बांग्लादेश की मशहूर लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता तस्लीमा नसरीन ने नास्तिकों को लेकर एक गंभीर मुद्दा उठाया है. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में हिंदू, बौद्ध, ईसाई तो अत्याचार झेलते ही हैं, लेकिन सबसे बुरा हाल उन लोगों का है जो धर्म पर सवाल उठाते हैं, इस्लाम की आलोचना करते हैं या नास्तिक (atheist) हैं.
तस्लीमा का बड़ा आरोप
नसरीन ने ट्वीट में लिखा कि नास्तिक और फ्री-थिंकर्स पर इस्लामी कट्टरपंथियों और जिहादियों का सीधा हमला होता है. कई को खुलेआम दिनदहाड़े मौत के घाट उतारा गया. कई लोग छिपकर या चुप रहकर जीने को मजबूर हैं. कई तो जान बचाने के लिए देश छोड़कर भागे. उनके मुताबिक ऐसे अधिकतर लोग मुस्लिम परिवारों में पैदा हुए लेकिन इस्लाम की आलोचना इसलिए करते हैं ताकि समाज को अंधविश्वास और कट्टरता से बचा सकें.
भारत क्यों नहीं दे रहा शरण?
तस्लीमा का कहना है कि इनमें से कई लोग भारत आए लेकिन यहां भी उन्हें स्थायी आश्रय नहीं मिला. मजबूर होकर कुछ लोग नेपाल चले गए पर वहां भी न तो नागरिकता मिली और न काम करने का हक. नसरीन ने बड़ा सवाल उठाते हुए कहा कि भारत ने हमेशा किसी न किसी को शरण दी है, पारसियों को, यहूदियों को, दलाई लामा और उनके अनुयायियों को शरण दी है. आज भी यहां 40 हजार रोहिंग्या और पाकिस्तान-अफगानिस्तान से आए मुसलमान रह रहे हैं तो फिर बांग्लादेश के नास्तिक विचारकों के लिए दरवाजे क्यों बंद हैं?
We all know that in Bangladesh, Pakistan, and Afghanistan, Hindus, Buddhists, Christians face persecution. We also know that Ahmadis and Shias are oppressed in these countries. But what is less acknowledged is that the worst suffering is endured by free-thinkers and…
— taslima nasreen (@taslimanasreen) September 5, 2025भारत की परंपरा का हवाला
नसरीन ने अपने ट्वीट में याद दिलाया कि भारत की पहचान उदारवाद, मानवता, धर्मनिरपेक्षता और अभिव्यक्ति की आजादी से है. उन्होंने कहा कि सनातन धर्म की परंपरा में नास्तिकता तक को स्वीकार किया गया है. अगर ऐसा है तो फिर सौ-दो सौ विचारकों को भारत में शरण देने में दिक्कत क्यों?
नसरीन ने कहा कि ये लोग आतंकी या जिहादी नेटवर्क का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि लेखक, शोधकर्ता और समाज सुधारक हैं. ऐसे में उन्हें सुरक्षित ठिकाना मिलना चाहिए. तस्लीमा का यह सवाल अब चर्चा में है कि क्या भारत शरण सिर्फ धार्मिक आधार पर सताए गए लोगों को देगा, या फिर उन नास्तिकों और फ्री-थिंकर्स को भी जगह देगा जो कट्टरपंथ के खिलाफ आवाज उठाते हैं?
---- समाप्त ----