नक्शे से लेकर अर्थव्यवस्था तक खतरे में, बलूचिस्तान टूटा तो पाकिस्तान में क्या बचेगा?

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कई दशकों से बलूचिस्तान के लोग पाकिस्तान से अलगाव चाहते रहे. हाल-हाल में इसमें तेजी आई है. छुटपुट संघर्ष अब ज्यादा हिंसक हो चुके. कभी बलूच लड़ाके खदानों में काम करते चीनी अधिकारियों पर हमले करते हैं, तो कभी नागरिकों का अपहरण करते हैं. पाकिस्तान जैसे-तैसे आवाज दबाए हुए हैं. इस बीच सोचने की बात ये है कि पाकिस्तान अपने इस बागी हिस्से को लेकर क्यों इतना घबराया हुआ क्यों है. 

कितना बड़ा है बलूचिस्तान

यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, जो उसके कुल भू-भाग का लगभग 44 प्रतिशत हिस्सा कवर करता है. लेकिन इतने बड़े इलाके में आबादी बहुत कम है . यहां करीब 1.2 से 1.3 करोड़ लोग ही रहते हैं, जो देश की कुल जनसंख्या का लगभग 6 फीसदी है.

ईरान और अफगानिस्तान से सटे प्रांत के साथ दिलचस्प बात ये है कि इसके दो तरफ सिंध और पंजाब प्रांत भी लगते हैं और ये दोनों भी लगभग बागी हो चुके. 

फसाद की वजह क्या है

पाक के इस सबसे बड़े प्रांत में कुदरती खजाना जैसे गैस-कोयले और सोने के भारी भंडार हैं. इस्लामाबाद इन सब पर अपना अधिकार मानता है. यहां तक फिर भी ठीक है लेकिन जिस बलूच जमीन पर उसे ये सब मिल रहा है, वहां के लोगों को ही अपने रिसोर्सेज से दूर रखा जा रहा है. यहां मौजूद खदानों को पाक सरकार ने चीन को लीज पर दे रखा है. वे यहां काम करते और आपस में हिस्सा-बांट कर लेते हैं.

राजनीति में भी बलूचिस्तान के लोगों को खास स्पेस नहीं मिल सका. कुल मिलाकर, इनका हाल भी पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर (पीओके) जैसा है, वो भी ज्यादा धन-संपदा के बावजूद. यहां के लोगों की भाषा और तौर-तरीका भी पाकिस्तान से कम, और ईरान से ज्यादा मेल खाता है. इसी भेदभाव को लेकर यहां विद्रोह बढ़ता रहा.

balochistan separatist movement pakistan (Photo- Unsplash)बलूचिस्तान में ग्रेनाइट पर्वतों से लेकर बेहद कीमती धातुओं की खदानें हैं. (Photo- Unsplash)

अलगाव की धीमी आवाज बांग्लादेश के आजाद होने के बाद से उठने लगी थी. बलूच लिबरेशन आर्मी ने इसे और बुलंद किया. इस अलगाववादी गुट ने जब देखा कि मांगने से बात नहीं बन रही, तो वो रणनीति बनाकर हमले करने लगा. यहां की राजधानी क्वेटा अलगाववादियों का गढ़ बनी हुई है, जहां से हमले हो रहे हैं. 

कितना हो सकता है भौगोलिक नुकसान

अगर बलूचिस्तान अलग हो गया तो सबसे बड़ा नुकसान इलाके के आकार और रणनीतिक स्थिति का होगा. यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, जो देश के कुल क्षेत्रफल का करीब आधा हिस्सा कवर करता है. यानी अलगाव के बाद पाक लगभग आधा रह जाएगा. 

बलूचिस्तान के जरिए ही पाकिस्तान को अरब सागर तक पहुंच मिलती है. यहां का ग्वादर बंदरगाह चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर की रीढ़ है, जो दोनों को सीधे व्यापार का रास्ता देता है. अगर यह इलाका अलग हो गया तो समुद्री पहुंच के साथ इस्लामाबाद की रणनीतिक पहुंच भी कमजोर पड़ जाएगी. साथ ही बलूचिस्तान की सीमाएं ईरान और अफगानिस्तान से लगती हैं, इसलिए इसके जाने से पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा कमजोर पड़ जाएगी. यानी एक झटके में पाकिस्तान की इंटरनेशनल स्थिति भी कमजोर हो जाएगी. 

