दिखता तो एक ही है, फिर कहां और कैसा होता है 'सातवां आसमान'...वेद-पुराण से लेकर किस पंथ में क्या है कॉन्सेप्ट

2 hours ago 1

जब कोई व्यक्ति प्रसिद्धि और उपलब्धि के चरम बिंदु पर होता है तो उसके लिए अक्सर कहा जाता है, 'वह सातवें आसमान पर है.' किसी के घमंड और अहंकार को भी शब्द देने के लिए अक्सर इस लोकोत्ति का प्रयोग कुछ इस तरह कहते हुए कर लिया जाता है, कि ज्यादा सातवें आसमान पर मत रहो, नीचे आ जाओ'

कहां है सातवां आसमान?

सवाल उठता है कि धरती से सिर उठाकर ऊपर देखिए तो एक ही आकाश नजर आता है, लेकिन मुहावरों और कथन में सात आसमान कहां से आ जाते हैं? दरअसल सात आसमान की बात कोई कोरी गप्प नहीं है, बल्कि असल में यह एक सिद्धांत है और दर्शन की एक बड़ी महत्वपूर्ण अवधारणा है. यह सिर्फ सनातन या हिंदू परंपरा में ही नहीं, बल्कि विश्व के अलग-अलग मतों में भी इसकी मौजूदगी है.

ब्रह्नांड की अवस्था और ईश्वरीय अवधारणा को समझाने की तरीका

यह अवधारणा ब्रह्मांड की संरचना, आध्यात्मिक यात्रा और ईश्वरीय व्यवस्था को समझाने का एक तरीका रही है. पुराणों में एक से लेकर नौ तक की संख्या के अलग-अलग मायने हैं. जिनमें एक को ब्रह्म का स्वरूप माना जाता है और जब यह संख्या सात तक पहुंचती है तो रहस्यवाद में बदल जाती है. इसलिए सात की संख्या को जादुई कहा जाता है और यह इसलिए भी है, क्योंकि धरती और आकाश के बीच के सभी तत्व सात हैं. सनातन में सप्त लोक, सात तल, सात सुर और सात देवियों का सिद्धांत दिया जाता है. यहीं से सनातन में सप्ताकाश (सात आकाश) का भी सिद्धांत आता है.

सप्त लोकों के तौर पर मिलते हैं सात आकाश

हिंदू धर्म में "सात आकाश" का उल्लेख वैदिक और पुराणिक ग्रंथों में सप्तलोक या सात उच्च लोकों के रूप में मिलता है. ये लोक ब्रह्मांड के विभिन्न स्तरों को सामने रखते हैं, जिनकी व्याख्या भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही तरीकों से की जाती है.

भूलोक: यह पृथ्वी है, जहां मनुष्य, पशु और अन्य प्राणी निवास करते हैं. यह भौतिक संसार का आधार है.

भुवर्लोक: यह मध्यवर्ती क्षेत्र है, जो पृथ्वी और स्वर्ग के बीच का अंतरिक्ष है. इसे सूक्ष्म प्राणियों और आत्माओं का निवास माना जाता है.

स्वर्लोक: यह देवताओं का निवास स्थान है, जहाँ इंद्र जैसे देवता रहते हैं. यह आनंद और सुख का क्षेत्र है.

महर्लोक: यहां संत, ऋषि और उच्च आत्माएँ निवास करती हैं, जो तप और साधना से इस स्तर तक पहुंचते हैं.

जनलोक: यह उन आत्माओं का स्थान है जो और अधिक आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर चुकी हैं.

तपोलोक: यहां सिद्ध और तपस्वी आत्माएँ रहती हैं, जो गहन तपस्या और ध्यान में लीन रहते हैं.

सत्यलोक: यह ब्रह्मा का निवास स्थान है, जो सृष्टि का सर्वोच्च और सबसे पवित्र लोक माना जाता है.

इन सात लोकों को सात आकाश के रूप में देखा जा सकता है, जो आत्मा की आध्यात्मिक यात्रा और ब्रह्मांड की संरचना को दर्शाते हैं. सनातन के दर्शन में, ये लोक न केवल भौतिक स्तरों को दर्शाते हैं, बल्कि चेतना के विभिन्न स्तरों को भी प्रतीक करते हैं. आत्मा की मुक्ति (मोक्ष) की यात्रा में इन लोकों को पार करना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया मानी जाती है.

वैदिक ग्रंथों में सात आकाश

ऋग्वेद और अन्य वैदिक ग्रंथों में आकाश को एक व्यापक और अनंत क्षेत्र के रूप में वर्णित किया गया है, जो सृष्टि के विभिन्न स्तरों को समाहित करता है. पुराणों में, जैसे विष्णु पुराण और भागवत पुराण, इन लोकों का विस्तृत वर्णन मिलता है, जो सात आकाश की अवधारणा को और गहराई देता है.

