निक्की हत्याकांड- क्या नाबालिग बेटे की गवाही भी तय कर सकती है सजा?

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ग्रेटर नोएडा में निक्की भाटी की कथित दहेज हत्या का मामला सुर्खियों में है. पुलिस से लेकर महिला आयोग भी हरकत में आ चुका. इस बीच मृतका के बेटे का बयान भी आ रहा है. माना जा रहा है कि वो चश्मदीद था. बेटा हालांकि माइनर है. कई बार बच्चों की ट्यूटरिंग भी हो सकती है, जिससे उनकी गवाही तोड़ी-मरोड़ी जा सके. तो क्या गंभीर मामलों में भी नाबालिग की गवाही को किसी वयस्क के बयान जितनी ही अहमियत मिलती है? 

क्या है निक्की भाटी हत्याकांड

21 अगस्त की रात निक्की नाम की युवती की ग्रेटर नोएडा के सिरसा गांव में आग में झुलसकर मौत हो गई. मौत का आरोप ससुराल पक्ष पर है और मुख्य आरोपी है उसका पति विपिन. इस बीच सोशल मीडिया पर निक्की के साथ मारपीट और जलती हुई उसकी वीडियो वायरल हो चुकी, जो कथित तौर पर मृतका की बहन ने बनाया था. आरोपी समेत उसका पूरा परिवार हिरासत में लिया जा चुका. इस बीच निक्की का छह साल का बेटा कह रहा है कि उसकी मां के साथ उसके पिता ने मारपीट की और कुछ डालकर लाइटर लगा दिया. 

बच्चे के बयान को लेकर भी दो खेमे हो चुके. कुछ कह रहे हैं कि बच्चे कभी झूठ नहीं बोलते, लिहाजा उसके बयान को आधार मानकर तुरंत फैसला कर दिया जाए. दूसरे खेमे का कहना है कि बच्चा बहकावे में आकर भी बयान दे सकता है. ऐसे में छोटे बच्चे की बात के आधार पर इतनी बड़ी बात नहीं सोची जा सकती.

ये तो हुई आम लोगों के बीच की चर्चा लेकिन कानून क्या कहता है? क्या भारत के कानून में माइनर्स के बयान को भी केस में अहम माना जाता है?

इसे समझने के लिए हमने कड़कड़डूमा कोर्ट के सीनियर वकील मनीष भदौरिया से बात की. 

इंडियन एविडेंस एक्ट में गवाह बनने की न्यूनतम आयु तय नहीं है. इसका मतलब ये है कि बच्चा चाहे जितना भी कमउम्र हो, अगर अदालत को लगता है कि वो सवालों को समझ सकता है और उनके फैक्चुअल जवाब दे सकता है, तो उसका बयान वैध माना जाएगा.

nikki bhati murder case noida (Photo- ITG)निक्की मर्डर केस में पति विपिन मुख्य आरोपी है. (Photo- ITG)

इसी साल की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट में एक मामला आया, जिसमें एक सात साल की बच्ची अकेली गवाह थी. केस में उसके पिता ही मां की हत्या के आरोपी थे. बच्ची चश्मदीद गवाह थी. मामले में जज ने खुद बच्ची से बात की ताकि समझ आ सके कि उसकी समझ कितनी पक्की और तार्किक है. जब जज को समझ आ गया कि बच्ची समझदार है तो उन्होंने उसी सात साल की बच्ची की गवाही पर पिता को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. 

बच्चों से बयान लेने का तरीका अलग

भारतीय अदालत उम्र के आधार पर किसी की गवाही को खारिज नहीं करती. वकील मनीष भदौरिया कहते हैं- इंडियन एविडेंस एक्ट के तहत बच्चा बयान दे सकता है और अदालत को यकीन हो जाए कि वो सच बोल रहा है, तो उसकी गवाही पूरी तरह वैध है. लेकिन बयान दर्ज करने की प्रक्रिया आम वयस्कों के साथ होने वाली प्रक्रिया से बिल्कुल अलग है. 

