22 अप्रैल, पहलगाम: जहां सैलानियों की मुस्कानें गोलियों में बदल दी गईं. यहीं से शुरू हुआ 'ऑपरेशन महादेव' का खौफनाक सच. पहलगाम की इस चुप्पी में दबी है 25 लाशों की चीख. यही थी ‘ऑपरेशन महादेव’ की पहली परत. ये तस्वीर पूरी दुनिया में इस आतंकी घटना की पहचान बनी थी जिसमें पहलगाम में जान गंवाने वाले विनय नरवाल के शव के पास उनकी पत्नी हिमांशी नरवाल बेसुध बैठी थी.
23 अप्रैल को आतंक की आग से झुलसते कश्मीर में राजनीतिक इच्छाशक्ति ने मोर्चा संभाला.देश के गृहमंत्री अमित शाह ने सिक्योरिटी मीटिंग ही नहीं की बल्कि ये एक युद्ध की भूमिका थी, जो देश की जमीन से शुरू होकर उसकी सीमाओं तक जाने वाली थी. एक दिन पहले पहलगाम में 25 निर्दोष लोगों की हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया था. अब बारी थी कार्रवाई की.
22 मई, दाचीगाम: तीन हफ्ते बीत चुके थे, पर देश की चेतना अभी भी 22 अप्रैल के ज़ख्म से सुलग रही थी. और तभी आया पहला सुराग, इंसानी खुफिया सूत्रों से मिली खबर ने हलचल मचा दी. इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) को पता चला कि श्रीनगर के पास दाचीगाम की वादियों में कुछ संदिग्धों की आवाजाही देखी गई है. सूचना छोटी थी, लेकिन उसका असर भारी था.
दाचीगाम की पहाड़ियां, मई के अंतिम सप्ताह. इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) ने दाचीगाम के आसपास संचार इंटरसेप्टर तैनात कर दिए. हर बीप, हर शोर, हर रेडियो तरंग अब निगरानी में थी. जवान पहाड़ों में पैदल चले, पीठ पर भारी इंटरसेप्शन डिवाइसेज़ और आंखों में एक ही लक्ष्य, वो था दुश्मन की लोकेशन को पकड़ना, उनके इरादों को पढ़ना. ऑपरेशन महादेव अब दुश्मन की हर सांस गिन रहा था.
22 जुलाई, दाचीगाम के नजदीक...अब कोई शक नहीं बचा था. सिग्नल पकड़ में आ चुके थे. लोकेशन मैप पर लाल बिंदु की तरह उभर चुकी थी. इंटरसेप्टर्स की मेहनत रंग लाई और अब आतंकियों की मौजूदगी की पुष्टि हो चुकी थी. सेना के अफसर मुस्कुरा रहे थे लेकिन ये मुस्कान किसी राहत की नहीं, एक निर्णायक कार्रवाई की तैयारी की थी. ऑपरेशन महादेव अब निर्णायक मोड़ पर था.
दाचीगाम की घाटी में जंगल अब खामोश नहीं थे. रेकी (Recce) ने साफ कर दिया था कि आतंकी यहीं हैं. अब इंतज़ार नहीं, एक्शन का वक्त था. पुलिस, CRPF और सेना ने मिलकर जॉइंट ऑपरेशन शुरू किया. हर पेड़ के पीछे खतरा था... हर कदम पर मौत की आशंका. ‘ऑपरेशन महादेव’ अब अपने अंतिम और सबसे खतरनाक चरण में था यानी सीधा आमना-सामना.
28 जुलाई, दाचीगाम के जंगल: चारों ओर घना जंगल था, लेकिन आतंकियों का छिपे रहना अब मुमकिन नहीं था. जैसे ही आतंकियों ने फायरिंग शुरू की, ‘ऑपरेशन महादेव’ को लीड कर रहे सैनिक उन पर टूट पड़े. कुछ ही समय में तीनों आतंकी मारे गए. ना कोई बचा, ना बचने की गुंजाइश. तीन महीने के खुफिया जाल का आखिरी सिरा मिल चुका था. इस सन्नाटे में भी राहत थी.
28 जुलाई को दाचीगाम में तीन लाशों को चार गवाहों को बुलाकर पहचान कराई गई. सड़क किनारे पड़ी इन लाशों ने ‘ऑपरेशन महादेव’ का अंतिम चैप्टर लिख दिया. चारों चश्मदीदों ने सिर झुकाकर आतंकी चेहरों की पहचान की. पहलगाम से दाचीगाम तक तीन महीने का इंतज़ार खत्म हो चुका था. यहां सिर्फ लाशें नहीं थीं ये, ये जवाब थीं उस चुप्पी का, जो 22 अप्रैल को गोलियों में टूटी थी.
28 जुलाई को दाचीगाम एनकाउंटर के बाद बरामद हथियारों को स्पेशल फ्लाइट से फॉरेंसिक टेस्ट के लिए चंडीगढ़ भेजा गया. यहां ये पता लगाया जाएगा कि क्या यही वे बंदूकें थीं जिन्होंने पहलगाम की 25 जानें छीनीं? ऑपरेशन महादेव की अगली परत अब लैब से खुलेगी.
29 जुलाई को लैब से निकला वो सबूत, जिसने सब बदल दिया. पहलगाम से मिले बुलेट शेल्स की जांच ने साफ किया कि दाचीगाम में मिली बंदूकों से ही गोलियां चली थीं. अब शक नहीं, ऑपरेशन महादेव के आतंकी वही थे जिन्होंने 22 अप्रैल को पहलगाम में मौत की होली खेली थी.
जुलाई 29 को चंडीगढ़ फॉरेंसिक लैब के छह एक्सपर्ट्स ने केंद्रीय गृहमंत्री को वीडियो कॉल के जरिये अपनी फाइंडिग्स साझा की. एक्सपर्ट ने इस बात की पुष्टि की कि इन्हीं बंदूकों से पहलगाम की नृशंस घटना अंजाम दी गई.
फिर 29 जुलाई को गृहमंत्री ने लोकसभा में ये जानकारी दी कि दाचीगाम में ऑपरेशन महादेव में मारे गए आतंकी ही पहलगाम घटना के असली गुनहगार थे. वहीं लोकसभा में आज ऑपरेशन सिंंदूर और पहलगाम घटना को लेकर विपक्ष ने सरकार से कई तीखे सवाल पूछे. वहीं आखिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर को सेना का शौर्य बताया और आतंकवाद के खिलाफ ऑपरेशन सिंंदूर जारी रखने की बात कही.