भागवत पुराण की कथा, जब ब्रह्म देव को हुआ अभिमान

भागवत पुराण में इसको स्पष्ट करने वाली एक कथा भी मिलती है. होता यूं है कि एक दिन, श्रीकृष्ण अपने ग्वाल-बालों और बछड़ों के साथ वन में भोजन कर रहे थे. ब्रह्मा जी ने यह दृश्य देखा तो माया के मोह के कारण उन्हें भ्रम हो गया, और वे सोचने लगे कि यह सामान्य बालक परात्पर (ईश्वर) नहीं हो सकता है. फिर उन्होंने कृष्ण (परब्रह्म) की परीक्षा लेने की सोची. जैसे ही श्रीकृष्ण गायों को हांकने गए तब ब्रह्ना जी ने ग्वाल-बालों और बछड़ों को चुरा लिया और अपने ब्रह्मलोक में ले गए

इसके बाद ब्रह्मा जी हर लोक में नारायण को देखने पहुंचते हैं. (भागवत के अनुसार नारायण हर लोक के अधिपति हैं और अलग-अलग रूपों में वही निवास करते हैं. वह सत्यलोक में धर्मराज हैं, मर्त्यलोक में यमराज हैं.) तो जब ब्रह्मा जी जिस भी लोक में पहुंचते हैं, वहां देखकर चौंक जाते हैं कि श्रीकृष्ण हर लोक में अपने ग्वाल-बालों के साथ माखन लुटा रहे हैं और हर लोक ही वृंदावन बन गया है.

इस तरह ब्रह्मा जी जब सत्यलोक पहुंचते हैं जहां वह खुद के कमलासन पर भी श्रीकृष्ण को उसी बालअवस्था में देखते हैं. तब उन्हें अपनी भूल का अहसास होता है. तब श्रीकृष्ण अपने सत्य नारायण रूप में आते हैं और ब्रह्मा देखते हैं कि उनकी एक हथेली पर असंख्य ब्रह्मांड स्थापित हैं और हर ब्रह्मांड में करोड़ों-करोड़ों ब्रह्मा सृष्टि का निर्माण कर रहे हैं. ग्रहों का घूमता हुआ सौरमंडल ही उनकी अंगुलि पर कालचक्र की तरह घूम रहा.

सात लोक यानी सात विकारों को छोड़कर ऊपर उठने का प्रतीक

ब्रह्मा जब हर लोक में पहुंचते हैं तो लज्जा के साथ उनके सातों विकार एक-एक करके छूटते जाते हैं. पहले लोक में वह काम से मुक्त होते हैं, दूसरे में क्रोध से, तीसरे में मोह, चौथे में लोभ, पांचवें में मद, छठवें में मत्सर और सातवें में जब वह पहुंचते हैं तो सत्य को धारण कर लेते हैं. तब उन्होंने कृष्ण के चरणों में गिरकर क्षमा मांगी. कृष्ण ने उन्हें क्षमा कर दिया और उनकी अज्ञानता को दूर किया. इस लीला के जरिये कृष्ण ने ब्रह्मा जी को यह दिखाया कि असल में वे ही सृष्टि के रचयिता हैं और वे ही माया के स्वामी हैं और वे सिर्फ त्रिलोकी के नहीं, सप्तलोक के अधिपति हैं.

जैन धर्म में भी हैं सात आकाश

जैन धर्म में भी सात आकाश का उल्लेख सप्त ऊर्ध्वलोक के रूप में मिलता है. जैन कॉस्मोलॉजी में ब्रह्मांड को तीन मुख्य भागों में बांटा गया है. ऊर्ध्वलोक (ऊपरी क्षेत्र), मध्यलोक (मध्य क्षेत्र) और अधोलोक (निचला क्षेत्र). सात ऊर्ध्वलोक देवताओं और उच्च आत्माओं के निवास स्थान हैं, जो कर्म और आध्यात्मिक उन्नति के आधार पर बांटे गए हैं.

सौधर्म: यह सबसे निचला ऊर्ध्वलोक है, जहां सौधर्म इंद्र जैसे देवता रहते हैं.

ईशान: यहां उच्चतर देवता निवास करते हैं.

सनत लोक: यह तीसरा लोक है, जो और अधिक शुद्ध आत्माओं का निवास है.

माहेंद्र: यहां और मोह से मुक्त उन्नत आत्माएं रहती हैं.

ब्रह्मलोक: यह उच्चतर साधनाओं का क्षेत्र है.

लांतव: यहां सिद्ध आत्माएं  निवास करती हैं, जो मुक्ति के निकट हैं.

सहस्रार: यह सर्वोच्च लोक है, जहां सबसे शुद्ध आत्माएं जो मोक्ष के समीप हैं, उनका निवास होता है.