सैन्य नजरिए से भी बहुत बड़ा धक्का

यह इलाका देश की पश्चिमी रक्षा लाइन है. अफगानिस्तान और ईरान से लगती लंबी सीमा की सुरक्षा बलूचिस्तान के जरिए होती है. अगर यह बंट गया तो पाकिस्तान को अपनी सीमा के बिल्कुल पास एक नया दुश्मन देश मिल जाएगा. इससे न सिर्फ उसकी सुरक्षा खर्च बढ़ेगा, बल्कि सेना को हर वक्त नई सीमा पर तैनात रहना पड़ेगा. 

balochistan separatist movement pakistan (Photo- Pexels)बलूच खुद को ईरानी संस्कृति के ज्यादा करीब मानते रहे. (Photo- Pexels)

बलूचिस्तान का ग्वादर बंदरगाह और इसके आसपास की सैन्य चौकियां पाकिस्तान ने चीन की मदद से बनाई हैं. यह इलाका नौसैनिक रणनीति के लिहाज से बहुत अहम है. अगर यह चला गया, तो पाकिस्तान की नेवी अरब सागर में कमजोर हो जाएगी. चीन के लिए भी यह झटका होगा, क्योंकि उसने अरब सागर तक अपनी पहुंच बलूचिस्तान के जरिए बनाई थी. यानी, पाकिस्तान की रक्षा, खुफिया और नौसैनिक ताकत का एक बड़ा हिस्सा खत्म हो जाएगा.

इकनॉमिक रूप से और कमजोर हो जाएगा

आर्थिक तौर पर बलूचिस्तान पाकिस्तान की कमाई का बड़ा स्रोत है. यहां के पहाड़ों में प्राकृतिक गैस, कोयला, सोना, तांबा और तेल के बड़े भंडार हैं. पाकिस्तान की करीब 40 प्रतिशत गैस जरूरतें उसी से पूरी होती हैं. यह प्रांत अलग हो गया तो पाकिस्तान को इन संसाधनों पर से पूरा नियंत्रण खोना पड़ेगा. साथ ही, ग्वादर पोर्ट से जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार आता है, वो भी खत्म हो जाएगा. चीन के साथ जो अरबों डॉलर का कॉरिडोर प्रोजेक्ट चल रहा है, वह रुक जाएगा. 

क्या बांग्लादेश के बंटने से बड़ा होगा बलूचिस्तान का टूटना

सत्तर की शुरुआत में जब बांग्लादेश अलग हुआ था, तब पाकिस्तान ने अपनी आबादी का आधा हिस्सा खो दिया था. दूसरा बड़ा झटका था आर्थिक नुकसान, क्योंकि उस वक्त पूर्वी पाकिस्तान में जूट उद्योग और खेती से होने वाली कमाई पूरे देश की अर्थव्यवस्था को चलाती थी. लेकिन उस वक्त पाकिस्तान का भौगोलिक और रणनीतिक केंद्र यानी पंजाब और सिंध सुरक्षित थे. इसलिए देश बंटा जरूर लेकिन टूट नहीं गया. 

अब अगर बलूचिस्तान अलग हुआ तो झटका काफी बड़ा होगा. वजह यह है कि बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा और सबसे रणनीतिक इलाका है. यह देश की कुल जमीन का करीब 44 फीसदी हिस्सा है, जबकि आबादी बहुत कम है. यहीं पर ग्वादर बंदरगाह है जो चीन-पाकिस्तान रिश्ते की वजह है. अगर यह चला गया, तो पाकिस्तान की अरब सागर तक पहुंच तो जाएगी ही, बीजिंग से संबंध भी कमजोर पड़ जाएगा.

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