इंतजार की घड़ियां खत्म होने जा रही हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 30 अक्टूबर को साउथ कोरिया के बुसान में मिलने जा रहे हैं. यह बैठक APEC समिट से इतर होगी, जिस पर दुनियाभर की निगाहें होंगी.
अमेरिका और चीन दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं. और ये बात भी सब जानते हैं कि इन दोनों देशों के बीच कट्टर दुश्मनी है. एक तरफ चीन, अमेरिका को पछाड़कर दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति बनना चाहता है तो दूसरी तरफ अमेरिका अपनी मौजूदा स्थिति को बरकरार रखने के लिए संघर्ष कर रहा है. इसी खींचतान के बीच ये मुलाकात होने जा रही है. आज से कुछ दशक पहले तक दुनिया के नक्शे पर दो बड़ी महाशक्तियां होती थीं, जिनमें एक था अमेरिका और दूसरी तरफ था सोवियत संघ.
उस वक्त दुनिया के ज्यादातर देश इन दोनों महाशक्तियों के बीच बंटे हुए थे और ये एक Bipolar World था, जहां बाकी देशों को ज्यादा स्थान नहीं मिलता था और अमेरिका की छवि एक सुपर पावर देश की होती थी. लेकिन आज के Multipolar World में वैश्विक राजनीति पूरी तरह से बदल गई है और अब इसमें कई देश दुनिया की राजनीति को प्रभावित कर रहे हैं. इनमें चीन की भूमिका बहुत अहम है, जो अमेरिका को पछाड़कर दुनिया में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है और इस मुलाकात को भी चीन एक मौके के रूप में भुनाने की कोशिश करेगा.
इस मुलाकात में ये नहीं देखा जाएगा कि दोनों देशों के बीच किन मुद्दों पर सहमति बनी और क्या समझौते हुए बल्कि इस मुलाकात से ये तय होगा कि कौन सा देश पहले झुकता है और अपने विरोधी के सामने कमजोर पड़ता है. सबसे बड़ी बात ये है कि इस मुलाकात से पहले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के खास दोस्त और अमेरिका को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानने वाले उत्तर कोरिया के सुप्रीम लीडर किम जॉन्ग उन राष्ट्रपति ट्रंप को एक खास संदेश देना चाह रहे हैं.
(एआई जेनरेटेड)जब दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात होने वाली है, तब इसमें सबसे बड़ा मुद्दा Rare Earth Minerals यानी दुर्लभ खनिजों का हो सकता है. आज पूरी दुनिया के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या जिस तरह कच्चे तेल को लेकर इतिहास में युद्ध लड़े गए और कई देशों में खून-खराबा हुआ, क्या वैसे ही संघर्ष अब Rare Earth Minerals को लेकर भी हो सकता है और ये हम क्यों कह रहे हैं.
असल में आज से तीन दशक पहले तक अमेरिका और पश्चिम के विकसित देश Rare Earth Minerals को बहुत ज्यादा महत्व नहीं देते थे. इन देशों का मानना था कि इन दुर्लभ खनिजों को निकालने के लिए खनन करना पड़ता है और इस खनन से प्रदूषण होता है, इसमें लोग भी ज्यादा लगते हैं और पैसा भी ज्यादा खर्च होता है. यही सब सोचते हुए इन विकसित देशों ने दुर्लभ खनिजों के उत्पादन से खुद को कर लिया और इनकी सोच ये थी कि ये काम तो गरीब और विकासशील देशों में ही किया जाए और इसका बाद ये अमीर देश इन विकासशील देशों से इन Rare Earth Minerals को आयात कर लेंगे. लेकिन समय बदला और समय के चक्र ने इन्हीं Rare Earth Minerals को दुनिया के लिए तेल से भी ज्यादा ज़रूरी बना दिया और चीन ने इसका सबसे ज्यादा फायदा उठाया जब पश्चिम के अमीर देश दुर्लभ खनिजों के उत्पादन को छोटा काम समझ रहे थे और इससे खुद को अलग कर रहे थे, तब चीन ने इनके उत्पादन में सबसे ज्यादा निवेश किया.
चीन ने ना सिर्फ इन दुर्लभ खनिजों के लिए अपने देश में बड़े स्तर पर खनन किया बल्कि वो इनकी प्रोसेसिंग में भी दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति बन गया. चीन इस बात को शुरुआत में ही समझ गया था कि.. इन खनिजों का खनन तो कोई भी देश कर सकता है लेकिन इन खनिजों को अलग करना और इन्हें प्रोसेस करने के बाद इस्तेमाल करना हर किसी को नहीं आ सकता और यही बात चीन के पक्ष में गई और उसने दुर्लभ खनिजों की प्रोसेसिंग के लिए दुनिया को खुद पर निर्भर बना लिया.

आज स्थिति ये है कि दुनिया में Rare Earth Minerals का 70 प्रतिशत खनन चीन में होता है लेकिन जब प्रोसेसिंग की आती है तो 90 प्रतिशत Rare Earth Minerals चीन से ही दुनिया में निर्यात होते हैं.
आज जापान खुद अपने 60 प्रतिशत Rare Earth Minerals के लिए चीन पर निर्भर है जबकि अमेरिका अपने 70 प्रतिशत दुर्लभ खनिजों के लिए चीन पर निर्भर है. अमेरिका में दुनिया के 14 प्रतिशत Rare Earth Minerals का खनन होता है लेकिन अमेरिका की बड़ी मजबूरी ये है कि वो इन खनिजों को रिफाइन करके इस्तेमाल नहीं कर सकता और उसे चीन से ही मदद लेनी पड़ती है.
हमसे शुरुआत में भी कहा था कि तेल को लेकर दुनिया में 180 से ज्यादा युद्ध और सैन्य संघर्ष हुए और इनका कारण यही था कि तेल सभी देशों की ज़रूरत थी और आज इसी तरह Rare Earth Minerals पूरी दुनिया की ज़रूरत हैं और इनके 90 फीसदी बाजार पर चीन का एकछत्र राज है, जिसकी वजह से राष्ट्रपति ट्रम्प भी दक्षिण कोरिया में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलने वाले हैं.
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