मसलन, दिल्ली को लें तो यहां हर जिला अदालत में चाइल्ड विटनेस रूम बनाया गया है. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन है, जिसमें एविडेंस एक्ट में साफ-साफ बताया गया कि बच्चों से किस तरह से सवाल पूछे जाएं. घटना के तुरंत बाद पुलिस और फिर मजिस्ट्रेट के सामने चाइल्ड विटनेस का बयान होता है, जो बहुत नर्म और शालीन ढंग से होता है. इसके बाद अदालत में गवाही की बारी आती है. एडल्ट विटनेस को समन भेजकर कोर्ट बुलाते हैं, वहीं बच्चों के साथ ये नहीं हो सकता. 

अदालत तक लाने की अलग व्यवस्था

बच्चे के लिए गाड़ी और एक रिसोर्स पर्सन भेजा जाता है. आमतौर पर ये रिसोर्स पर्सन कोई महिला होती है, जो बच्चों के साथ प्यार से डील करना जानती हो, और पहले भी ऐसे मामले देख चुकी हो. इस बीच विटनेस रूम को बच्चे के हिसाब से तैयार किया जाता है. वहां चॉकलेट, चिप्स, खाने-पीने की दूसरी चीजें रखी जाती हैं ताकि बच्चा कंफर्टेबल हो सके.

चाइल्ड विटनेस रूम से अलग जज का कमरा होता है, जहां जज के साथ स्टेनो, डिफेंस काउंसिल और सरकारी वकील होते हैं. एक और कमरा होता है, जहां आरोपी होता है, जिसे बच्चे को पहचानना होता है. आरोपी का चेहरा सिर्फ कुछ सेकंड्स के लिए बच्चे को दिखाया जाता है, वो भी उसके कंफर्टेबल होने और गवाही देने के बाद ताकि बच्चा डर न जाए. 

child witness of a crime (Photo- Unsplash)बच्चा अगर चश्मदीद हो तो उसकी गवाही बड़ी सावधानी से ली जाती है. (Photo- Unsplash)

बच्चा एक स्क्रीन पर केवल जज को देख पाता है और उसकी आवाज भी सुन सकता है. वकील जज को सवाल देते हैं और वही सवाल बहुत प्यार से जज पूछते हैं. विटनेस अगर समझ न पाए तो रिसोर्स पर्सन वही सवाल दोहराती है. ये प्रोसेस तब तक चलती है, जब तक कि बच्चा सवाल का मतलब सही तरीके से न समझ जाए. यही जवाब स्टेनो लिखता है. 

बयान की गंभीरता से जांच होती है

बाकी मामलों की तरह यहां भी डर रहता है कि बच्चों को डरा-धमकाकर या लालच देकर बयान बदला जा सकता है. ये बात अदालत भी जानती है. बच्चा अगर बयान बदल रहा हो, या ऐसा लगे कि उसकी ट्यूटरिंग हुई है तो जज उसपर ध्यान देते हैं. उससे कई बार एक ही सवाल को अलग-अलग तरीके से लेकिन प्यार से पूछते हैं ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके. इसके बाद ही स्टेटमेंट दर्ज होता है.

बच्चे की सुरक्षा सबसे अहम

चाइल्ड विटनेस बिना डरे या बगैर दबाव से रह सके और उसका बचपन प्रभावित न हो, इसके लिए कई व्यवस्थाएं की गई हैं. मसलन, बच्चे का नाम चार्जशीट तक में नहीं लिखा जाता. न ही जजमेंट के दौरान या गवाही लेते हुए ही उनका नाम या पहचान जाहिर होती है. इसके लिए एबीसी या कोई भी कोड लिख दिया जाता है. भले ही लोग जानते हों कि फलां केस में बच्चा गवाह है, लेकिन अदालत अपनी तरफ से पूरी सतर्कता बरतते हुए कोई भी लिखित रिकॉर्ड नहीं रखती. 

बच्चे का बयान भले ही काफी सोफिस्टिकेटेड तरीके से दर्ज किया जाए लेकिन उसकी विश्वसनीयता काफी ज्यादा मानी जाती है. वहीं वयस्कों की गवाही कई बार खारिज हो जाती है. जैसे अगर कोई वयस्क बयान बदले तो समझ आ जाता है कि वो किसी दबाव या लालच में है. ऐसे में जज उसकी बात को अमान्य कर सकते हैं. कई बार गवाह होस्टाइल हो जाता है और अपनी बात से बिल्कुल मुकरते हुए नई ही बात बोलने लगता है. तब भी माना जाता है कि गवाही भरोसेमंद नहीं. 

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