दिल्‍ली की 'बाढ़' के लिए यमुना का कोई दोष नहीं, ये सैटेलाइट तस्‍वीरें सबूत हैं

3 days ago 1

इंट्रो- दिल्‍ली में यमुना अपने खतरे के निशान को पार कर गई है. लेकिन इसके आपदा कहने के लिए हमें उस लापरवाही को अनदेखा करना होगा, जो यमुना नदी के किनारे-किनारे बस्तियां बसाने के दौरान हुई. सैटेलाइट तस्‍वीरें बता रही हैं क‍ि बाढ़ के बावजूद यमुना अपनी हद में ही हैं. हद पार इंसानी जरूरतों और सरकारी लापरवाहियों ने की है.


बारिश के मौसम में नदी में उफान आना प्रकृति का नियम है, लेकिन इंसानों के नदी पर अतिक्रमण ने पानी के उफान को बाढ़ की संज्ञा दी, और अब यही बाढ़ समस्‍या या आपदा के रूप में कही जाने लगी है. आइये, दिल्‍ली में यमुना के बहाव से समझते हैं कि क्‍या वाकई उसका कोई दोष है भी, या कमी हम में ही है.

सैटलाइट की तस्‍वीरें बता रही है कि किस कदर दिल्‍ली में इंसानी बस्तियों ने यमुना का गला दबा दिया है. दुनिया की सारी सभ्‍यताएं नदियों के किनारे ही जन्‍मी हैं, लेकिन तबकी बसाहटें भी नदियों से एक सुरक्षित दूरी पर थीं. दिल्‍ली का ही उदाहरण लें तो यहां की सबसे पुरानी पांच बस्तियां यमुना से कम से कम 5 क‍िमी की दूरी पर बसीं. एक हजार साल पुरानी महरौली यमुना से 20 क‍िमी दूर है. 700 साल पुराने पालम यमुना से 25 क‍िमी तो तुगलकाबाद 5 क‍िमी दूर हैं. महिपालपुर भी पुरानी बसाहटों में से है, जो यमुना से 15 क‍िमी दूर है. यानी, यहां बसने वालों को यमुना के बहाव का पूरा अंदाजा था. लेकिन, जैसे जैसे इंसानी जरूरतें बढ़ती गईं, यमुना और बस्तियों की दूरी घटती गई. आज का नजारा ये है कि जिन इलाकों से बाढ़ आपदा की रिपोर्टिंग होती है, दरअसल, सैटेलाइट तस्‍वीरों से देखें तो वे इलाके यमुना में घुसे हुए दिखाई देंगे. 

यमुना में बाढ़ का अंदाजा हरियाणा में  स्थित हथिनीकुंड बैराज से पानी के रिलीज होते ही हो जाता है. लेकिन, दिल्‍ली में बाढ़ नियंत्रण की भूमिका वजीराबाद, आईटीओ और ओखला में बने बैराज निभाते हैं. आइये, नजर डालते हैं कि यहां पर आम दिनों में यमुना क‍िस तरह बहती है और इन दिनों उसके आसपास बाढ़ के क्‍या हालात हैं. और हां, यह भी जानेंगे क‍ि क्‍या वाकई अप्रत्‍याशित बाढ़ के कारण उसके आसपास के इलाकों तक पानी पहुंचा है.

1. वजीराबाद बैराज से पहले
हथिनीकुंड बैराज से आने वाला यमुना का बहाव दिल्‍ली से पहले वजीराबाद बैराज पर रोका जाता है. खतरे  का निशान पार होने के बावजूद यमुना यहां वजीराबाद और सोनिया विहार के बीच बहने की कोशिश कर रही है. हां, इन दोनों बस्तियों के  यमुना के नजदीकी इलाकों में पानी जरूर भरा है. लेकिन, इसमें से कोई भी इलाका नदी के म‍िड पाइंट से एक क‍िमी की दूरी पर भी नहीं है.

2. वजीराबाद और आईटीओ बैराज के बीच
यमुना यदि खतरे का निशान पार करती है तो यमुना से दो क‍िमी दूर स्थित भजनपुरा और जगजीवनराम नगर तक पानी पहुंच जाता है, ऐसे में यमुना में झांकते मजनू का टीला और कश्‍मीरी गेट के नदी किनारे बसे इलाकों में पानी भर जाना आम ही है.

