चुनावों में किसी भी गठबंधन के लिए सबसे बड़ी चुनौती सीट शेयरिंग होती है. बिहार चुनाव के लिए सीटों का बंटवारा दोनों गठबंधनों के लिए एक जैसी चुनौती बन गया है. एनडीए के लिए भी. और, INDIA ब्लॉक, जो बिहार में महागठबंधन के तौर पर भी जाना जाता है, उसके लिए भी.
जन सुराज पार्टी के साथ प्रशांत किशोर की एंट्री, चैलेंज तो दोनों ही गठबंधनों के लिए हैं लेकिन एनडीए के सामने ऐसी एक और चुनौती है. चिराग पासवान अब भी एनडीए की सीट शेयरिंग में चुनौती बने हुए हैं. चिराग पासवान के जीजा और एलजेपी-आर के बिहार प्रभारी अरुण भारती कह रहे हैं कि उनकी पार्टी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की क्षमता रखती है. अपनी दलील को मजबूत करने के लिए वो 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव की याद दिला रहे हैं.
बिहार से जो खबरें आ रही हैं, मालूम होता है कि एनडीए में बीजेपी और नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के बीच करीब करीब सहमति बन चुकी है, और मामला सिर्फ बाकी दलों को लेकर फंसा है. एनडीए में बीजेपी-जेडीयू सहित अभी 5 राजनीतिक दल हैं, उन संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा रहा, जिनमें ये नंबर घट या बढ़ भी सकता है. हो सकता है पिछले चुनाव की तरह किसी और को वाइल्ड कार्ड एंट्री देनी पड़े.
जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा तो कम, लेकिन चिराग पासवान काफी दिनों से अलग अलग तरीके से दबाव बनाने की कोशिश भी कर रहे हैं - लेकिन वो ये भूल जाते हैं कि प्रेशर पॉलिटिक्स के असली खिलाड़ी तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही है. लंबे समय से नीतीश कुमार अपनी ये तकनीकी रणनीति अपनाते आ रहे हैं, और ज्यादातर सफल ही रहे हैं.
बक्सर की राजपुर विधानसभा सीट से पूर्व मंत्री संतोष कुमार निराला को अचानक उम्मीदवार घोषित किए जाने के पीछे भी प्रेशर पॉलिटिक्स है. नीतीश कुमार ने ये काम डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी की मौजूदगी में किया है. देखें तो ये बीजेपी के लिए एक सख्त संदेश भी समझा जा सकता है - और थोड़ा अलग होकर देखें तो बीजेपी की सहमति भी हो सकती है, और संदेश चिराग पासवान सहित अन्य सहयोगियों के लिए भी हो सकता है.
बिहार एनडीए में सीटों के बंटवारे का फॉर्मूला
सीटों के बंटवारे के मामले में बीजेपी और जेडीयू के बीच बात बराबरी पर चल रही है, ऐसा बताया जा रहा है. लेकिन, अभी ये फाइनल नहीं है. जेडीयू को इस बार भी बीजेपी के मुकाबले कुछ ज्यादा सीटें दिए जाने की बात है. दोनों की संख्या 100 से तो ज्यादा ही होगी, और बाकी में अन्य सहयोगी दलों के बीच बंटवारा होगा.
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू ने 115 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जबकि बीजेपी ने अपने पास 110 सीटें रखी थीं. उस चुनाव में चिराग पासवान एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन इस बार वैसे बंटवारा संभव नहीं होगा. क्योंकि, सहयोगियों को सीटें देने के लिए बीजेपी और जेडीयू को अपने हिस्से से समझौता करना पड़ेगा. हालांकि, हाल ही में जेडीयू नेता केसी त्यागी ने कहा था कि चिराग पासवान बीजेपी के हिस्से में हैं, इसलिए जेडीयू को उन बातों से कोई मतलब नहीं है.
पिछले चुनाव में चिराग पासवान ने 135 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए थे, लेकिन जीत एक ही पाए थे. बाद में वो भी साथ छोड़कर चला गया था. पिछली बार चिराग पासवान नहीं थे, तो वीआईपी वाले मुकेश सहनी थे, जो फिलहाल आरजेडी और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में हैं.
सुनने में आया है कि अकेले चिराग पासवान ही 40 सीटें चाहते हैं, जो किसी भी सूरत में संभव नहीं लगता. क्योंकि, कतार में जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा भी तो हैं. और, अगर पिछली बार की तरह अचानक से मुकेश सहनी एनडीए में दाखिला ले लिए, तो क्या होगा? वाइल्ड कार्ड एंट्री के लिए जगह तो बनाकर रखनी ही होगी.
किसकी दावेदारी कितनी मजबूत
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी को मटिहानी की सीट और 5.64 फीसदी वोट मिले थे. लेकिन, अब वो लोकसभा चुनाव के आधार पर विधानसभा सीटों पर दावेदारी पेश कर रहे हैं, और उसी हिसाब से 40 सीटों पर दावा पेश कर सकते हैं.
पिछले चुनाव में कम सीटों पर लड़ने के बावजूद बीजेपी को 74 विधानसभा सीटें मिली थीं, और महज 43 विधानसभा सीटें जीतकर भी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने थे. जेडीयू का आरोप था कि चिराग पासवान की चुनावी रणनीति से उसे काफी बड़ा नुकसान हुआ था.
नुकसान तो चिराग पासवान को भी हुआ था. बीजेपी ने अपनी तरफ से चिराग पासवान के नुकसान की भरपाई तो कर दी है, लेकिन बात तो तभी बनेगी जब चिराग पासवान भी ऐसा सोचते हों. बिहार विधानसभा चुनाव खत्म होने से लेकर 2024 के लोकसभा चुनाव शुरू होने तक चिराग पासवान ने जो दुर्दिन देखे थे, उसकी भरपाई तो उनके हिसाब से ही होनी चाहिए. ये ठीक है कि बीजेपी ने चिराग के चाचा को बाहर का रास्ता दिखाकर उनकी खोई हुई चीजें वापस दिला दी, लेकिन विधानसभा के एहसानों का बदला कब चुकाया जाएगा.
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