जैन धर्म में सात आकाश का विचार आत्मा की कर्म आधारित यात्रा को सामने रखता है. हर लोक में रहने वाली आत्माएं अपने कर्मों के आधार पर उच्चतर या निचले लोकों में जाती हैं. सिद्धशिला, जो इन लोकों से भी ऊपर है, वह स्थान है जहां हर विकार से मुक्त आत्माएं निवास करती हैं.

इस्लाम में सात आकाश: सब‘आ समावात

लोगों की जुबान पर रहने वाले 'सात आसमान' फ्रेज का सबसे मौजूं जिक्र इस्लाम में मिलता है. इस्लाम में "सात आकाश को सब‘आ समावात की तौर पर देखा और बताया जाता है. जिसका जिक्र कुरान में भी बहुत तफसील से आता है.

कुरान में सूरह अल-मुल्क (67:3) में दर्ज है "जिसने सात आकाशों को एक के ऊपर एक बनाया." इस्लामिक विद्वानों ने सात आकाश की व्याख्या अलग-अलग तरीकों से की है.

हदीस में, पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) के मेराज (आकाशीय यात्रा) के दौरान सात आकाश का वर्णन मिलता है, जहां उन्होंने हर आकाश में अलग-अलग नबियों और स्वर्गदूतों से मुलाकात की. जैसे पहले आकाश में हजरत आदम, दूसरे में हजरत ईसा और हजरत याह्या, और इसी तरह अन्य नबियों से मुलाकात का भी जिक्र है. सातवां आकाश, जिसे सिदरातुल मुन्तहा (अंतिम वृक्ष) के निकट माना जाता है, वह स्थान है जहां पैगंबर ने ईश्वरीय उपस्थिति का अनुभव किया.

यहूदी-ईसाई परंपराएं: सात स्वर्गीय क्षेत्र

यहूदी और ईसाई परंपराओं में भी सात आकाश का विचार नजर आता है. यहूदी रहस्यवादी ग्रंथों (जैसे कबाला) और प्रारंभिक ईसाई लेखों में इसका जिक्र प्रमुखता से हुआ है. यहूदी ग्रंथों में, सात आकाश को शमायिम (हिब्रू में "आकाश") के रूप में लिखा गया है, ये विभिन्न स्वर्गदूतों और आध्यात्मिक शक्तियों के निवास स्थान हैं.

इनके नाम हैं, विलोन, रकिया, शखाकिम (स्वर्गदूतों का स्थान) जबूल, माओन (स्वर्गदूतों की सैन्य क्षेत्र), माखोन और अराबोत, जहां ईश्वर का सिंहासन है.

इसी तरह न्यू टेस्टामेंट में भी सात आकाश का जिक्र है, जिसमें अलग-अलग लेवल पर तीन तो स्वर्ग ही हैं. ये तीन स्वर्ग तीन तरह की पवित्रता को दिखाते हैं. मन, तन और विचारों की पवित्रता.

सूफी परंपरा और ईश्क के सात मुकाम

अब इन सारे विवरणों के साथ सूफी परंपरा की ओर बढ़ें तो वहां ईश्क ही सात मुकाम में बंटा हुआ है. दीवाने को अपनी मुहब्बत की आखिरी ऊंचाई तक पहुंचने के लिए इश्क के सात मुकाम पार करने होते हैं. ये सात मुकाम कहीं-कहीं सात दरवाजे की बात करते हैं तो कहीं इन्हें सात अलग लेवल में बांटकर सात आकाश के तौर पर बताया जाता है.

इश्क के सात मुकाम, जिन्हें प्रेम के सात चरण भी कहा जाता है, उनमें दिलकशी (आकर्षण), उन्स (लगाव), मोहब्बत (प्यार), अकीदत (भरोसा), इबादत (पूजा), जुनून (दीवानगी), और फना (मौत) शामिल हैं.

1. दिलकशी (आकर्षण): यह प्रेम की शुरुआत है, जहां व्यक्ति किसी और की ओर आकर्षित होता है.

2. उन्स (लगाव): आकर्षण के बाद, लगाव बढ़ता है, और व्यक्ति उस व्यक्ति के साथ समय बिताना चाहता है.

3. मोहब्बत (प्यार): जब प्रेम गहरा होने लगे और साथी के प्रति गहरी भावनाएं महसूस हों.

4. अकीदत (भरोसा): प्रेम में विश्वास और सम्मान की अहमियत.

5. इबादत (पूजा): जब प्रेम ही खुदा की बंदगी बन जाए. जहां साथी में ही ईश्वर नजर आने लगे.  

6. जुनून (दीवानगी): यह प्रेम की पराकाष्ठा है, जहां साथी के प्रति चाहत को दीवानगी की हद तक महसूस किया जा सके.

7. फना (मृत्यु): यह आखिरी है, यहां आत्मा से आत्मा का मिलन हो जाता है. दुनिया पीछे छूट जाती है. प्रेम शाश्वत है और मृत्यु के बाद भी बना रहता है. 

---- समाप्त ----

Read Entire Article