नेपाल में Gen-Z के हिंसक आंदोलन के पीछे भ्रष्टाचार आदि तो है ही पर सबसे अधिक जिसकी चर्चा है वो नेपो किड्स हैं. नेपाल की घटना भारत के राजनीतिक परिदृश्य को भी आईना दिखाती है. यहां भी नेपोटिज्म (परिवारवाद) एक बड़ा मुद्दा है. भारत में नेपोटिज्म वंशवाद और परिवारवाद के रूप में प्रचलित है. जाहिर है कि भारत में भी वंशवाद लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करता है.
नेपाल में भड़की हिंसा के बाद भारत में नेपोटिज्म पर बहस तेज हो गई है.सोशल मीडिया पर बहुत से लोग ऐसी कामना करते हैं कि भारत में भी नेपो किड्स के खिलाफ क्रांति होगी और यहां भी नेताओं को जनता सड़कों पर दौड़ा-दौड़ा कर मारेगी. पर क्या ऐसा सोचने वाले लोगों की मनोकामना कभी पूरी होगी? भारत में नेपोटिज्म के असर को समझने के लिए पहले यहां बीजेपी का वंशवाद बनाम विपक्ष (कांग्रेस, आरजेडी, सपा आदि) का परिवारवाद की बात करते हैं.
भाजपा ने 2014 का लोकसभा चुनाव और उसके बाद लगातार राज्यों में विपक्ष के सफाए के पीछे वंशवाद और परिवारवाद विरोधी पार्टी की राजनीति रही है. पर पार्टी के विरोधी इसे बीजेपी का पाखंड कहते हैं. सवाल यह उठता है कि नेपाल की तरह भारतीय समाज में नेताओं के बच्चों के लग्जरी वेकेशन और महंगे शौक का भारत की जनता पर कितना प्रभाव पड़ता है? आखिर भारत में वंशवाद और परिवार वाद के खिलाफ नफरती हिंसा का मामला नेपाल जैसा तूल क्यों नहीं पकड़ा?
भारत में छिड़ी वंशवाद पर बहस
नेपाल में नेपो किड्स को जिस तरह टार्गेट किया कुछ वैसा ही भारत में करने की कोशिश हो रही है. केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह के बेटे की शादी में हल्दी के रस्म में उसे फूलों से नहलाया जा रहा है. इस फोटो को सोशल मीडिया पर डालकर कहा जा रहा है कि देखो किस तरह नेताओं के बेटे मौज कर रहे हैं. जब कि देश में सामान्य घरों में हल्दी की रस्म में दूल्हे को इस तरह का स्नान कराया जाता है. तमाम बीजेपी नेताओं के बेटों की फोटो डाली जा रही है और कहा जा रहा है कि नेपाल जैसी आंदोलन की जरूरत यहां भी है.
ठीक उसी तरह बीजेपी समर्थक लोग विपक्ष के नेताओं को धमकी दे रहे हैं. तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव उद्धव ठाकरे-आदित्य ठाकरे, राहुल गांधी-प्रियंका गांधी जैसे नेपो किड्स को लेकर तंज कसे जा रहे हैं. जनता की इस तरह की पोस्ट्स दर्शाती हैं कि नेपाल का आंदोलन भारत में वंशवाद पर बहस छेड़ दिया है.भारतीय राजनीतिक परिवारों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया है, जो मेरिट को नजरअंदाज करता है. नेपाल के नेपो किड्स आंदोलन की तरह, भारत में भी युवा बेरोजगारी 15-29 वर्ष के बीच में 23% दर के उच्चतम स्तर पर है और असमानता से त्रस्त हैं.
विपक्ष का वंशवाद: परिवारवाद का प्रतीक
विपक्षी दल, विशेष रूप से कांग्रेस, आरजेडी, सपा आदि, वंशवाद के प्रमुख उदाहरण हैं. कांग्रेस में गांधी परिवार का वर्चस्व है—सोनिया, राहुल, प्रियंका पार्टी के सबसे खास नेता हैं. राहुल गांधी को युवा नेता के रूप में पेश किया जाता है, लेकिन आलोचक इसे नेपोटिज्म कहते हैं. आरजेडी में लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी और बेटी मीसा ने सत्ता संभाली हुई है. सपा में मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश, डीएमके में करुणानिधि के बेटे स्टालिन, शिवसेना में बाल ठाकरे के बेटे उद्धव, ये सभी वंशवाद के उदाहरण हैं. भाजपा इन दलों पर परिवारवाद का आरोप लगाती है. पीएम मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर कहा कि वंशवाद और भ्रष्टाचार देश की चुनौतियां हैं.
