बिहार में चिराग़ पासवान की सियासत पांच साल में 180 डिग्री घूम गई है. 2020 में एनडीए से अलग होकर चिराग पासवान ने सबसे बड़ा झटका नीतीश कुमार की जेडीयू को दिया था. यही नहीं, चुनाव के बाद वह नीतीश के कामकाज पर सवाल उठाते रहे, लेकिन सियासत के करवट लेते ही चिराग पासवान ने नीतीश कुमार के लिए फ्रंटफुट पर उतरकर बैटिंग कर रहे हैं.
रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत संभाल रहे चिराग़ पासवान ने एनडीए में सियासी एंट्री करते हुए नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ अपने सारे गिले-शिकवे भुला दिए हैं. एनडीए के तहत चिराग 2025 के चुनाव में 29 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं तो जेडीयू और बीजेपी 101-101 सीट पर उम्मीदवार उतारे हैं.
जेडीयू और बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए के साथ चिराग पासवान मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं. पांच साल पहले जिस नीतीश के साथ दुश्मनी अपना रखी थी, आज उसी नीतीश कुमार को सीएम बनाने तक का ऐलान कर रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि चिराग़ 2025 चुनाव में नीतीश का घर कितना रोशन कर पाएंगे?
चिराग से जब नीतीश को नुकसान
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2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग़ पासवान ने एनडीए से अलग होकर अकेले क़िस्मत आजमाई थी। चिराग ने बिहार की 135 सीटों पर अपनी पार्टी के उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें जेडीयू कोटे वाली सीटों पर भी एलजेपी के कैंडिडेट मैदान में थे. चिराग ने बीजेपी के तमाम नेताओं को भी टिकट दे दिया था.
चिराग़ पासवान की एलजेपी ने भले ही सिर्फ़ एक सीट पर जीत हासिल की थी, लेकिन नीतीश कुमार की जेडीयू का सियासी खेल बिगाड़ दिया था. जेडीयू महज 43 सीटें ही जीत सकी थी और तीसरे नंबर की पार्टी बन गई थी. इसके चलते नीतीश का एनडीए में सियासी कद घट गया था.
अशोका यूनिवर्सिटी के सेंटर फ़ॉर पॉलिटिकल डेटा के अनुसार 2020 विधानसभा चुनाव में कम से कम 120 सीटें ऐसी थीं, जहां पर चिराग पासवान की पार्टी 'वोट-कटवा' साबित हुई थी. चिराग न खुद जीत पाए थे और न ही जेडीयू को जीतने दिया था.
बिहार की 54 सीटों पर एलजेपी तीसरे स्थान पर रही थी. एलजेपी को जो वोट मिले थे, उसे दूसरे नंबर पर रहने वाले प्रत्याशी के साथ जोड़ दें तो वह जीत दर्ज करने वाली पार्टी से ज़्यादा वोट थे. चिराग पासवान के अकेले चुनाव लड़ने की वजह से जेडीयू को 25 विधानसभा सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा था और बीजेपी को सिर्फ़ एक सीट पर नुकसान हुआ था.
इस बात को लेकर जेडीयू के नेता हमेशा शिकायत करते रहे हैं कि चिराग पासवान के चलते ही उन्हें नुकसान उठाना पड़ा था. चिराग अगर एनडीए के साथ होते तो जेडीयू को नुकसान न उठाना पड़ता. इस तरह जेडीयू के विधायक 43 होने के बजाय 65 की संख्या हो सकती थी. चिराग के चलते तेजस्वी यादव की पार्टी को सबसे ज़्यादा लाभ मिला था, आरजेडी को 12 और कांग्रेस को 10 सीटों पर फायदा हुआ था.
चिराग की वापसी से एनडीए रौशन
चिराग़ पासवान की एनडीए में वापसी करने के बाद बिहार का सियासी समीकरण बदला है, जिसका लाभ उनकी पार्टी के साथ-साथ जेडीयू को भी हुआ है. एनडीए में चिराग की री-एंट्री के बाद 2024 का लोकसभा चुनाव हुआ था, जिसमें जेडीयू और बीजेपी के साथ एलजेपी चुनावी लड़ी थी. इसका लाभ एनडीए में जेडीयू के साथ-साथ चिराग़ पासवान की पार्टी को भी मिला था.
चिराग अपने कोटे की सभी पांच सीटें जीतने में सफल रहे थे, जबकि जेडीयू अपने कोटे की 16 सीटों में से 12 और बीजेपी अपने कोटे की 17 सीटों में से 12 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. बिहार की कुल 40 सीटों में से 30 सीटें एनडीए और 10 सीटें महागठबंधन जीती थी.
एनडीए 2024 में महागठबंधन पर इसीलिए भारी पड़ा था, क्योंकि चिराग़ पासवान की पार्टी किसी को हराने के लिए नहीं बल्कि एनडीए के साथ जीतने के लिए लड़ रही थी. इस लिहाज से चिराग एनडीए के लिए मुफीद साबित हुए थे. अब फिर एक बार साथ में किस्मत आजमा रहे हैं.
