ढाका यूनिवर्सिटी के छात्र चुनाव ने इस बार बांग्लादेश की राजनीति को चौंका दिया है. जमात-ए-इस्लामी के छात्र संगठन इस्लामी छात्र शिविर ने 1971 के बाद पहली बार जीत दर्ज की है. यह नतीजा न सिर्फ वहां की छात्र राजनीति का समीकरण बदलता है, बल्कि इसे लेकर अलग-अलग तरह की व्याख्याएं सामने आ रही हैं.
विशेषज्ञों का एक बड़ा वर्ग मानता है कि यह जीत इस बात का संकेत है कि बांग्लादेश में कट्टरपंथी सोच गहराई तक पैठ बना रही है. खास तौर पर इसलिए क्योंकि ढाका विश्वविद्यालय को प्रगतिशील सोच और लोकतांत्रिक मूल्यों की धुरी माना जाता है. ऐसे संस्थान में कट्टरपंथी संगठन की जीत को भारत के लिए भी अच्छा संकेत नहीं माना जा रहा.
बांग्लादेश की राजनीति पर क्या असर?
हालांकि, दूसरी राय इससे बिल्कुल अलग है. कुछ जानकारों का कहना है कि इन चुनावों का बांग्लादेश की राष्ट्रीय राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा. उनकी दलील है कि अवामी लीग और उसका छात्र संगठन प्रतिबंधित हैं. लिहाजा, जिन छात्रों का झुकाव अवामी लीग की विचारधारा की ओर था, उन्होंने इस बार BNP के बजाय जमात-ए-इस्लामी के छात्र संगठन को वोट देना पसंद किया.
बांग्लादेश के वरिष्ठ पत्रकार अब्दुल बारी कहते हैं, 'अवामी लीग और BNP हमेशा से एक-दूसरे के राजनीतिक प्रतिद्वंदी रहे हैं. अवामी लीग के शासनकाल में जमात-ए-इस्लामी के छात्र संगठन को परोक्ष तौर पर अवामी लीग के छात्र संगठन से मदद मिलती रही है, क्योंकि अवामी लीग BNP को अपना बड़ा शत्रु मानता है. इस बार भी ऐसा ही हुआ—अवामी लीग समर्थित छात्रों ने BNP को रोकने के लिए इस्लामी छात्र शिविर का समर्थन किया. लेकिन इसका असर बांग्लादेश की राष्ट्रीय राजनीति पर नहीं पड़ेगा.'
शशि थरूर ने जताई चिंता
इस बीच, भारत से भी इस परिणाम पर प्रतिक्रिया आई है. कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने X पर लिखा कि यह घटना भारतीयों की नजर में भले ही छोटी लगे, लेकिन भविष्य के लिए यह चिंताजनक संकेत है. उनके अनुसार, बांग्लादेश में लोग अब अवामी लीग और BNP, दोनों से निराश हो चुके हैं और 'दोनों घरानों से छुटकारा' चाहते हुए जमात-ए-इस्लामी की तरफ रुख कर रहे हैं. थरूर ने सवाल उठाया कि अगर यही रुझान जारी रहा, तो क्या फरवरी 2026 के आम चुनावों में भारत को अपने पड़ोस में जमात की बहुमत वाली सरकार का सामना करना पड़ेगा?
यानी, ढाका विश्वविद्यालय में इस्लामिक संगठन की जीत भले ही प्रतीकात्मक तौर पर बड़ी लगे, लेकिन इसके राजनीतिक मायने अब सीमा पार भारत तक चर्चा का विषय बन चुके हैं.
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