तंत्र-मंत्र, भूत-प्रेत और मारण शक्ति... लबूबू पहली नहीं हजारों साल पुरानी है डॉल्स की खौफनाक परंपराएं

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सोशल मीडिया, चर्चाएं और फिर विवाद... इनका साथ चोली-दामन सरीखा है. अब सोशल मीडिया पर वायरल है एक डॉल लबूबू. लोग इसे लाबुबू भी कहते हैं. खैर, जो भी कहें लेकिन पूरा मैटर है बड़ा दिलचस्प.

बाजार में एक डॉल आई, उसकी बिक्री बढ़ी, लोगों तक पहुंची, पहले-पहले तो क्यूट लगी और फिर धीरे-धीरे उसकी क्यूटनेस किसी शैतान सरीखी लगने लगी. अब इस बात की चर्चा जोरों पर है कि लबूबू को मत खरीदना, क्योंकि ये एक शैतानी डॉल है. बुरी आत्माओं को आकर्षित करती है और घर में रखने पर ये कुछ अनिष्ट कर सकती है.

एक डॉल जिसने खिलौने ही फैशन इंडस्ट्री पर भी किया है कब्जा

खैर, ये सारी बातें अभी सोशल मीडिया पर ही हैं, और इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है, लेकिन ये पूरा मामला बहुत दिलचस्प हो गया है. दिलचस्प इसलिए, क्योंकि इसकी पैठ सिर्फ बच्चों को रिझाने वाले खिलौनों तक नहीं है, बल्कि इस डॉल ने फैशन और स्टाइल इंडस्ट्री को भी पोसेस्ड कर लिया है.

पौराणिक कथाओं के खिलौने जो खेलते ही नहीं बोलते भी थे 
भारतीयों बच्चों के खिलौने की बात आती है तो हमारी पारंपरिक-पौराणिक कथाओं के खिलौने आस-पास के परिवेश से ही होते थे. जैसे श्रीराम के लिए सोने-चांदी के घोड़े, झुनझुने और हाथी-मोर ढलवाए गए थे, लेकिन उन्हें एक दिन चांद पसंद आ गया तो उसे परात में पानी भरकर दिखाया गया. किवदंतियां तो ऐसी हैं कि ये सारे खिलौने असल में उनके ही भक्त थे और रात में ये सभी सजीव हो उठते थे. वे सभी किसी न किसी श्राप या वरदान के प्रभाव में खिलौने के तौर पर थे और इस तरह उन्हें अपने प्रभु की चरण सेवा का अवसर मिल रहा था. भागवत कथा और पौराणिक कथाओं पर आधारित कथा सरित्सागर में ऐसी तमाम कहानियां शामिल हैं.

हालांकि आपको अगर पता चले कि घुटनों के बल चलने वाला आपका बालक रात में खिलौनों से बात करता है तो आपके होश ही उड़ जाएंगे.

श्रीकृष्ण के भी खिलौने जीवंत ही माने जाते थे. वह तो गाय और बछियों के साथ भी खेलते थे और सूरदास-रसखान के तो पद बताते हैं कि गऊएं कृष्ण से बात करती थीं. कई पदों में तो कृष्ण की मुरली को भी वाचाल बताया गया है, जिसमें से सिर्फ मधुर धुन ही नहीं निकलती थी, बल्कि वह इतराती भी थी कि खुद कृष्ण उसे होठों से लगाते हैं. सूरदास का एक पद भी है, जिसमें गोपियां मुरली से जलन करते हुए कहती हैं कि, री बंसी कौन तप तुम कियो, गिरधर के मुख से लागी, अधरों का रस पियो' और इस पर मुरली इतरा कर कहती है कि, मैं तो उनकी सबसे प्यारी सखी हूं, मुझे तुम लोगों की तरह तपस्या की जरूरत नहीं है.

लबुबू...जिसने दुनिया भर में तहलका मचा रखा है

खैर... ये तो हुई पुराणों में बोलते-डोलते खिलौनों की बातचीत, लबुबू पर लौटते हैं. प्यारी, विचित्र, या अजीब, आप चाहे जो मान लें, लबुबु के इन रोएंदार खिलौनों ने दुनिया भर में तहलका मचा दिया है. चीन की खिलौना कंपनी 'पॉप मार्ट' ने इसे बनाया जो उनकी "द मॉन्स्टर्स" सीरीज से ही जुड़ा हुआ है. शंघाई से लंदन तक और अब भारत-जापान जैसे अन्य देशों में भी लबुबु खरीदने की होड़ सी है. सोशल मीडिया का दौर है तो न खरीद पाने वालों को फोमो भी हो रहा है.

