कई दशक पहले बॉलिवुड की एक फिल्म में एक ऐसा गीत आया था, जिसमें आज की कांग्रेस संगठन और उसके बड़े नेताओं का प्रतिबिंब नजर आता है. आग लगी हमरी झोपड़िया में, हम गाएं मल्हार... यह पंक्ति उस विडंबना को बखूबी बयां करती है, जहां संकट की आग भड़क रही हो और व्यक्ति फिर भी बेमुरव्वत गीत गा रहा हो. ठीक वैसी ही स्थिति आज बिहार विधानसभा चुनावों के दौर में कांग्रेस पार्टी के साथ नजर आ रही है. एक तरफ पार्टी संकट में है मतलब टिकट बंटवारे पर सरफुट्टौवल, सीट शेयरिंग पर भयंकर बवाल, और महागठबंधन की पार्टियों के साथ आपसी खींचतान मची हुई है. दूसरी तरफ, कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी पुरानी दिल्ली की एक मशहूर हलवाई की दुकान में जाकर लड्डू बनाना सीख रहे हैं. दिवाली के बहाने घंटेवाला मिठाई दुकान पर इमरती और बेसन के लड्डू बनाने का वीडियो शेयर कर वे जनता से पूछ रहे हैं कि आपका दिवाली कैसी गुजर रही है?
हरियाणा और उत्तर प्रदेश की धरती पर तो वे घूम-फिर रहे हैं, लेकिन बिहार की चुनावी जंग में उनकी उपस्थिति लगभग शून्य है. शुरू में बिहार चुनावों को लेकर इतना उत्साह दिखा रहे थे कि लगता था, राहुल अकेले ही मैदान संभाल लेंगे. आखिर कहां गया वो जोश? क्यों हो गए वे मैदान से बाहर? यह सवाल न सिर्फ कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मन में कौंध रहा है, बल्कि राजनीतिक विश्लेषकों को भी सोचने को विवश कर रहा है.
फ्रैंडली फाइट क्या होती है? यह तो शर्म से मुंह छिपाना है
राज्य की 243 सीटों पर एनडीए (बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी-आरवी, हम-एस) ने सीट बंटवारे को सुचारु रूप से निपटा लिया है. जेडीयू और बीजेपी ने 101-101 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं. चिराग पासवान की पार्टी को 29 सीटें मिलीं, और छोटे सहयोगी भी संतुष्ट हैं. वहीं, महागठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस, वाम दल, वीआईपी) का हाल कुछ और ही है. नामांकन भरने की अंतिम तारीख गुजर चुकी है, लेकिन सीट शेयरिंग का फॉर्मूला आज तक फाइनल नहीं हुआ. परिणामस्वरूप, कई विधानसभा क्षेत्रों में गठबंधन के घटक दलों ने एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिए हैं.
कम से कम कांग्रेस और आरजेडी के उम्मीदवार 6 सीटों पर आमने सामने हैं. इसी तरह कम से कम 4 सीटों पर वाम दलों के साथ कांग्रेस के प्रत्याशी भिड़ रहे हैं.जाहिर है कि इन सीटों पर बीजेपी के बढ़िया मौका मिलने वाला है. वैसे भी कोई फाइट फ्रैंडली नहीं होती है. यही कारण है कि एनडीए की ओर से इसे 'महा-डिले-बंधन' करार दिया जा रहा है, जो विपक्षी एकता को कमजोर कर रहा है.
2-कांग्रेस की बिहार इकाई में यह बवाल कहां से शुरू हुआ?
कांग्रेस में बवाल की जड़ें 2020 के चुनावों में हैं, जब महागठबंधन में कांग्रेस को महज 70 सीटें मिलीं, जबकि आरजेडी ने 144 पर चुनाव लड़ा. 2020 में कांग्रेस के 19 विधायक जीते, लेकिन इस बार पार्टी अधिक महत्वाकांक्षी हो गई. राहुल गांधी के करीबी कृष्णा अल्लावरू को बिहार प्रभारी बनाया गया, जिन्होंने वोटर अधिकार यात्रा और कन्हैया कुमार की पलायन रोक यात्रा के जरिए पार्टी को मजबूत करने की कोशिश की. लेकिन सीट शेयरिंग पर अल्लावरू ने कड़ा रुख अपनाया. कांग्रेस ने 70 से घटाकर 60-61 सीटें मांगीं, लेकिन पुरानी बस्तियों जैसे काहलगांव और बछवाड़ा पर अड़ गई.
आरजेडी ने इन्हें अपनी जेब में मान लिया था. छोटे सहयोगी जैसे मुकेश साहनी की वीआईपी ने 60 सीटों का दावा ठोंका, जबकि उनके पास न एमएलए है न सांसद. लेफ्ट पार्टियों ने भी अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की जिद पकड़ ली. परिणाम? नामांकन की अंतिम तारीख (18 अक्टूबर) गुजरते-गुजरते कांग्रेस ने 48 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की, आरजेडी ने 143 की. लेकिन कई जगह ओवरलैपिंग हो गई.
इस बीच, बिहार कांग्रेस में आंतरिक कलह चरम पर है. राज्य अध्यक्ष राजेश राम, विधानसभा दल नेता शकील अहमद खान और अल्लावरू ने दिल्ली हाईकमान को यह विश्वास दिलाया कि पार्टी 'फिलर' की भूमिका से ऊपर उठे. लेकिन टिकट वितरण में भ्रष्टाचार के आरोप लगे. एक विधायक ने खुलासा किया कि अध्यक्ष, प्रभारी और सीएलपी नेता मिलकर 'टिकट उगाही' कर रहे हैं. स्वतंत्र सांसद पप्पू यादव पर आरोप लगा कि वे अनधिकृत रूप से टिकट बांट रहे हैं. एक पोस्ट में कहा गया, एक निर्दलीय सांसद कांग्रेस का टिकट बांट रहा है, संगठन वाले फ्रेम से गायब हैं.
