चुनावी वादों के हिसाब से बिहारवासी किसे वोट देंगे - जो सत्ता में आने पर देगा, या जो पहले से दे रहा है?

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बिहार चुनाव में बदलाव की बयार बहाई जा रही है. सत्ता परिवर्तन के लिए लड़ाई तो तेजस्वी यादव ही लड़ते रहे हैं, लेकिन प्रशांत किशोर अपनी अलग ही मुहिम चला रहे हैं. प्रशांत  किशोर यानी पीके की मुहिम में निशाने पर तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार दोनों ही हैं. 

तेजस्वी यादव की कोशिश है कि नीतीश कुमार को सत्ता से हटाकर महागठबंधन को कब्जा दिलाया जाए. नीतीश कुमार, जैसे भी मुमकिन हो, सत्ता में बने रहना चाहते हैं. सिर्फ तेजस्वी की कौन कहे, बीजेपी चाहे तब भी और न चाहे तब भी, नीतीश कुमार अपने मिशन में लगे हुए हैं. 

तेजस्वी यादव का आरोप है कि बिहार की 20 साल पुरानी सरकार से लोग ऊब चुके हैं, और मुख्यमंत्री नीतीश होश में नहीं हैं. प्रशांत किशोर भी नीतीश कुमार पर सवाल उठा रहे हैं, और कहते हैं, तेजस्वी नौवीं फेल हैं - और ऐसा बोलकर वो तीसरे विकल्प के तौर पर जन सुराज पार्टी को पेश कर रहे हैं. 

चुनावी वादों की बात करें, तो प्रशांत किशोर के पास भी अपना एजेंडा है, लेकिन मुख्य मुकाबला तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार और दोनों के चुनावी वादों के बीच ही है - अब ये बिहार के लोगों पर निर्भर करता है कि वे तेजस्वी यादव को आजमाने का फैसला करते हैं, या नीतीश कुमार को ही आगे भी बनाए रखना चाहते हैं? 

तेजस्वी बनाम नीतीश कुमार के वादे, और घोषणाएं

बिहार में चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले नीतीश कुमार कई नई घोषणाएं कर चुके थे. सबसे ज्यादा चर्चित रहा, मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना. योजना के तहत एक करोड़ से ज्यादा महिलाओं को 10-10 हजार रुपये दिए जा चुके हैं. महिलाओं के लिए तो पहले से ही वो कई योजनाएं चलाते आ रहे हैं, आने वाली पारी के लिए भी नई घोषणाएं भी कर चुके हैं. 

तेजस्वी यादव का दावा है कि नीतीश कुमार उनकी ही योजनाओं की कॉपी की है. जीविका दीदी के मामले में भी तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के बाद अलग से वादे किए हैं. जीविका दीदी को तेजस्वी यादव ने स्थाई नियुक्ति के साथ 30 हजार महीने वेतन देने की घोषणा की है. 

तेजस्वी यादव की सबसे बड़ी घोषणा तो बिहार के हर घर के लिए सरकारी नौकरी देने की है. महिलाओं के लिए कैश ट्रांसफर स्कीम भी उनके पास है, माई बहिन योजना. हाल ही में पंचायतों के लिए भी घोषणा की है. मानदेय भत्ता दो गुणा किए जाने से लेकर 50 लाख का बीमा कराए जाने तक. लेटेस्ट घोषणा वक्फ कानून को लेकर है. 

कटिहार की रैली में तेजस्वी यादव ने एक और चुनावी वादा किया, 'अगर इंडिया ब्लॉक सत्ता में आता है तो हम वक्फ अधिनियम को कूड़ेदान में फेंक देंगे.' वक्फ (संशोधन) कानून छह महीने पहले ही संसद से पास हुआ था. नीतीश कुमार ने वक्फ कानून के लिए संशोधन प्रस्तावित किए थे, और बताया गया कि वे मान लिए गए. 

बिहार के लोगों को किस पर ज्यादा भरोसा है?

अब अगर सवाल ये है कि बिहार में चुनावी वादों का सबसे ज्यादा फायदा किसे मिल सकता है? 

ये जवाब कई तरीके से खोजा जा सकता है. मुद्दा तो यही है कि लोग किसकी बातों पर यकीन करते हैं? और बीते चुनावों में जब जब ऐसा हुआ है, ऐसे चुनावी वादों का फायदा किसे मिला है? 

थोड़ा पहले के मामले देखें तो 2019 के आम चुनाव में राहुल गांधी ने किसानों के लिए NYAY योजना की घोषणा की थी. योजना अच्छी थी, लेकिन काफी देर से घोषणा हुई, और लोगों तक बात पहुंच नहीं सकी. और उसी चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के लिए सम्मान राशि देना शुरू कर दिया. बीजेपी की चुनावी कामयाबी के लिहाज से तो योजना को गेमचेंजर ही माना जाता है. 

2019 के बाद भी कांग्रेस की तरफ से कई चुनावी वादे किए,  लेकिन किसी का भी फायदा नहीं मिला. 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से प्रियंका गांधी वाड्रा ने कई प्रयोग किए, और बहुत सारे वादे किए, लेकिन वो योगी आदित्यनाथ की सत्ता में वापसी नहीं रोक पाईं. 

2023 का मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव भी इस मामले में सटीक मिसाल है. कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार कमलनाथ ने भी महिलाओं के लिए कैश ट्रांसफर की स्कीम का चुनावी वादा किया था, लेकिन मध्य प्रदेश के तत्कालनीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुनाव से पहले से ही महिलाओं के खाते में पैसा देना शुरू कर दिया था - और नतीजा ये हुआ कि बीजेपी की सत्ता में वापसी हो गई. 

मध्य प्रदेश के बाद हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में भी ऐसी योजनाओं का फायदा मिला. दिल्ली का मामला थोड़ा अलग था. मध्य प्रदेश, हरियाणा और महाराष्ट्र में तो भारतीय जनता पार्टी की सरकारें थीं, लेकिन दिल्ली में बीजेपी सत्ता में वापसी के लिए काफी साल से जूझ रही थी. 

अन्य राज्यों का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो महिलाओं के लिए और दूसरी कल्याणकारी स्कीम का फायदा आम आदमी पार्टी को मिलना चाहिए था, क्योंकि उसकी दिल्ली में सरकार थी. लेकिन, लोगों ने आम आदमी पार्टी के मुकाबले बीजेपी पर ज्यादा भरोसा जताया और सत्ता सौंप दी. 

असल में बीजेपी की तरह अरविंद केजरीवाल योजनाओं पर अमल नहीं कर सके. सिर्फ वादे करते रहे. लोगों को ये समझाते रहे कि अगर बीजेपी की सरकार बनी, तो सारी तात्कालिक योजनाओं को बंद कर देगी. लेकिन, एक दिन प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को समझाया कि पहले से चल रही कोई भी कल्याणकारी योजना बंद नहीं की जाएगी, पासा पलट गया. आम आदमी पार्टी की जगह लोगों को बीजेपी के चुनावी वादे पर ज्यादा भरोसा हुआ, और सत्ता सौंप दी. 

देखा जाए तो बिहार चुनाव में भी मिलता जुलता नतीजा ही देखने को मिल सकता है. बिहार के लोगों के सामने एक बाकी राज्यों का मॉडल है, और दूसरा दिल्ली मॉडल - देखना है बिहार के लोगों को कौन सा मॉडल ज्यादा पसंद आता है. 

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