ममता अब कम बोलेंगी हिंदी, मोदी की यात्रा से पहले दीदी के एक तीर से कई निशाना

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार 16 जुलाई को कोलकाता में एक बड़ी रैली का आयोजन किया. भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर देश भर में बंगाली भाषी लोगों को परेशान करने और उनके साथ दुर्व्यवहार करने की नीति के लिए निशाना साधते हुए बीजेपी को चेतावनी दी कि अगर इस तरह की कार्रवाइयों पर तत्काल रोक नहीं लगाई तो उसके गंभीर राजनीतिक परिणाम भुगतने होंगे.ममता भाजपा शासित राज्यों में बंगाली भाषी लोगों पर कथित अत्याचार के खिलाफ बारिश में भीगते हुए कोलकाता की सड़कों पर विरोध मार्च निकाला.

ममता ने कहा कि मैं अब और ज्यादा बांग्ला में बोलूंगी, दम है तो मुझे डिटेंशन कैंप में भेज दो. दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 18 जुलाई को बंगाल में रैली होने वाली है. ममता इस  रैली से पहले बीजेपी के खिलाफ हवा बना रही हैं.बंगाली अस्मिता की बात करके ममता बनर्जी एक तीर से कई निशाने लगा रही हैं.

1-एसआईआर के विरोध की रणनीति तैयार कर रही हैं

ममता ने बीजेपी पर महाराष्ट्र और दिल्ली विधानसभा चुनावों में मतदाता सूची में हेरफेर का आरोप लगाया  . ममता कहती हैं कि बिहार में चल रही विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) से तुलना की है. इसके पहले टीएमसी के सांसद डेरेक ओ ब्रायन इसकी तुलना हिटलर के ओल्ड पास से की थी. ममता बनर्जी एसआईआर का विरोध पहले दिन से कर रही हैं. टीएमसी का कहना है कि एसआईआर का असली प्रयोग पश्चिम बंगाल में होने वाला है. दरअसल चुनाव आयोग कह चुका है कि आगामी दिनों में मतदाता सूची का पुनरीक्षण हर उस राज्य में होगा जहां चुनाव होने वाले हैं.

बीजेपी ने ममता के बयान को वोट बैंक की राजनीति करार दिया है. बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी ने कहा कि ममता अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्याओं को बंगाली के रूप में पेश कर रही हैं, जो बंगाल की सांस्कृतिक विरासत का अपमान है. अमित मालवीय ने ममता पर बंगाल को घुसपैठियों का सुरक्षित ठिकाना बनाने का आरोप लगाया है. 

2-मोदी की रैली का असर कम करने की रणनीति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 18 जुलाई 2025 को पश्चिम बंगाल पहुंचने वाले हैं. पीएम की यह यात्रा टीएमसी के शहीद दिवस (21 जुलाई) से पहले हो रही है, जो बंगाल की राजनीति में एक महत्वपूर्ण वार्षिक आयोजन होता है. पीएम मोदी लगातार बंगाल जा रहे हैं. जाहिर है कि उनके निशाने पर भी बंगाल फतह ही है. अगले विधानसभा चुनावों में बीजेपी किसी भी कीमत पर बंगाल जीतना चाहेगी. यही कारण है कि बीजेपी राज्य में अपनी संगठनात्मक ताकत बढ़ाने और 2026 के विधानसभा चुनाव के पहले ऐसा नरेटिव सेट कर रही है जो पार्टी को इस राज्य के लिए अपरिहार्य बना दे. जाहिर है कि पीएम अपनी इस यात्रा में भी कई विकास परियोजनाओं का उद्घाटन और आधारशिला रखेंगे. जैसा कि उनकी पिछली यात्राओं में देखा गया है. पर बनर्जी ने बंगाली भाषा को मुद्दा बनाकर पीएम और बीजेपी के खिलाफ इस तरह का नरेटिव सेट करने जा रही है जिसमें बीजेपी एक बार घिर सकती है. .

3-बंगाली अस्मिता को जगाकर अगला विधानसभा चुनाव जीतने का संकल्प

ममता ने बीजेपी पर बंगाली भाषी प्रवासियों को घुसपैठिए करार देकर उनकी नागरिकता पर सवाल उठाने का आरोप लगाया. उन्होंने दावा किया कि देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले 22 लाख बंगाली प्रवासियों के पास वैध पहचान दस्तावेज हैं. दिल्ली के वसंत कुंज में जय हिंद कॉलोनी में बंगाली प्रवासियों के साथ बिजली और पानी की आपूर्ति काटने और ओडिशा में 444 बंगाली मजदूरों की नजरबंदी की घटनाओं ने इस मुद्दे को और हवा दी है. ममता ने इसे भाषाई प्रोफाइलिंग करार दिया और कहा, बंगाली बोलने से कोई बांग्लादेशी नहीं हो जाता. हिंदी कम बोलने का उनका फैसला बंगाली अस्मिता को मजबूत करने और बीजेपी के हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान नैरेटिव के खिलाफ एक जवाबी कदम है.

4. विपक्ष की सबसे बड़ी नेता बनने का ख्वाब

ममता बनर्जी का यह हमला बीजेपी और केंद्र सरकार के उस नोटिफिकेशन के खिलाफ है जिसमें संदिग्ध बांग्लादेशियों को गिरफ्तार कर डिटेंशन कैंप में भेजने की बात कही गई है. ममता ने इसे बंगालियों के खिलाफ भेदभाव के रूप में पेश किया, यह दावा करते हुए कि बंगाली बोलने वाले प्रवासी मजदूरों को गलत तरीके से बांग्लादेशी या रोहिंग्या करार दिया जा रहा है. जाहिर है कि इस लेवल पर इस नोटिफिकेशन का विरोध न तो कांग्रेस ने किया और न ही समाजवादी पार्टी या आरजेडी जैसी पार्टियों ने किया है.ममता बनर्जी अपने इस बयान के जरिए सीएए और एनआरसी जैसी नीतियों के खिलाफ लंबे समय से चली आ रही लड़ाई को देश के सामने लाना चाहती हैं. वह इन नीतियों को बंगाल में अल्पसंख्यकों के खिलाफ एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करेंगी जो पूरे देश के अल्पसंख्यकों के लिए नजीर बन सकती है. 

ममता बनर्जी का यह बयान केवल बंगाल तक सीमित नहीं है; यह राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता के नेतृत्व की उनकी महत्वाकांक्षा को पूरा करने का साधन बन सकता है.  उनका यह दावा कि वह बंगाल से ही विपक्षी गठबंधन को चला सकती हैं, उनकी इसी रणनीति का हिस्सा है. वह यह संदेश देना चाहती हैं कि वह न केवल बंगाल में, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी बीजेपी को चुनौती देने में वह सक्षम हैं.

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