2025 में कितने मुफीद होंगे चिराग
बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार चिराग पासवान एनडीए से अलग नहीं बल्कि बीजेपी और जेडीयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं. चिराग की सियासी अहमियत को देखते हुए उन्हें एनडीए में 29 सीटें चुनाव लड़ने के लिए मिली हैं जबकि बीजेपी और जेडीयू 101-101 सीट पर क़िस्मत आजमा रहे हैं. इसके अलावा उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम माँझी की पार्टी 6-6 सीट पर चुनाव लड़ रही है.
चिराग पासवान इस बार नीतीश के खिलाफ नहीं बल्कि जेडीयू के साथ मैदान में हैं. इसके चलते जेडीयू और एलजेपी के कैंडिडेट इस बार एक दूसरे के खिलाफ नहीं बल्कि एक साथ हैं. इस लिहाज से 2020 में दोनों पार्टियों के वोटों में जो बिखराव हुआ था, उसका ख़तरा इस बार नहीं है. जेडीयू-एलजेपी के समर्थक में टकराव न हो, उसके लिए जमीनी स्तर पर पार्टी नेताओं की बैठकें हुई हैं.
एनडीए खेमे के साथ चिराग पासवान के चुनाव लड़ने का सियासी लाभ भी मिल सकता है. बीजेपी-जेडीयू के साथ 2024 में चुनाव लड़ने के चलते चिराग का 100 फीसदी स्ट्राइक रेट रहा था. इस लिहाज से विधानसभा चुनाव में भी सियासी लाभ चिराग को मिलने के आसार हैं. चिराग के साथ होने से जेडीयू को भी सियासी लाभ मिल सकता है, खासकर उन 25 सीटों पर जहां पर 2020 में नीतीश कुमार के उम्मीदवार को एलजेपी के चलते हार का सामना करना पड़ा था.
चिराग का राजनीतिक आधार?
चिराग पासवान अपने पिता रामविलास पासवान के बेटे हैं. रामविलास पासवान बिहार में दलित राजनीति के सबसे बड़े चेहरा माने जाते थे, उनकी पकड़ दुसाध समाज पर काफी रही है. बिहार में यादव समाज के बाद दूसरी सबसे बड़ी जाति दुसाधों की है. बिहार जातीय सर्वेक्षण के मुताबिक बिहार में दुसाधों की आबादी 5.31 फ़ीसदी है. दलित वोटों में सबसे अधिक हिस्सेदारी पासवान वोटरों की है. इसीलिए बिहार के सियासी पिच पर पासवान सबसे मजबूत दिखाई देते हैं।
बिहार के हाजीपुर, समस्तीपुर, वैशाली, मुजफ़्फरपुर और गया जैसे क्षेत्र हैं, जहां पर दुसाध समाज हार-जीत तय करते हैं. बिहार की करीब 20 से 25 सीटें ऐसी हैं जहां पर दुसाध समुदाय की सीधी भागीदारी है और बिना उनके समर्थन किसी भी प्रत्याशी का जीतना मुश्किल है. इसके अलावा 70 से 80 सीटों पर भी दुसाध समुदाय अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं.
माना जाता है कि बिहार की सियासत में चिराग पासवान दुसाधों के सबसे बड़े निर्विवाद नेता हैं. साल 2020 का चुनाव एलजेपी ने बिना किसी गठबंधन के लड़ा था. 135 सीटों पर चुनाव लड़कर 5.8 फ़ीसदी वोट हासिल किए थे. इस तरह से साफ है कि दुसाधों का वोट चिराग पासवान के साथ एकमुश्त है. ऐसे में जेडीयू और बीजेपी के साथ लड़ने पर दुसाध समुदाय के वोटों का समर्थन मिल सकता है.
चिराग की अपनी लोकप्रियता
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बिहार में चिराग़ पासवान का सियासी आधार और उनकी लोकप्रियता इस चुनाव में मुख्य रोल में ले आई है. पासवान समुदाय से होने के बावजूद भी चिराग ने खुद को किसी एक जाति तक सीमित नहीं रखा है.
चिराग जातियों की ज़्यादा बात भी नहीं करते हैं. दलित समुदाय के मुद्दे पर जरूर मुखर रहते हैं, लेकिन बिहारी अस्मिता, रोजगार, क़ानून व्यवस्था पर अपना एजेंडा सेट कर रहे हैं. उन्होंने 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' का नारा दे रखा है, जिसके ज़रिए फर्स्ट टाइम वोटर और युवा वोटर को साधने की रणनीति है.
चिराग-नीतीश की केमिस्ट्री
छठ महापर्व के खरना के दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तमाम राजनीतिक कड़वाहटों को भुलाकर चिराग पासवान के पटना वाले आवास पर पहुंचे थे. यह नजारा इसलिए भी खास था क्योंकि पिछले पांच सालों में यह पहला मौका था जब नीतीश कुमार, चिराग के घर गए थे. इस मुलाकात के सियासी मायने हैं.
चिराग-नीतीश की मुलाकात न केवल एनडीए के भीतर 'ऑल इज वेल' का संदेश है, बल्कि महागठबंधन के लिए भी एक बड़ा संकेत है. यह दर्शाता है कि पुराने मतभेदों को पीछे छोड़कर एनडीए पूरी तरह से एकजुट है और नीतीश कुमार ही गठबंधन का सर्वमान्य चेहरा हैं, जिसका ऐलान चिराग पासवान पहले ही कर चुके हैं. चिराग ने कहा कि नीतीश कुमार सीएम हैं और आगे भी सीएम रहेंगे.
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