तृतीया और चतुर्थी का श्राद्ध कल, जानें- कैसे करते हैं एकसाथ दो तिथियों का श्राद्ध

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हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का अत्यंत विशेष और पवित्र महत्व है. मान्यता है कि इस अवधि में श्राद्ध और पिंडदान करने से पितरों की आत्मा संतुष्ट होती है और उनका आशीर्वाद सदैव परिवार पर बना रहता है. इस वर्ष पितृ पक्ष में एक विशेष योग बन रहा है, जिसमें दो तिथियों के श्राद्ध एक ही दिन सम्पन्न होंगे.

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तृतीया और चतुर्थी श्राद्ध का संगम

तृतीया और चतुर्थी श्राद्ध का संगम

इस साल पितृ पक्ष की शुरुआत 7 सितंबर 2025 से हुई थी, जो 21 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ समाप्त होंगे. इस बार पितृपक्ष में बुधवार, 10 सितंबर दो तिथियों का श्राद्ध एकसाथ होगा. इस दिन तृतीया और चतुर्थी का श्राद्ध एक ही दिन पड़ रहा है. आइए तृतीया और चतुर्थी के श्राद्ध का महत्व जानते हैं.

तृतीया पर किसका श्राद्ध?
इस दिन उन सभी दिवंगतों का श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है, जिनका देहांत किसी भी माह के कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ हो. तृतीया श्राद्ध को आमतौर पर ‘तीज श्राद्ध’ भी कहा जाता है.

चतुर्थी पर किसका श्राद्ध?
बुधवार, 10 सितंबर को चतुर्थी का भी श्राद्ध किया जाएगा. इस दिन परिवार के उन दिवंगत सदस्यों का श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है, जिनका निधन कसी भी माह के कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ हो.

तृतीया श्राद्ध का समय

कुतुप मुहूर्त: सुबह 11 बजकर 53 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 43 मिनट तक
रौहिण मुहूर्त: दोपहर 12 बजकर 43 मिनट से 01 बजकर 33 मिनट तक
अपराह्न काल: दोपहर 1 बजकर 33 मिनट से लेकर शाम 4 बजकर 02 मिनट तक

दो तिथियों का श्राद्ध एकसाथ कैसे करें?
श्राद्ध के दिन सुबह स्नान आदि के बाद स्वच्छ और हल्के रंग के वस्त्र धारण करें. सफेद रंग के वस्त्र धारण करना ज्यादा उत्तम होगा. इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और दक्षिण दिशा की ओर मुख करके आसन ग्रहण करें. श्राद्ध विधि के दौरान दोनों तिथियों का संकल्प अलग-अलग होना चाहिए. श्राद्ध के समय पितरों का नाम और गौत्र जरूर बोलें.

फिर तांबे के एक पात्र में गंगाजल, काले तिल, जौ और दूध मिलाएं. प्रत्येक तिथि के पितरों के लिए तीन-तीन बार जल अर्पित करें. तर्पण के समय कुश की अंगूठी दाहिने हाथ की अनामिका पहलें और इसी हाथ से अंगूठे की तरफ से पितरों को  तर्पण दें. श्राद्ध के बाद गरीब ब्राह्मणों को भोजन कराएं और सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा दें. दोनों तिथियों के पितरों का दान भी अलग-अलग होना चाहिए.

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