राजधानी दिल्ली के कुछ इलाके इन दिनों बाढ़ ग्रस्त हैं. भारी बारिश और हथिनीकुंड बैराज से पानी छोड़े जाने के बाद यमुना खतरे के निशान के ऊपर बह रही है. आस-पास की बस्तियां पानी में डूबी नज़र आ रही हैं. यहां रह रहे लोग रैन बसेरा या अन्य इलाकों में शिफ़्ट हो गए हैं. लाल किला और सचिवालय की मुख्य सड़कें तक पानी से लबालब भरी नज़र आ रही हैं. बाढ़ की हालिया तस्वीरें और आज के हालात ने 1978 की बाढ़ याद दिला दी है. जब बाढ़ की वजह से दिल्ली के हालात बद से बदतर हो गए थे. आइए जानते हैं, साल 1978 में बाढ़ के कारण दिल्ली ने क्या कुछ देखा था.
इतिहास में यमुना नदी की बाढ़
यमुना केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली की प्रमुख नदी है जो उत्तर से दक्षिण की ओर पूर्व दिशा में बहती है. यह नदी एक जलोढ़ नदी है इसलिए इसकी प्रवृत्ति घुमावदार है. अतीत में, इस नदी ने बाढ़ के मौसम में बड़े क्षेत्रों को जलमग्न करके दिल्ली वासियों के सामान्य जीवन को अस्त-व्यस्त किया है. 1924, 1947, 1955, 1956, 1967, 1971, 1975, 1976 और 1978 की बाढ़ें यमुना नदी में आई बाढ़ के प्रमुख उदाहरण हैं, जब दिल्लीवासियों का सामान्य जीवन बुरी तरह से अस्त-व्यस्त या खतरे में पड़ गया था.
1978 की भयानक बाढ़
यमुना नदी के उपलब्ध इतिहास में 1978 की बाढ़ सबसे अधिक दर्ज की गई है. इस बाढ़ में दिल्ली पुराने रेलवे पुल पर 207.49 मीटर (680.75 फीट) तक पानी पहुंच गया था. दिल्ली के पल्ला गांव और बवाना एस्केप आउट-फॉल के बीच बना बांध तक टूट गया था. इस हादसे से अलीपुर ब्लॉक का एक बहुत बड़ा क्षेत्र और आदर्श नगर, मॉडल टाउन, मुखर्जी नगर जैसी शहरी बस्तियां गहरे पानी में डूब गई थीं. इस बाढ़ में लगभग 10 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था. सबसे दुखद यह था कि अठारह लोगों की जान चली गई और हज़ारों लोग बेघर हो गए. रिपोर्ट्स के अनुसार, यमुना किनारे पर भी शाहदरा सीमांत बांध डेंजर वॉटर लेवल तक पहुंच चुका था.
जब थम गई थी दिल्ली की रफ़्तार
4 सितंबर, 1978 को द हिंदू में प्रकाशित एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, यमुना पर बने सभी चार पुल 48 घंटों के लिए वाहनों के आवागमन के लिए बंद कर दिए गए थे. उस समय लोगों ने खाना, पानी, आटा और दवाइयां जोड़ना शुरू कर दिया था. कई लोग घर की छतों पर रहने लगे थे. सरकार नाव के ज़रिए लोगों तक राहत सामग्री पहुंचा रही थी. दिल्ली से रुड़की जाने वाले रूट पर इतना पानी भरा हुआ था कि लोगों का जाना और आना मुश्किल हो गया था. Delhi Irrigation and Flood Control Department के अनुसार, 5-6 सितंबर 1978 को दिल्ली पुराने रेलवे पुल पर बाढ़ का जलस्तर 207.49 मीटर यानी 680.7 फीट तक पहुंच गया था.
बाढ़ के कारण बंद हुए थे अस्पताल और बाज़ार
दिल्ली में यमुना का जलस्तर बढ़ने की वजह से निगम बोध श्मशान घाट बंद कर दिए गए थे. कई इलाकों में पानी भर चुका था, जिसकी वजह से अस्पतालों में सेवाएं भी प्रभावित हुई थीं. साथ ही पुरानी दिल्ली, कश्मीरी गेट, चांदनी चौक, मोरी गेट, मठ बाज़ार, जामा मस्जिद, किनारी बाज़ार, फतेहपुरी, खारी बावली, नया बाज़ार में बाढ़ का पानी था.
हालात ऐसे थे कि लोगों को दुकानें बंद करनी पड़ गई थीं. पानी भरा होने की वजह से बस और ट्रेन का संचालन भी रोक दिया गया था, क्योंकि बस स्टैंड, मुख्य सड़कों और यहां तक कि रेलवे स्टेशन तक बाढ़ का पानी पहुंच चुका था. यमुना के पास वाले इलाकों में रह रहे लोगों के घर डूब चुके थे. सरकार की तरफ से लोगों को वहां से नाव से निकाला गया था और सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया था.
क्या आज दिल्ली पहले से बेहतर है?
पिछले 20 सालों में काफी कुछ बदल गया लेकिन दिल्ली अभी भी बाढ़ से परेशान है. उस समय शहर में मज़बूत जल निकासी व्यवस्था (water drainage system) की कमी थी. पिछले कुछ वर्षों में हालात बदल गए हैं. नदी के दोनों किनारों पर लगभग 20 शैंक बनाए गए हैं. जहां नदी अपना रास्ता बदलती है, 10 बांध बन चुके हैं, जो हरियाणा के हथिनीकुंड बैराज से पानी छोड़े जाने पर दिल्ली में बाढ़ आने से रोकते हैं. तटबंधों की ऊंचाई भी बढ़ गई है. अतिरिक्त पानी को सीवरों में मोड़ दिया जाता है और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में भेज दिया जाता है. पानी के वापस बहने को रोकने के लिए प्रमुख नालों को बंद कर दिया गया है.
हालांकि, इसके बावजूद दिल्ली में फिलहाल बाढ़ की स्थिति बनी हुई है. यमुना खतरे के निशान के ऊपर बह रही है. यमुना के बढ़ते जलस्तर ने यमुना बाज़ार, गीता कॉलोनी, मजनू का टीला, कश्मीरी गेट और मयूर विहार जैसे इलाकों में बुरा हाल है. अब तक 14,000 से अधिक लोगों को इलाकों से निकाला जा चुका है.
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