मुख्तार के गढ़ में BJP का कमल खिलाने का अरमान धरा रह गया! अब्बास अंसारी की विधायकी बहाल

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मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी की विधायकी बहाल होने से मऊ समेत पूर्वांचल की सियासत में हलचल मच गई है. माना जा रहा है कि इस फैसले ने बीजेपी की उन उम्मीदों पर पानी फेर दिया है, जिसमें वह मुख्तार के निधन के बाद इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही थी. 

दरअसल, 1995 से लेकर अभी तक मऊ सदर सीट पर मुख्तार परिवार का कब्जा है. बीजेपी कभी भी यहां से नहीं जीती है. हेट स्पीच केस में अब्बास की विधायकी जाने के बाद इस सीट पर उपचुनाव की सुगबुगाहट थी और बीजेपी इस उपचुनाव में जीत के इरादे से उतरने के लिए सोच रही थी.   

मुख्तार की विरासत को लेकर बीजेपी की रणनीति यही थी कि अब्बास के जेल के जाने के बाद परिवार का राजनीतिक प्रभाव खत्म हो जाएगा और वह आसानी से इस सीट पर कब्जा कर लेगी. लेकिन अब्बास अंसारी की विधायकी बहाल होना बीजेपी के लिए एक झटका माना जा रहा है. कोर्ट के इस फैसले के बाद अब्बास अब विधानसभा में लौट सकते हैं, जिससे उनका और उनके परिवार का राजनीतिक वर्चस्व एक बार फिर कायम हो सकता है. 

अब्बास की वापसी से सियासी समीकरणों में बदलाव

गाजीपुर में मुख्तार परिवार का एक बड़ा समर्थक वर्ग है, जो उनके निधन के बाद मायूस हो गया था. लेकिन अब्बास की विधायकी बहाल होने की खबर ने उनके समर्थकों में एक नई जान फूंक दी है. यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इस क्षेत्र में उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली थी. ऐसे में अब्बास की वापसी से आगामी विधानसभा चुनावों में बीजेपी के लिए चुनौतियां और भी बढ़ सकती हैं. 

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी को अब गाजीपुर में नए सिरे से रणनीति बनानी होगी. मुख्तार अंसारी के जेल में रहते हुए भी अब्बास ने विधानसभा चुनाव जीता था, जिससे यह साबित होता है कि मुख्तार परिवार का राजनीतिक प्रभाव अभी भी खत्म नहीं हुआ है.  अब अब्बास की विधायकी बहाल होने से वे खुलकर अपने समर्थकों के बीच जा सकेंगे और अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा सकेंगे. 

कानूनी दांव-पेंच और राजनीति का खेल

आपको बता दें कि अब्बास अंसारी की विधायकी सदस्यता हेट स्पीच के एक मामले में रद्द की गई थी. लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद उनकी सदस्यता बहाल हो गई है. यह फैसला कानूनी रूप से भले ही सही हो, लेकिन इसके सियासी मायने बहुत गहरे हैं. यह फैसला न सिर्फ मुख्तार अंसारी के परिवार के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि बीजेपी के लिए एक नई चुनौती भी खड़ी कर दी है, जिसका सामना उन्हें आने वाले दिनों में करना पड़ सकता है. 

बीजेपी के लिए मुश्किल रही है मऊ सदर सीट

तीन दशकों से इस सीट पर अंसारी परिवार का एकछत्र राज रहा है, जिसे बीजेपी कभी नहीं जीत पाई. मुख्तार के निधन के बाद बीजेपी को इस सीट पर अपनी जीत की उम्मीद थी, लेकिन मुख्तार के बेटे अब्बास ने जीत हासिल की. 

बीजेपी ने मऊ सीट पर कमल खिलाने के लिए कई सियासी दांव आजमाए हैं. पार्टी ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारने से लेकर राजभर और ठाकुर नेताओं पर भी भरोसा जताया, लेकिन हर बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा. मऊ में अंसारी परिवार की मजबूत पकड़ और जनता के बीच उनकी पैठ के कारण बीजेपी के लिए यह सीट हमेशा से एक बड़ी चुनौती रही है.  

अंसारी परिवार का दबदबा

मुख्तार अंसारी ने 1996 से 2017 तक लगातार पांच बार मऊ विधानसभा सीट पर राज किया. इस दौरान उन्होंने बसपा, निर्दलीय और अपनी पार्टी कौमी एकता दल से चुनाव जीतकर अपनी ताकत दिखाई. बीजेपी और सपा जैसी बड़ी पार्टियों के सभी दांव नाकाम रहे.  मुख्तार जेल में रहते हुए भी लगातार चुनाव जीतते रहे. 

2022 में उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे अब्बास अंसारी को सौंपी. सपा के साथ गठबंधन में सुभासपा से लड़कर अब्बास विधायक बने. लेकिन 2022 के चुनाव प्रचार में अधिकारियों के "हिसाब-किताब" वाले बयान के कारण उन्हें दो साल की सजा सुनाई गई है, जिसके चलते उनकी विधायकी रद्द हो गई. 

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