भारत का पड़ोसी देश नेपाल पिछले तीन दिन से आंदोलन की आग में सुलग रहा है. सोशल मीडिया बैन, भ्रष्टाचार और नेपा किड्स के खिलाफ सोमवार से शुरू हुआ Gen-Z का प्रदर्शन अब राष्ट्रीय क्रांति में बदल चुका है. प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा है और सड़कों पर अराजकता का माहौल है. प्रदर्शनकारियों ने पूरे काठमांडू पर कब्जा कर लिया है, सेना ने हिंसा और आगजनी पर काबू पाने के लिए देशभर में कर्फ्यू लगा दिया है. नेपाल के इस नागरिक विद्रोह से भारत समेत तमाम पड़ोसी देश चिंतित हैं, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम पर चीन की चुप्पी हैरान करने वाली है.
चीन से लौटते ही ओली का इस्तीफा
चीन को नेपाल का सबसे बड़ा रणनीतिक साझेदार माना जाता है और ओली के कार्यकाल में दोनों देशों की बीच संबंध और गहरे हुए हैं. बीते साल जब केपी ओली चौथी बार प्रधानमंत्री बने तो परंपरा को तोड़ते हुए उन्होंने भारत की बजाय पहला दौरा चीन का किया था. हाल में तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन और उसके बाद चीन की विक्ट्री परेड में हिस्सा लेने के लिए ओली ने बीजिंग का दौरा किया था. इस दौरान राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ उनकी नजदीकियां साफ तौर पर देखी गईं, लेकिन इस दौरे को अभी दस दिन भी नहीं बीते हैं और ओली को प्रधानमंत्री का पद छोड़ना पड़ा है.
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चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी शिन्हुआ ने नेपाल में भड़की हिंसा और ओली के इस्तीफे पर लिखा, 'ओली, बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना के बाद किसी साउथ एशियाई देश के दूसरे ऐसे नेता हैं जिन्होंने चीन दौरे के बाद देश में भड़की हिंसा के बीच अपना इस्तीफा दे दिया. शेख हसीना को पिछले साल 5 अगस्त को छात्रों के सरकार विरोधी प्रदर्शन के बाद देश छोड़कर भारत भागना पड़ा था. इसी तरह ओली को भी बीजिंग दौरे के बाद पीएम पद छोड़ना पड़ा है.' अब ओली के भी देश छोड़कर दुबई भागने की अटकलें लगाई जा रही हैं, क्योंकि पीएम पद छोड़ने के बाद से वह अंडरग्राउंड हो गए हैं.
चीन के चरणों में चले गए थे ओली
काठमांडू पोस्ट में ने अपने एक हालिया संपादकीय में लिखा कि ओली ने भारत और पश्चिमी देशों से दूरी बना ली है और नेपाल को चीन के करीबी साझेदार के तौर पर पेश किया है. लेख में कहा गया कि रणनीतिक स्वायत्तता की नीति पर चलने के बावजूद ओली ने नेपाल को चीन के करीब लाकर खड़ा कर दिया है. इसका असर नेपाल की विदेश नीति और ओली के अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर लंबे वक्त तक रहेगा. लेकिन अब ओली नेपाल के प्रधानमंत्री नहीं हैं और सत्ता में बदलाव को लेकर चीन सीधे तौर पर चिंतित है. नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता का असर चीन पर भी पड़ेगा और यह द्विपक्षीय रिश्तों के लिए भी चुनौती बन सकता है.
नेपाल की ओली सरकार चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग के ड्रीम प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशेटिव (BRI) को बढ़ावा दे रही थी. पिछले साल दिसंबर में चीन की यात्रा के दौरान ओली ने बीआरआई में शामिल होने वाले ड्राफ्ट पर साइन किए थे. ओली ने तब कहा था, 'राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ बहुत अहम बैठक से सम्मानित महसूस कर रहा हूं. बेल्ट एंड रोड सहयोग ड्राफ्ट डील से नेपाल और चीन के बीच आर्थिक सहयोग और मजबूत होगा.' जिनपिंग के इतने करीबी होने के बाद भी नेपाल में उपजे विद्रोह पर चीन की तरफ से अबतक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, जबकि भारत, अमेरिका के अलावा तमाम पश्चिमी देश नेपाल की हिंसा को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दे चुके हैं.
नुकसान का अंदाजा लगा रहा चीन
चीन की चुप्पी उसकी बेचैगी को उजाकर करती है, क्योंकि नेपाल का जनआंदोलन ने बीजिंग के प्रभाव को चुनौती दी है. नेपाल में BRI के तहत रोड, रेल और पोर्ट प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं, जो भारत को घेरने की चीनी रणनीति का हिस्सा हैं. लेकिन मौजूदा आंदोलन नेपाल की चीन पर अत्यधिक निर्भरता के खिलाफ भी है और प्रदर्शनकारी ओली की विदेश नीति की खुलकर आलोचना कर रहे हैं, जो चीन के कदमों में जाकर गिर चुके थे. चीन अब नुकसान का आकलन कर रहा है. अगर नई सरकार भारत या अमेरिका की ओर झुकती है, तो नेपाल में BRI प्रोजेक्ट्स को झटका लग सकता है.
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नेपाल दरअसल चीन और अमेरिका के बीच फंसता जा रहा है और दोनों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश में है. नेपाल को अमेरिका इंडो-पैसिफिक रणनीति के तहत इस्तेमाल करना चाहता है, जहां चीन का प्रभाव कम हो, इसी वजह से वह MCC प्रोजेक्ट के जरिए बिजली और रोड इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस करता है, जो BRI को चुनौती देने वाला है.
नेपाल में बढ़ता अमेरिकी दखल
ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन (MCC) प्रोजेक्ट को फिर से शुरू किया, जो $500 मिलियन की सहायता है. यह फैसला जुलाई 2025 में आया, जिसे चीन के लिए बड़ा झटका माना गया. नेपाल ने चीन के विरोध के बावजूद अमेरिकी सहायता को स्वीकार किया है. इस प्रोजेक्ट के तहत नेपाल अपने ऊर्जा और परिवहन क्षेत्र को अमेरिकी मदद से मजबूत करेगा, जिसपर चीन आपत्ति जता रहा था. चीन का मानना था कि इसके जरिए नेपाल में अमेरिका अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाएगा और वहां से तिब्बत के रास्ते चीन को अस्थिर करने की कोशिश भी कर सकता है.
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रूस भी नेपाल के हालात पर करीब से नजर बनाए हुए है. काठमांडू स्थित रूसी दूतावास ने मंगलवार को कहा कि उसने अपने नागरिकों को हिमालयी राष्ट्र में बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी प्रदर्शनों के मद्देनजर सावधानी बरतने की सलाह दी है. इस बीच रूसी पर्यटन विभाग की तरफ से कहा गया कि नेपाल में करीब 200 रूसी पर्यटक थे, रूसी दूतावास ने उन्हें पहाड़ों में ही रहने और हिंसा के केंद्र काठमांडू की यात्रा न करने की सलाह दी है.
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