3-राहुल गांधी क्या कर रहे हैं?
अब सवाल उठता है कि राहुल गांधी इन समस्याओं से निपटने के लिए क्या कर रहे हैं? शुरूआत में उनका उत्साह देखते ही बनता था. अगस्त 2025 में वोटर अधिकार यात्रा में वे तेजस्वी यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उतरे. यात्रा ने युवाओं और प्रवासियों के मुद्दे को उछाला, बेरोजगारी और मतदाता सूची में गड़बड़ी पर बीजेपी-जेडीयू को घेरा.
राहुल गांधी और तेजस्वी की यात्रा के पहले कन्हैया कुमार की पादयात्रा ने कांग्रेस को नई ऊर्जा दी. लग रहा था, राहुल बिहार को प्राथमिकता देंगे. लेकिन सितंबर के बाद से पिक्चर बदल गई. पहले विदेश यात्रा – दक्षिण अमेरिका में 15 दिन बिताए, जहां सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया लेकिन बिहार की मीटिंग्स स्थगित कर दी गई.
विदेश यात्रा से वापस आए तो फिर हरियाणा और उत्तर प्रदेश फोकस किया. हरियाणा में दलित आईपीएस सुसाइड केस में उनके परिजनों से मुलाकात करने गए तो यूपी में हरिओम नामक एक दलित युवक की हत्या होने के बाद उसके घऱ वालों से मुलाकात की.
20 अक्टूबर को राहुल ने वीडियो शेयर किया किया जिसमें वो लिखते हैं कि, पुरानी दिल्ली की मशहूर घंटेवाला पर इमरती और बेसन लड्डू बनाए. इस सदियों पुरानी दुकान की मिठास आज भी वही है – शुद्ध, पारंपरिक. दिवाली की असली मिठास रिश्तों में है. दुकान मालिक सुषांत जैन ने कहा, राहुल जी शादी कर लीजिए, वेडिंग ऑर्डर का इंतजार है.
यह वीडियो वायरल हुआ, लेकिन बिहार के संदर्भ में यह 'लड्डू बनाते राहुल' मीम्स का शिकार बन गए. यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने तंज कसा, राहुल विदेश घूम रहे, देश घूम रहे, लेकिन बिहार नहीं आ रहे.बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने कहा, राहुल की प्राथमिकताएं देखिए. बिहार चुनाव तीन हफ्ते दूर, लेकिन छुट्टी प्राथमिक.
4-राहुल बिहार से गायब क्यों?
अब अहम सवाल यह उठता है कि क्यों गायब हुए राहुल? राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इसके कई कारण हैं. दरअसल बिहार में कांग्रेस की स्थिति कमजोर है. राहुल जानते हैं कि महागठबंधन में आरजेडी हावी रहेगी, तेजस्वी को सीएम फेस घोषित करना पड़ेगा. जबकि कांग्रेस ने तेजस्वी को नामित करने से बार-बार इनकार किया है. जाहिर है कि इस मुद्दे पर दोनों ही पार्टियों के बीच खींचतान बढ़ी है.
दूसरा, आंतरिक दबाव. बिहार कांग्रेस ने राहुल से कहा, 60 सीटों से कम पर चुनाव न लड़ा जाए. राहुल ने सहमति दी, लेकिन यह आरजेडी के लिए अस्वीकार्य था और राहुल गांधी इसके लिए दबाव नहीं बना पाने में खुद को असमर्थ दिखे.
तीसरे कांग्रेस राहुल गांधी का एक अलग तरीके का छवि निर्माण कर रही है. राहुल 'जनसाधारण नेता' की इमेज बना रहे हैं . इसलिए कभी वो लड्डू बनाना सीखते हैं तो कभी वो किसानों से मिलते हुए देखे जाते हैं. हालांकि इसका नुकसान भी है. यही कारण है कि वो बिहार की जमीनी जंग से दूर जा रहे हैं.
चौथा, कांग्रेस को लगता है, बिहार में हाईकमान का हस्तक्षेप उल्टा पड़ेगा. इसकी तुलना ऐतिहासिक घटनाओं से करें तो 2015 का महागठबंधन याद आता है, जब नीतीश-लालू की जोड़ी ने एनडीए को हराया. लेकिन 2020 में महागठबंधन टूटा, क्योंकि सीट शेयरिंग पर ही विवाद हुआ. आज वही गलती दोहराई जा रही. सोनिया गांधी ने वीडियो कॉन्फ्रेंस में हस्तक्षेप किया, तीन सीटों पर पुराने परिवारों को मौका दिया.
लेकिन राहुल की अनुपस्थिति ने तेजस्वी को नाराज कर दिया. एक गॉसिप में कहा गया, तेजस्वी राहुल से चिढ़े हैं, कोलंबिया ट्रिप पर उन्हें साथ न ले गए.
यही सब कारण रहा कि जेएमएम ने तो महागठबंधन छोड़ दिया, कांग्रेस-आरजेडी पर 'राजनीतिक साजिश' का आरोप लगाया. कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा है. बीजेपी नेता सुधांशु त्रिवेदी कहते हैं कि महागठबंधन आंतरिक कलह से ग्रस्त है.
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