सिविल लाइन के इन्‍हीं इलाकों में से एक है मॉनेस्‍ट्री मार्केट. इसे यमुना में घुसाकर ही बनाया गया है. ऐसे में यहां यदि पानी घुसा हुआ है तो इसका दोष मार्केट बनाने वालों को देना चाहिये, यमुना को नहीं. कुछ यही स्थिति आगे चलकर गांधीनगर, शास्‍त्रीनगर और लक्ष्‍मीनगर के यमुना किनारे निचले बसे इलाकों की हो रही है.

3. आईटीओ बैराज से ओखला बैराज के बीच
यहां यमुना किनारे बने अक्षरधाम मंदिर के आसपास का इलाका हर साल बारिश के मौसम में डूब जाता है. इस बार थोड़ा पानी और बढ़ जाने से मयूर विहार के कुछ इलाकों में डूब का खतरा मंडराने लगा है. लेकिन, यकीन जानिये ये समस्‍या निचले लेवल पर बसाई गई कॉलोनियों और झुग्‍गी बस्तियों के ही सामने आ रही है. 

कुलमिलाकर, वजीराबाद बैराज से लेकर ओखला बैराज तक यमुना अपने 25 क‍िमी के सफर में दिल्‍ली वालों के लिए बारिश के मौसम में चुनौती बनती है. लेकिन, ये परेशानी सिर्फ उन इलाकों में ही होती हैं, जो खतरनाक तरीके से यमुना के पड़ोस में बस गए हैं. सवाल, यह जरूर पूछा जाना चाहिये कि जब ये इलाके बस रहे थे तो सरकारी अमलों ने रोका क्‍यों नहीं? लेकिन, इसका जवाब सब अच्‍छी तरह जानते हैं कि कुछ तो लोगों की मजबूरी है, और बाकी नेताओं का राजनीतिक स्‍वार्थ. दिल्‍ली की बाढ‍़ आपदा man-made है. यमुना का कुसूर नहीं.

खतरे का निशान पता है, फिर भी खतरे से खेलना क्‍यों?

जानकारी के लिए बता दें कि किसी नदी के खतरे का निशान उस स्‍तर को माना जाता है, जहां तक नदी का पानी अपने निर्धारित इलाके में बारिश के दौरान फैलते हुए बढ़ता है. यह लेवल कई वर्षों की बाढ़ के अध्‍ययन के बाद तय होता है. क्‍योंकि, इसी को पैमाना मानकर आसपास की बस्तियों में बचाव और राहत की मुहिम चलाई जाती है. जैसे यमुना में जब पानी 205.33 मीटर तक पहुंचता है, तो बाढ़ की चेतावनी जारी कर दी जाती है. और इस बार तो पानी 207.41 मीटर तक पहुंच गया है. यानी, खतरे के निशान से 2 मीटर ऊपर. अब बताइये क‍ि उन बसाहटों के लिए कौन जिम्‍मेदार है, जो इस खतरे के निशान को नजरअंदाज करके बस गईं या बसाई गईं.

दिल्‍ली में यदि यमुना उफनती है, तो उसे सांस लेने की जगह दीजिये

दिल्‍ली चुनाव में यमुना के एक बड़ा मुद्दा थी. चुनौती थी यमुना में सफाई की. वह हुई या नहीं हुई, यह बाद में देखा जाएगा. लेकिन बारिश में नदियां खुद अपने आप को तेज बहाव में साफ करती हैं. सरकार और प्रशासन को चाहिये कि यमुना के सिल्‍ट की सफाई करवा दें. उसकी गहराई को बरकरार रखें. यमुना इसके सालभर में खूब मौका देती है. इसके अलावा सरकार हिम्‍मत दिखाएं क‍ि यमुना क‍िनारे बसीं कच्‍ची बस्तियों के लिए स्‍थायी रूप से वैकल्पिक इंतेजाम करें.

दिल्‍ली के लिए यमुना के वरदान की तरह हैं, लेकिन उसे या तो गंदगी के लिए याद किया जाता है या फिर बारिश के दिनों में बाढ़ के लिए. कमजोरी इसमें सरकारी इंतेजामों की ही है.

---- समाप्त ----

Read Entire Article