बेंगलुरु की ऑफिस लाइफस्टाइल पर फिर से बहस छिड़ गई है. एक महिला को फिल्म के दौरान थिएटर में ही लैपटॉप खोलकर काम करते हुए देखा गया. महिला हेडफोन लगाए स्क्रीन पर टाइपिंग में बिजी थी. यह नजारा पास बैठे एक शख्स ने कैमरे में कैद कर रेडिट पर शेयर किया और लिखा-थिएटर में महिला करती रही लैपटॉप पर काम, बेंगलुरु का वर्क कल्चर गजब है.
पोस्ट में शख्स ने आगे लिखा कि सिर्फ बेंगलुरु में ही ऐसा हो सकता है. मैं मूवी देखने गया था और मेरे आगे बैठी महिला ने अचानक लैपटॉप खोल लिया और ऐसे टाइप करने लगी जैसे ऑफिस में बैठी हो.
वर्क-लाइफ बैलेंस वो क्या होता है
पोस्ट वायरल होते ही सोशल मीडिया पर जमकर चर्चा छिड़ गई. जिसने वीडियो शेयर किया, उसने सवाल उठाया कि लोग दो घंटे भी बिना ऑफिस प्रेशर के नहीं रह सकते. वर्क-लाइफ बैलेंस आखिर वो क्या होता है.
देखें पोस्ट
सोशल मीडिया पर बंटे यूजर्स
कुछ यूजर्स ने महिला के हालात को मजबूरी बताया तो कईयों ने इसे गैर-प्रोफेशनल कहा. एक यूजर ने लिखा कि लगता है वह यूएस टीम के साथ काम करती है और वर्क स्किप करने की जानकारी नहीं दी. इसलिए मीटिंग जॉइन करनी पड़ी, लेकिन यह प्रोफेशनलिज़्म की कमी है. सोचो अगर उसकी टीम ने देख लिया तो.
दूसरे ने अनुभव शेयर किया कि कुछ कंपनियां कर्मचारियों का शोषण करती हैं. मैं भी हर जगह लैपटॉप लेकर जाता था, यहां तक कि पेड लीव पर भी, क्योंकि क्लाइंट कब डिमांड कर दे, पता ही नहीं चलता.
एक और यूजर बोला कि यूएस और यूरोप की टीमों के साथ काम करने वालों को अक्सर रात में मीटिंग करनी पड़ती है. दिन में इंडियन ऑवर्स और रात में इंटरनेशनल. यह रियलिटी है. बड़ी-बड़ी कंपनियां वर्क-लाइफ बैलेंस का दिखावा करती हैं, लेकिन असलियत कुछ और है.
क्या यह गुलामी है
किसी ने इसे सीधे गुलामी कह दिया. एक यूजर ने लिखा कि यह कल्चर नहीं, गुलामी है. मैंने एक शख्स को सैलून में बाल कटवाते हुए लैपटॉप पर काम करते देखा है. हालांकि सभी आलोचना नहीं कर रहे थे. कुछ ने महिला के हालात को समझते हुए कहा कि शायद वह मजबूरी में ऐसा कर रही हों.यह पोस्ट अब तक हजारों व्यूज बटोर चुकी है और बेंगलुरु के कॉर्पोरेट ग्राइंड पर बहस को और तेज कर चुकी है.
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