पहले प्यार, फिर इनकार और अब स्वीकार... कैसे पप्पू यादव को दे ही दी कांग्रेस ने अपनी लिस्ट में एंट्री

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पूर्णिया लोकसभा सीट से निर्दलीय सांसद बनने के साथ ही राजीव रंजन उर्फ पप्पू यादव ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया था. आरजेडी के साथ दोस्ती बरकरार रखने के लिए कांग्रेस पप्पू यादव को पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पा रही थी. इसके चलते पप्पू यादव का कांग्रेस के साथ रिश्ता कभी प्यार का तो कभी तकरार का रहा, लेकिन कांग्रेस ने अब पप्पू यादव को आखिरकार अपनी सियासी ट्रेन पर पूरी तरह सवार ही कर लिया.

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए कांग्रेस ने अपने स्टार प्रचारकों की लिस्ट जारी की है, जिसमें पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी सहित 40 नेताओं के नाम शामिल हैं. इस लिस्ट में पप्पू यादव के साथ उनकी सांसद पत्नी रंजीता रंजन का नाम भी है. हालांकि, रंजीता रंजन पहले से ही कांग्रेस में हैं जबकि पप्पू यादव को पहली बार औपचारिक एंट्री मिली है.

कांग्रेस के साथ पप्पू यादव के रिश्ते

2024 के लोकसभा चुनाव में ही पप्पू यादव कांग्रेस का दामन थामकर किस्मत आजमाने के प्लान में थे. दिल्ली जाकर उन्होंने अपनी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय कराया. कांग्रेस मुख्यालय में उनका स्वागत तक हुआ, लेकिन पप्पू यादव को बिहार में पार्टी ने अपना सदस्य नहीं माना था. कहा गया था कि वह तो चाय-नाश्ते पर वहां गए थे. लोकसभा चुनाव से पहले हकीकत सामने आई थी. पूर्णिया सीट आरजेडी के खाते में जाने के बाद सारा सीन बदल गया था.

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आरजेडी प्रत्याशी बीमा भारती के खिलाफ पप्पू यादव के निर्दलीय चुनाव लड़ने के चलते कांग्रेस को उनसे दूरी बनानी पड़ी थी. इसके बाद पप्पू यादव पूर्णिया से सांसद बनने में कामयाब रहे. लोकसभा चुनाव जीतने के बाद पप्पू यादव ने कांग्रेस के साथ अपनी नजदीकियां भले ही बढ़ा ली थीं, लेकिन कांग्रेस उन्हें आधिकारिक तौर पर गले लगाने से बच रही थी. पप्पू खुद को कांग्रेसी कहते-कहते थक गए, लेकिन चुनाव भर कांग्रेस ने उन्हें अपना नहीं माना.

कांग्रेस के दो बड़े कार्यक्रमों में पप्पू यादव को मंच तक पहुंचने नहीं दिया गया था. एक बार राहुल की गाड़ी से, दूसरी बार मंच से, चढ़ते-चढ़ते उतार दिया गया. माना जाता है कि तेजस्वी यादव से दोस्ती और गठबंधन की मजबूरी के चलते कांग्रेस पप्पू यादव को बहुत आगे नहीं कर पा रही थी. महागठबंधन पर छाया कोहरा छंटने के बाद कांग्रेस ने सार्वजनिक रूप से पप्पू यादव को अपना नेता मान लिया है.

कांग्रेस का हाथ पप्पू यादव के साथ

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों के उतरने और तेजस्वी यादव के चेहरे पर अब फ़ाइनल मुहर लगने के बाद कांग्रेस ने पप्पू यादव को सार्वजनिक रूप से गले लगा लिया है. कांग्रेस ने पप्पू यादव को अपने स्टार प्रचारकों की सूची में जगह देकर साफ कर दिया है कि वह अब उनकी पार्टी के नेता हैं.

पप्पू यादव के रूप में कांग्रेस को बिहार में एक मुखर चेहरा मिल गया है, खासकर सीमांचल और कोसी के इलाके में वह कांग्रेस के लिए ट्रंप कार्ड साबित हो सकते हैं.

बिहार में कांग्रेस लंबे समय तक सरकार में रही थी, लेकिन लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक उदय के साथ ही कांग्रेस के लिए नेतृत्व वाला चेहरा गायब हुआ और कभी कोई उभरा ही नहीं, इसीलिए कांग्रेस अब पप्पू यादव को अपने स्टार प्रचारकों में रखकर साफ कर दिया है कि उन्हें सियासी अहमियत देने में कोई कमी नहीं करेगी. इससे पहले पप्पू यादव ने दिल्ली में बिहार चुनाव को लेकर कांग्रेस नेताओं के साथ हुई बैठक में शिरकत की थी.

कांग्रेस के लिए कितने मुफ़ीद होंगे?

कांग्रेस जरूरत के हिसाब से अपने रिश्ते बदलती रही है. 'वोट अधिकार यात्रा' के समापन कार्यक्रम में पप्पू यादव को राहुल गांधी के मंच पर नहीं चढ़ने दिया गया, लेकिन अब चुनाव में प्रचार कर पार्टी उम्मीदवारों को जिताने के लिए पप्पू यादव को स्वीकार कर लिया है.

पप्पू यादव की अपनी लोकप्रियता है. सीमांचल और कोसी इलाक़े के यादव, मुस्लिम, दलित, अति पिछड़ी जाति के बीच उनकी पकड़ है, जिसे कांग्रेस भुनाने के लिए ही सियासी रण में उतारा है. कांग्रेस नेताओं को जिताने के लिए पप्पू यादव पसीना बहाते नजर आएंगे.

बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 60 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. पिछली बार कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़कर 19 सीटें ही जीती थी, जिसको लेकर आरजेडी ने तमाम सवाल उठाए थे. बिहार की सत्ता से नहीं आ पाने का ठीकरा कांग्रेस के सिर फोड़ा गया था.  

बिहार में इस बार कांग्रेस अपनी सीटों पर बेहतर प्रदर्शन करना चाहती है, जिसके लिए ही पप्पू यादव जैसे नेता पर भरोसा जताया है. पूर्णिया और मधेपुरा इलाके में उनका सशक्त जनाधार है. पप्पू यादव के साथ रहने से कांग्रेस को इस पूरे इलाके में अच्छी खासी सीटें मिल सकती हैं. इस मिशन में पप्पू यादव जुट गए हैं, लेकिन देखना है कि वह किस तरह से कांग्रेस के लिए सियासी मुफीद साबित होंगे?

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