बीबीसी की एक रिपोर्ट कहती है कि, लबुबु की लोकप्रियता ने पॉप मार्ट के मुनाफे को पिछले एक साल में तीन गुना बढ़ा दिया है. लबुबु एक काल्पनिक पात्र और ब्रांड है, जिसे हॉन्ग कॉन्ग के कलाकार कासिंग लंग ने अपनी "द मॉन्स्टर्स" सीरीज के लिए बनाया.

Labubu Doll

क्या आपके दिमाग में भ्रम डालती है लबुबू?

वैसे इसके नाम का कोई मतलब नहीं है, ये बस ऐसे ही है. जिस तरह इसे लोगों की इतनी अटेंशन, इतना लब (Love) मिल रहा है तो इसका लबुबू नाम ठीक ही है. हालांकि नाम से अधिक महत्व रखता है इसका लुक. नुकीले कान, बड़ी आंखें और नौ दांतों वाली एक अलग सी लगने वाली शरारती मुस्कान. लबुबू का ये लुक ही इसे यादगार बना देता है और ये ऐसी है कि आप एक बार इसे देख लें तो दिमाग के याद रखने वाले कोने में ये आसान सी शक्ल फीड की तरह स्टोर हो जाती है. बस यही एक खूबी आगे जाकर कई तरह के अविश्वासों, मान्यताओं और फिर डरावनी कहानियों के लिए अच्छा बेस बन जाती है.

वैसे पॉप मार्ट ने मीडिया रिपोर्ट में जो बताया उसके मुताबिक, लबुबू "दयालु हृदय वाली है, जो मदद करना चाहती है, लेकिन अक्सर उसके एक्ट गलत पड़ जाते हैं. सोशल मीडिया पर वायरल उसी मीम की तरह, कि 'कर्म करने जाते हैं और कांड हो जाता है.' यह गुड़िया "बिग इनटू एनर्जी", "एक्साइटिंग मैकरॉन" जैसी सीरीज में नजर आई थी और वहां इसके साथी कैरेक्टर हैं, जिमोमो और टायकोको, जो इसी तरह काफी लोकप्रिय हैं.

सिलसिला जो साल 2010 से शुरू हुआ

हालांकि जो क्रेज अभी हमारे बीच ट्रेंड बनकर पहुंचा है, उसकी शुरुआत साल 2010 में हुई थी. एक उद्यमी वांग निंग ने बीजिंग में पॉप मार्ट को एक गिफ्ट शॉप के तौर पर शुरू किया था. 2016 में उन्होंने स्कीम शुरू की "ब्लाइंड बॉक्स".  जिसमें खरीदार को पैकेज खोलने पर ही पता चलता है कि अंदर क्या है और इसने कंपनी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया. 2019 में कासिंग लंग के साथ साझेदारी के बाद लबुबु ने पॉप मार्ट की बढोतरी को और तेज दिया. दिसंबर 2020 में हॉन्ग कॉन्ग स्टॉक एक्सचेंज में इसके शेयर 500% से अधिक बढ़ गए.

अब पॉप मार्ट 30 से अधिक देशों में 2,000 से ज्यादा "रोबोशॉप्स" चलाता है. 2022 के अंत में, महामारी के बाद चीन में लबुबु की लोकप्रियता काफी बढ़ी, क्योंकि लोग भावनात्मक राहत चाहते थे. 2023 में दक्षिण-पूर्व एशिया में इसका क्रेज फैला, और अप्रैल 2024 में के-पॉप स्टार लिसा की इंस्टाग्राम पोस्ट ने इसे वैश्विक बना दिया. रिहाना और डेविड बेकहम जैसे सितारों ने इसे और बढ़ावा दिया.

...लेकिन क्या ये गुड़िया शैतानी ताकत रखती है?

