दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को तबलीगी जमात के 70 सदस्यों के खिलाफ दर्ज एफआईआर और चार्जशीट को रद्द कर दिया. ये केस कोविड-19 के प्रसार और लॉकडाउन के उल्लंघन से जुड़े थे, जो अब से पांच साल पहले यानी मार्च 2020 में दर्ज किए गए थे.
न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की एकल पीठ ने विस्तार से सभी तथ्यों और आरोपों की जांच करते हुए कहा कि इन व्यक्तियों के खिलाफ ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जिससे यह साबित हो कि उन्होंने लॉकडाउन का उल्लंघन किया या किसी भी प्रकार से कोरोना वायरस फैलाने की नीयत या जानकारी के साथ बाहर निकले थे.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में टिप्पणी की, 'एफआईआर या चार्जशीट में कहीं यह नहीं कहा गया है कि याचिकाकर्ता कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए थे या उन्होंने लापरवाही से या गैरकानूनी तरीके से वायरस फैलाने के इरादे से बाहर निकलने की कोशिश की थी. इन चार्जशीट्स को जारी रखना न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा और यह न्याय के हित में नहीं है.'
लॉकडाउन की घोषणा से पहले मरकज में थे लोग
कोर्ट ने पाया कि तबलीगी जमात के सदस्य उस समय मरकज में पहले से मौजूद थे, जब तक देश में पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा नहीं हुई थी. इस पर कोर्ट ने कहा, 'यह जमावड़ा मार्च 2020 की शुरुआत में हुआ था, जो कोविड-19 महामारी की आधिकारिक घोषणा से पहले का समय था.'
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इन याचिकाकर्ताओं ने धारा 144 CrPC के तहत लागू किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया था. न ही वे किसी प्रदर्शन, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक या धार्मिक सभा, साप्ताहिक बाजार या समूह यात्रा में शामिल हुए थे.
'...उन्हें अपराधी नहीं ठहराया जा सकता'
हाईकोर्ट ने कहा, 'ये लोग लॉकडाउन के कारण मजबूरन मरकज में ही रह गए थे. उनके पास बाहर निकलने का कोई साधन नहीं था और बाहर निकलना खुद लॉकडाउन का उल्लंघन होता. ऐसा कोई आरोप नहीं है कि इन याचिकाकर्ताओं में से कोई कोविड पॉजिटिव था या उन्होंने निगरानी कर्मचारियों के साथ कोई सहयोग नहीं किया हो.'
न्यायालय ने अंत में कहा, 'सिर्फ इसलिए कि वे मरकज में रह रहे थे, उन्हें अपराधी नहीं ठहराया जा सकता. वे तो महामारी के कारण मजबूरी में वहां रह गए थे. उनके खिलाफ कोई भी आपराधिक कृत्य सिद्ध नहीं होता.'
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