सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एनसीईआरटी, केंद्र सरकार और छह राज्यों को नोटिस भेजा है. यह नोटिस एक जनहित याचिका (PIL) पर दिया गया, जिसमें मांग की गई है कि स्कूलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर की ट्रांसजेंडर-समावेशी लैंगिक शिक्षा (CSE) लागू की जाए. यह याचिका दिल्ली के 12वीं कक्षा के एक छात्र ने दाखिल की थी. छात्र का कहना है कि एनसीईआरटी और एससीईआरटी की किताबों से ट्रांसजेंडर से जुड़ी सामग्री हटा दी गई है. इससे छात्रों को सही और संवेदनशील जानकारी नहीं मिल पा रही, जो समझ और समावेशिता बढ़ाने के लिए जरूरी है.
क्लास 12 के छात्र दर्ज की याचिका
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एनसीईआरटी, केंद्र सरकार और छह राज्यों को नोटिस भेजा है. यह नोटिस एक 12वीं के छात्र की याचिका पर भेजा गया. छात्र ने कहा कि स्कूल की किताबों में ट्रांसजेंडर से जुड़ी पढ़ाई हटा दी गई है. इससे बच्चों को सही और जरूरी जानकारी नहीं मिल पा रही है और वे समावेशिता (Inclusivity) सीखने से वंचित हो रहे हैं. इसलिए छात्र ने मांग की है कि स्कूलों में ट्रांसजेंडर-समावेशी शिक्षा फिर से शामिल की जाए.
कानून और पुराने आदेशों की अनदेखी
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ (2014) और सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलंटरी एक्शन बनाम भारत संघ (2024) में बाध्यकारी न्यायिक निर्देशों के साथ-साथ ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के बावजूद, याचिका में कहा गया है कि समावेशी शिक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में बहुत कम प्रगति हुई है.
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन, अधिवक्ता विशाल सिन्हा की सहायता से पेश हुए. शंकरनारायणन ने दलील दी. इस न्यायालय के निर्देशों और स्पष्ट वैधानिक आवश्यकताओं के बावजूद, सरकार कह रही है कि हम इसे लागू नहीं कर रहे हैं. यह बहुत दुखद स्थिति है. उन्होंने आगे कहा कि एक आरटीआई आवेदन के जवाब में, एनसीईआरटी ने दावा किया कि उसे सर्वोच्च न्यायालय के पिछले आदेशों की जानकारी नहीं थी.
कई राज्यों में खामियां, केरल अपवाद
याचिका में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, तमिलनाडु और कर्नाटक सहित कई राज्यों में पाठ्यक्रम में प्रणालीगत अंतराल को उजागर किया गया है, जिसमें केरल आंशिक अपवाद है.
इसमें तर्क दिया गया है कि लिंग पहचान, लिंग विविधता और लिंग और लिंग के बीच अंतर पर संरचित या जांच योग्य सामग्री का अभाव संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19(1)(ए), 21 और 21 ए के साथ-साथ अनुच्छेद 39(ई)-(एफ), 46 और 51(सी) के तहत निर्देशक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है.
याचिका में यह भी रेखांकित किया गया है कि भारत की ट्रांसजेंडर साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से काफी कम है - 57.06 प्रतिशत, जबकि सामान्य जनसंख्या के लिए यह लगभग 74 प्रतिशत है - जो बहिष्कार और नीति निष्क्रियता के संचयी प्रभाव को दर्शाती है.
ट्रांसजेंडर साक्षरता दर चिंताजनक
23 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों पर काफी हद तक निर्भर हैं, इसलिए ट्रांसजेंडर-समावेशी सीएसई की कमी के संवैधानिक अनुपालन और सामाजिक न्याय दोनों पर दूरगामी परिणाम होंगे. एनसीईआरटी, एससीईआरटी और अन्य संबंधित प्राधिकारियों को निर्देश देने की मांग करते हुए, याचिकाकर्ता ने वैज्ञानिक रूप से सटीक, आयु-उपयुक्त और ट्रांसजेंडर-समावेशी सीएसई को देश भर के मुख्य पाठ्यक्रम और परीक्षा योग्य पाठ्यपुस्तकों में शामिल करने की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले पर केंद्र, एनसीईआरटी और छह राज्यों से जवाब मांगा है.
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