असल में 9 दांतों के साथ हंसते चेहरे वाली लबुबू को लेकर शैतानी ताकत वाले दावे भी किए जाते हैं. एक वायरल पोस्ट में दावा किया गया कि लबुबु गुड़िया प्राचीन दानव पज़ुज़ु से जुड़ी हुई है. कई इंग्लिश वेबसाइट में ऐसी खबरें हैं कि, यह सब तब शुरू हुआ जब एक इंस्टाग्राम यूजर ने भूरी लबुबु गुड़िया को एक दानव की तस्वीर के साथ पोस्ट किया, जिसमें चेतावनी दी गई- 'इस शैतानी खिलौने को अपने बच्चों या अपने लिए न खरीदें!!'

एक शैतानी किरदार पजुजु से प्रभावित है लबुबू

वीडियो में कुछ सेकंड बाद, हमें द सिम्पसन्स (सीज़न 29, एपिसोड 4) की एक झलक मिलती है. यहां मार्ज एक पज़ुज़ु की मूर्ति खरीदती है और उसके बाद उसका बच्चा भूत-प्रेत के प्रभाव में आ जाता है. इस वीडियो के सामने आने के बाद लोगों ने अपने लबुबू डॉल्स को जलाना और नष्ट करना शुरू कर दिया और सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियोज की भी बाढ़ सी है. हालांकि, इस बात का कोई सबूत नहीं है कि लबुबु शैतानी है या दानवों से जुड़ा हुई है.

annabelle Dollएनाबेल भी एक हॉरर डॉल है, जिसे फिल्मों से काफी प्रसिद्धि मिली है

मेसोपोटामियाई पौराणिक दानव है पज़ुज़ु

लबुबु को प्राचीन मेसोपोटामियाई पौराणिक दानव पज़ुज़ु से जोड़ा जाता रहा है. पज़ुज़ु को "द एक्सॉर्सिस्ट" में चित्रित किया गया है और इसे पंखों, पूंछ और उभरी हुई आंखों वाले प्राणी के रूप में दर्शाया गया है.  “The Monsters” एक "नॉर्डिक परी कथा" है और लबुबू इस पूरी सीरीज का सबसे आइकॉनिक मॉन्स्टर है. उसके नुकीले कान और तीखी मुस्कान उसे पहचान दिलाती है. हालांकि आम लोग प्राचीन मेसोपोटामियन पौराणिक पात्रों से परिचित नहीं होते, लेकिन पज़ुज़ु को लोकप्रिय फ़िल्म "The Exorcist" में देखा गया था, जहां यह 12 वर्षीय लड़की रेगन मैकनील को अपने कब्जे में ले लेता है.

यह शायद संयोग ही है कि The Simpsons के 2017 के "Treehouse of Horror XXVIII" एपिसोड की क्लिप, जिसमें होमर Simpson पज़ुज़ु की मूर्ति मंगवाते हैं, वायरल दावों के साथ जोड़ी गई, लेकिन इन क्लिप्स या इंटरनेट पर फैलाए गए डराने वाले दावों के बावजूद Labubu और Pazuzu के बीच कोई सीधा संबंध नहीं लगता, लेकिन दावे हैं और दावों का क्या?

भारत की पौराणिक तंत्र विद्या और गुड़ियों का रहस्य भरा संसार

खैर, ये सारे दावे सच भी हों तो कोई बड़ी बात नहीं. ऊपर आपको श्रीराम-श्रीकृष्ण के जीवंत खिलौनों के बारे में बताया गया, लेकिन ये सब यहीं तक सीमित नहीं है. तंत्र विद्या में खिलौनों का अलग ही रहस्यलोक है. भागवत कथा में ही इसका एक जिक्र आता है. राक्षस शंबरासुर की रक्षा करने के लिए दैत्यगुरु शुक्राचार्य श्रीकृष्ण को मारने के लिए मारण और त्राटक क्रिया अपनाते हैं. इस प्रक्रिया के लिए वह कुशा नाम की घास से एक मानव शरीर बनाते हैं और मंत्रों की शक्ति से कृत्या को प्रकट करते हैं.

भागवत की कथा में शुक्राचार्य की भेजी गई कृत्या

वह कृत्या कृष्ण पर हमले के लिए जाती है, लेकिन कृष्ण जो खुद हर विद्या के विद्याधर हैं, वह इस कृत्या को निरस्त कर देते हैं. इस तरह वह लौटकर शंबरासुर के परिवार पर ही विपत्ति बन जाती है. तंत्र की शब्दावली में इसे मारण क्रिया कहा जाता है और आज भी श्मशानों में कई तांत्रिक इसकी अघोर साधना करते हैं.

