नेपाल में Gen G आंदोलन के बाद वहां के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया है. उनके साथ ही सरकार में शामिल कई मंत्रियों और सांसदों ने भी इस्तीफा दिया है. इतना ही नहीं वहां के राष्ट्रपति भी अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं. इस बीच कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री और उनके कुछ करीबी नेता देश छोड़कर भागने की तैयारी में हैं. ऐसे में नजर डालते हैं भारत के उन पड़ोसी देशों के नेताओं के इतिहास पर जिन्हें सरकार गिर जाने के बाद सुरक्षा के लिहाज से देश छोड़ना पड़ा.
एक साल पहले बांग्लादेश छोड़कर भागी थीं शेख हसीना
नेपाल के मामले को ठीक उसी तरह देखा जा रहा है, जैसा कि बांग्लादेश में 2024 में छात्र आंदोलन की वजह से शेख हसीना की सरकार गिरी थी और उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा था. बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार खत्म करने को वहां के छात्र आंदोलन की जीत बताई गई थी और इसे दूसरे स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा दी गई थी.
पांच बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना की सरकार तब गिर गई. जब जब प्रदर्शनकारियों ने ढाका स्थित उनके सरकारी आवास पर धावा बोल दिया और उन्हें किसी तरह जान बचाकर देश छोड़कर भागना पड़ा.
श्रीलंका गोटबाया राजपक्षे को भी छोड़ना पड़ा था देश
बांग्लादेश और नेपाल की तरह ही जुलाई 2022 में श्रीलंका में भी एक व्यापक जन आंदोलन के बाद वहां के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को देश छोड़ना पड़ा था. जब प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन, संसद और श्रीलंका के सभी महत्वपूर्ण संस्थानों पर कब्जा कर लिया. तब गोटबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भाग जाना पड़ा था.
श्रीलंका में आर्थिक संकट का मामला इतना गंभीर हो गया था कि लोगों को सरकार के विरोध में सड़क पर उतरना पड़ा. इसके बाद स्थिति अराजक होती चली गई. तब श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे मालदीव भाग गए. वहां कुछ दिन रहने के बाद, वे सिंगापुर पहुंचे जहां वे एक महीने तक रहे, फिर थाईलैंड के लिए रवाना हुए जहां वे कुछ हफ्ते रहे.
अब कहां हैं राजपक्षे
वह सितंबर 2022 में घर लौट आए थे. नवंबर 2023 में एक श्रीलंकाई अदालत ने उन्हें आर्थिक कुप्रबंधन का दोषी पाया. एक ऐसा फैसला जो केवल वित्तीय दंड के साथ आया. अब उन्हें कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ रहा है.
तालिबन की वापसी के बाद अफगानिस्तान छोड़कर भागे थे अशरफ गनी
अगस्त 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था. उस वक्त वहां के राष्ट्रपति अशरफ गनी थे. देश पर तालिबान के नियंत्रण का मतलब, अशरफ गनी का अंत था. इसलिए गनी को देश छोड़ना पड़ा. अफगानिस्तान छोड़ने के तुरंत बाद अशरफ गनी ताजिकिस्तान भाग गए. उसके बाद उज्बेकिस्तान गए और अंततः उन्होंने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में शरण ली.
पाकिस्तान के इन नेताओं को भी छोड़ना पड़ा था देश
पाकिस्तान में सरकार खत्म होने के बाद देश छोड़कर भागने वाले कई नेता रहे हैं. अगस्त 2008 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तानी सेना के साथ समझौता करने के बाद इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद वो ब्रिटेन चले गए थे. मुशर्रफ ने 1999 में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के नेतृत्व वाली लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार को गिरा दिया था. निर्वासित होने के बाद वह 2013 तक लंदन में रहे और उसी साल पाकिस्तान वापस आ गए.
यह भी पढ़ें: 90 का वो जन आंदोलन... जब नेपाल में राजा को छोड़नी पड़ी थी गद्दी, बहाल हुआ था लोकतंत्र
पाकिस्तान में उन्हें चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया गया. फिर वो संयुक्त अरब अमीरात भाग गए और 2023 तक वहां राजनीतिक निर्वासन में रहे. मुशर्रफ की 2023 में दुबई में लंबी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई.
नवाज शरीफ
1999 में जब परवेज मुशर्रफ ने जब नवाज शरीफ की सरकार को उखाड़ फेंका तो शरीफ को एक साल के लिए जेल में डाल दिया गया. इसके बाद उन्हें निर्वासित कर सऊदी अरब भेज दिया गया, जहां वे 2007 तक रहे. वह 2007 में पाकिस्तान लौट आये लेकिन 2013 तक चुनाव नहीं लड़ सके. इसके बाद वह तीसरी बार प्रधानमंत्री बने. 2016 में भ्रष्टाचार के आरोपों में उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया और 2018 में उन्हें जेल की सजा सुनाई गई.
यह भी पढ़ें: कौन हैं बालेन शाह? जिन्हें सत्ता सौंपने की मांग कर रहे नेपाल के Gen-Z आंदोलनकारी
2019 में उन्हें कुछ हफ्तों के लिए चिकित्सा उपचार के लिए यूके जाने की अनुमति दी गई थी. वह अक्टूबर 2023 तक वहीं रहे और लंदन से अपनी राजनीतिक पार्टी चलाते रहे.पिछले साल घर लौटने के बाद से वह अपनी पार्टी के मामलों में सक्रिय रूप से शामिल रहे हैं.
बेनजीर भुट्टो
बेनजीर भुट्टो 1999 से आठ साल से अधिक समय तक संयुक्त अरब अमीरात में निर्वासित रहीं. जब मुशर्रफ ने शरीफ सरकार को गिरा दिया था और वह राष्ट्रीय संसद में विपक्ष की नेता थीं. 2007 में चुनाव लड़ने के लिए जब वह पाकिस्तान लौटीं तो राजधानी इस्लामाबाद के निकट एक चुनावी रैली के दौरान उनकी हत्या कर दी गई.
यह भी पढ़ें: क्या अब सेना के कब्जे में होगा नेपाल? ये हैं वो नियम, जिसके कारण आर्मी ने संभाला मोर्चा
थाईलैंड की प्रधानमंत्री को भागना पड़ा था ब्रिटेन
यिंगलक शिनवात्रा 2011 से 2014 तक थाईलैंड की प्रधानमंत्री थीं. उन पर 2013 में एक सरकारी परियोजना के लिए धन के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया था और 2014 में उन्हें सत्ता के दुरुपयोग का दोषी पाया गया था. शिनावात्रा के शीर्ष राजनीतिक पद से हटने के बाद सैन्य तख्तापलट हुआ और पूर्व नेता ब्रिटेन भाग गईं. इस वर्ष, थाई अदालत ने उसे आरोपों से बरी कर दिया, लेकिन वह अभी भी ब्रिटेन में निर्वासन में रह रही है.
---- समाप्त ----