाहते हैं किम

उत्तर कोरिया वंशवाद पर चला आ रहा है. किम से पहले उनके पिता और दादा लीडर रहे. किम अगर चाहते हों कि उनके बाद सत्ता घर में ही बनी रहे तो पहले से तैयारी करनी होगी. एकाएक वे अपनी बेटी को खड़ा कर दें तो पार्टी और मिलिट्री अधिकारियोंमें बखेड़ा हो सकता है. ऐसे में वे पहले से ही किम जू को प्रमोट कर रहे हैं ताकि पिक्चर साफ रहे. साथ ही बेटी को साथ रखते हुए वे अपनी ज्यादा मानवीय छवि भी तैयार कर रहे हैं ताकि बाकी देश उनसे कनेक्ट कर सकें. 

बेटी को चीन में इतने अहम मौके पर साथ ले जाना दूरगामी रणनीति है. यह पश्चिम के साथ दक्षिण कोरिया को भी एक इशारा है कि उत्तर कोरिया अपने राजनीतिक भविष्य के बारे में लापरवाह नहीं. 

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