ऋषि रैभ्य की पौराणिक कहानी, जो पिशाच विद्या का प्रयोग करते हैं

महाभारत के खिल भाग में ही एक कथा ऋषि रैभ्य की आती है. रैभ्य ने भी अपने एक शत्रु को दंड देने के लिए पिशाच विद्या का प्रयोग किया था. उन्होंने मंत्र सिद्ध मानव आकृति के कपाल में भटकते हुए पिशाच को बांधा और उसके जरिए अपने शत्रु की हत्या कराई. बाद में वह पिशाच जो वैसे भी कर्मदंड के कारण भटक रहा था, इस लोक से उस लोक के रास्ते में फिर से फंस जाता है और मुक्ति की चाह में भटकता है. नाटककार गिरिश कर्नाड ने इसी पौराणिक कथा पर आधारित एक नाटक लिखा था 'अग्नि और बरखा' जिसमें इस पिशाच और ऋषि रैभ्य की मारण विद्या का जिक्र मिलता है.

लोक पर्वों में भी शामिल हैं गुड्डे-गुड़िया

बिहार में एक लोक त्योहार मनाया जाता है सामा -चिकेवा. इसमें मिट्टी और घास-फूस से गुड्डा-गुड़िया की तरह समा-चिकेवा बनाए जाते हैं और फिर कार्तिक के महीने में उन्हें तालाब पर ले जाकर सिराया जाता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश बिहार-बंगाल और ओडिशा में नागपंचमी के दिन गुड़िया पीटी जाती है. कॉन्सेप्ट ये है कि सावन लगते ही कुमारी लड़कियां पुराने कपड़ों से गुड़िया बनाना शुरू कर देती हैं. माना जाता है कि ये गुड़िया सारी नकारात्मकता को खुद में सोख लेती है, फिर नाग पंचमी वाले दिन बहने इसे तालाब या पोखर में ले जाकर डुबोती हैं और भाई इन गुड़ियों को लाठी से पीटते हैं. फिर बहनों को लावा और खील देते हैं.

नागपंचमी के दिन क्यों पीटी जाती है गुड़िया

बिहार में माना जाता है कि इस गुड़िया को नहीं पीटा तो महामारी आएगी, सूखा पड़ेगा. कहने को तो है गुड़िया, लेकिन लोक परंपरा में देखिए, उसके साथ कितनी बुरी मान्यता जुड़ी हुई है. तुंबाड फिल्म याद है? इसमें हस्तर को बुलाने के लिए आटे के गुड्डे बनाए जाते थे. हस्तर उन गुड्डों के जरिए ही कुएं से बाहर आता था और सोने का सिक्का दे जाता था. हस्तर देवताओं के द्वारा ही शापित एक "Demigod" यानी अर्धदेव है, जिसे पुराणों में यक्ष या गंधर्व की श्रेणी में रखा गया है. धरती के इस बेटे का जिक्र भी कथासरित्सागर में मिलता है, जो लोककथाओं के तौर पर हमारी संस्कृति में मौजूद है.

बंगाल का काला जादू का गुड़िया से कनेक्शन

अब त्रिपुरा, असम और पंश्चिम बंगाल में पहुंच जाइए. ये राज्य तंत्र-मंत्र के गढ़ रहे हैं और प्राचीन काल से यहां काला जादू, वशीकरण, सम्मोहन, उच्चाटन जैसी विधियां और विधाएं मौजूद रही हैं. इन तांत्रिक रीतियों के केंद्र में रहते हैं काले कपड़ों से बने हुए अजीबो-गरीब और डरावने गुड्डे-गुड़िया. राजस्थान की लोककला में शामिल कठपुतली कला भी कुछ इलाकों में इसी तंत्र-मंत्र की विधा में शामिल एक खिलौना है. कुल मिलाकर खिलौनों से भरी डर की दुनिया में लबुबु अकेली नहीं है. हिंदी फिल्मों के तात्या बिच्छू और हॉरर की साम्राज्ञी एनाबेला को कोई भूल सकता है भला...

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