भारत में बीजेपी का वंशवाद विरोधी अभियान नेपाल जैसे बवाल के लिए सेफ्टी वॉल्व बन गया
कई इतिहासकारों का मानना है कि भारत में अंग्रेजों के खिलाफ 1857 जैसी क्रांति न हो, इसके लिए एओ ह्यूम ने कांग्रेस की स्थापना की थी. इसे सेफ्टी वॉल्व थियरी का नाम दिया गया. यह थियरी इस तरह कामयाब रही कि कांग्रेस ने मामूली सुधार करके जनता को अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बहलाए रखा. बीजेपी का वंशवादी राजनीति के खिलाफ अभियान बहुत कुछ भारत में नेपोटिज्म के खिलाफ बवाल न हो इसके लिए सेफ्टीवॉल्व की तरह काम किया है.
बीजेपी का यह अभियान 2014 में एक रक्तहीन क्रांति के रूप में कामयाब रहा, क्योंकि इसने बिना हिंसा के वंशवादी दलों को कमजोर किया.बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में वंशवाद को विपक्ष के खिलाफ प्रमुख हथियार बनाया. पीएम नरेंद्र मोदी ने अच्छे दिन और कांग्रेस के परिवारवाद के खिलाफ नैरेटिव तैयार किया जो जीत में बदल गई.स्वतंत्रता दिवस के भाषणों में भी मोदी ने वंशवाद को भ्रष्टाचार और लोकतंत्र की बाधा बताया.
बीजेपी ने खुद को मेरिट-आधारित पार्टी के रूप में पेश किया.BJP.org पर पार्टी का इतिहास वंशवाद-विरोधी बताया गया है. इस अभियान ने विपक्षी दलों कांग्रेस (गांधी परिवार), RJD (लालू यादव के बच्चे), SP (मुलायम सिंह के परिवार), शिवसेना (ठाकरे परिवार), अकाली दल (बादल परिवार), और नेशनल कॉन्फ्रेंस (अब्दुल्ला परिवार) आदि को निशाना बनाया गया.
2014 के बाद लोकतांत्रिक क्रांति, वंशवादी दलों का सफाया
सोशल मीडिया पर तमाम लोगों ने 2014 को लोकतांत्रिक क्रांति कहा, जिसमें वंशवाद को जनता ने खारिज कर दिया. बीजेपी ने युवाओं को विकास और राष्ट्रवाद से जोड़ा, जिसने नेपाल जैसे नेपो किड्स आंदोलन को रोका.
देश की सबसे बड़ी परिवारवादी पार्टी की चौथी पीढ़ी राहुल गांधी और प्रियंका बीजेपी के निशाने पर रहे. 2014 में कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट गई, और 2019 में 52 सीटें मिलीं. 2024 में 99 सीटें राहुल की सक्रियता का परिणाम थीं, लेकिन बीजेपी के नैरेटिव ने कांग्रेस को परिवारवादी बनाए रखा.
लालू प्रसाद यादव के बच्चे (तेजस्वी, मीसा) राजद संभालने लगे और 2014 में पार्टी 4 और 2019 में 0 सीटों पर सिमट गई. मुलायम सिंह के परिवार (अखिलेश यादव), ठाकरे परिवार (शिवसेना), और बादल परिवार (अकाली दल) का प्रभाव कम हुआ. नेशनल कॉन्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर में खत्म हो गई थी पर विधानसभा चुनावों में एक बार फिर सरकार बनाने में सफल हुई है.
बीजेपी में भी फल फूल रहा है वंशवाद
हाल फिलहाल में बीजेपी में नेपो किड्स के नाम पर सबसे ज्यादा जुबानी हमले अमित शाह के बेटे जय शाह (आईसीसी का अध्यक्ष), ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे महाआर्यमन ( एमपीसीसीआई के अध्यक्ष), राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह (विधायक ) को मिल रहे हैं.
पर विपक्ष के निशाने पर मोदी सरकार 3.0 के कई मंत्री भी हैं जो वंशवादी राजनीति के उदाहरण हैं. मोदी कैबिनेट में कुल 71 मंत्री हैं, जिनमें 30 कैबिनेट मंत्री, 5 स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री, और 36 राज्य मंत्री शामिल हैं. विपक्ष अक्सर बीजेपी पर वंशवाद (नेपोटिज्म) का आरोप लगाता है, जबकि बीजेपी खुद को मेरिट-आधारित बताती है. लेकिन तथ्यों से पता चलता है कि मंत्रिमंडल में कम से कम 15-20 मंत्री ऐसे हैं जो राजनीतिक परिवारों से जुड़े हैं.
2019 में चुनी गई लोकसभा में भाजपा के पास लोकसभा में 303 और राज्य सभा में 85 सदस्य थे. इन 388 में से 45 सांसद यानि करीब 11 फीसदी ऐसे थे जिनका संबंध किसी न किसी सियासी परिवार से था. यह संख्या बीजेपी को परिवारवाद से जोड़ने के लिए अक्सर कांग्रेस अकसर कटाक्ष करती रही है.
बीजेपी ने अपने सहयोगी पार्टियों के नेताओं को वंशवाद की राजनीति के लिए खुली छूट दे रखा है. चिराग पासवान, अजित पवार, चंद्रबाबू नायडु आदि कई उदाहरण हैं.
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