फैटी लिवर से बचाएगी डायबिटीज वाली दवा सेमाग्लूटाइड, FDA ने दी मंजूरी

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फैटी लिवर आज के समय की सबसे बड़ी हेल्थ प्रॉब्लम्स में से एक बन चुकी है. इसकी परेशानी ये है कि ज्यादातर लोगों में इसके लक्षण तब तक नहीं दिखते, जब तक बीमारी गंभीर स्तर पर न पहुंच जाए. गई मामलों में स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि लिवर फेलियर की नौबत भी आ जाती है. हालांकि, अमेरिका की फूड एंड ड्रग एडिनिस्ट्रेशन ने सेमाग्लूटाइड नाम की दवा को मेटाबॉलिक एसोसिएटेड स्टीटोहेपेटाइटिस (MASH) के इलाज के लिए मंजूरी दे दी है. यह वही दवा है जिसका इस्तेमाल पहले से ही डायबिटीज और वजन कम करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. MASH लिवर की एक गंभीर बीमारी है, जो उसमें ज्यादा चर्बी और सूजन की वजह से होती है.

शुरुआत में इसके लक्षण दिखाई नहीं देते, लेकिन अगर समय पर इलाज न हो तो यह सिरोसिस, लिवर फेलियर या कैंसर तक पहुंच सकती है. सेमाग्लूटाइड वजन घटाने, लिवर में चर्बी कम करने और सूजन कम करने में मदद करती है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक यह एक बड़ी सफलता है क्योंकि इससे फैटी लिवर से परेशान लाखों मरीजों को पहली बार असरदार दवा मिलने की उम्मीद जगी है.

MASH क्या है?
दवा के बारे में जानने से पहले आपका ये जानना बहुत जरूरी है कि आखिर MASH क्या है. MASH को पहले NASH कहा जाता था. ये फैटी लिवर का एक गंभीर रूप है. ये तब होता है जब लिवर में फैट जमा हो जाता है और सूजन पैदा हो जाती है.

अरली स्टेज (MAFLD): एरली स्टेज में आमतौर पर बिना किसी लक्षण के लिवर में फैट जमा हो जाता है.

MASH स्टेज: इस स्टेज में आते-आते सूजन और लिवर सेल्स डैमेज होना शुरू हो जाता है.

एडवांस स्टेज (फाइब्रोसिस और सिरोसिस): लगातार डैमेज के कारण निशान पड़ जाते हैं, लिवर की फंक्शनैलिटी कम हो जाती है और कभी-कभी लिवर फेलियर या कैंसर हो जाता है.

MASH का पता लगाने में क्यों होती है दिक्कत?
MASH का पता लगाना अक्सर मुश्किल होता है क्योंकि ज्यादातर लोगों को तब तक कोई लक्षण महसूस नहीं होते जब तक कि बीमारी गंभीर स्थिति में न पहुंच जाए. जब ​​लक्षण दिखाई देते हैं, तो उनमें पेट दर्द या बेचैनी, लगातार थकान और कम एनर्जी, भूख न लगना या अनजाने में वजन कम होना और पीलिया शामिल हो सकते हैं, जिससे स्किन और आंखों का रंग पीला पड़ जाता है. क्योंकि यह लंबे समय तक छिपा रह सकता है इसलिए शुरुआती जांच बहुत जरूरी हो जाती है, खासकर उन लोगों के लिए जो ज्यादा वजन वाले, डायबिटीज या हाई कोलेस्ट्रॉल वाले हैं.

MASH और मोटापे के बीच संबंध:
MASH का मोटापे, डायबिटीज और खराब लाइफस्टाइल से गहरा संबंध है. दुनिया भर में ज्यादा से ज्यादा लोगों का वजन बढ़ रहा है और वे इनएक्टिव लाइफ जी रहे हैं इसलिए MASH क्रॉनिक लिवर रोग के सबसे आम कारणों में से एक बन गया है.

कुछ समय पहले तक डॉक्टर सिर्फ यही सलाह देते थे कि मरीज अपने खाने पर ध्यान दें, रेगुलर एक्सरसाइज करें और वजन कम करें. साल 2023 में रेस्मेटिरोम नाम की दवा को मंजूरी मिली थी. अब सेमाग्लूटाइड भी एक नया इलाज का ऑप्शन बन गया है.

सेमाग्लूटाइड कैसे करेगी मदद?
सेमाग्लूटाइड एक प्रकार की दवाई है जिसे GLP-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट के रूप में जाना जाता है. ये MASH से बीमार हुए लोगों के लिए कई तरह से फायदेमंद है. ये वजन और पेट की चर्बी कम करके लिवर में जमा फैट की मात्रा को कम करता है. ये इंसुलिन सेंस्टिविटी को भी बेहतर बनाता है, जिससे आगे चर्बी जमा होने से रोकने में मदद मिलती है. इसके अलावा, सेमाग्लूटाइड सूजन को कम करता है, जिससे लिवर डैमेज कम होता है. इन फायदों के कारण ये मोटापे और फैटी लिवर जैसे समस्याओं दोनों से जूझ रहे लोगों के लिए खास रूप से उपयोगी है.

क्लिनिकल ट्रायल के रिजल्ट्स क्या रहे?
MASH के लिए सेमाग्लूटाइड को FDA की मंजूरी एक क्लिनिकल ट्रायल के कारण मिली, जिसमें 800 मरीज शामिल थे. इसके रिजल्ट काफी एनकरेजिंग रहे. सेमाग्लूटाइड लेने वाले 63% मरीजों में बीमारी पूरी तरह ठीक हो गई और लिवर पर निशान भी नहीं बढ़े. इसके मुकाबले, प्लेसीबो लेने वाले सिर्फ 34% मरीजों में ही ऐसा सुधार देखा गया. इसके अलावा, सेमाग्लूटाइड लेने वाले 37% मरीजों में लिवर के निशान (फाइब्रोसिस) कम हुए, जबकि प्लेसीबो लेने वालों में यह संख्या सिर्फ 22% थी. यह ट्रायर अभी भी जारी है ताकि यह पता चल सके कि यह दवा लंबे समय में मौत, लिवर ट्रांसप्लांट या अन्य गंभीर कॉमप्लिकेशंस के खतरे को कम कर सकती है या नहीं.

भारत में MASH की स्थिति:
भारत में फैटी लिवर की समस्या तेजी से बढ़ रही है. इसकी बड़ी वजह है शहरी लाइफस्टाइल, कम फिजिकल एक्टिविटी और डायबिटीज है. 2025 में हैदराबाद के आईटी कर्मचारियों पर किए गए एक रिसर्च में चौंकाने वाले आंकड़े मिले. इसमें पाया गया कि 84% लोगों के लिवर में ज्यादा फैट थी, 76.5% को हाई कोलेस्ट्रॉल था, 70.7% मोटापे से ग्रस्त थे और 20.9% में शुगर लेवल भी ज्यादा था. ये आंकड़े बताते हैं कि भारत की कामकाजी आबादी में फैटी लिवर तेजी से खतरा बन रहा है और इसके लिए जागरूकता, समय पर जांच और बेहतर इलाज की जरूरत है.
 

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