राजीव प्रताप रूडी बिहार चुनाव में राजपूत वोटों की ठेकेदारी चाहते हैं या बगावत?

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दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया (सीसीआई) का हालिया चुनाव 12 अगस्त को संपन्न हुआ. जिस चुनाव की चर्चा दिल्ली में ही नहीं होती थी, उस चुनाव की चर्चा इस बार पूरे देश में हुई. इस चुनाव में ऐसा क्या हुआ कि भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूडी ने अपनी ही पार्टी के पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान को हराकर ऐसी चर्चा बटोरी है कि बिहार विधानसभा चुनावों में उनकी भूमिका की चर्चा शुरू हो गई है. रूडी ने बालयान को करीब 100 से अधिक वोटों (391 बनाम 291) से हराकर सेक्रेटरी (एडमिनिस्ट्रेशन) का पद तो अपने पास बरकरार रखा ही भाजपा के आंतरिक राजनीति को झकझोर दिया है. पार्टी के अंदर राजपूत बनाम जाट की टकराहट उजागर हुई है. 

रूडी बिहार के राजपूत हैं और बिहार के सारण से 6 बार सांसद रहें हैं. अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी की पहली कैबिनेट में उन्हें मंत्री बनने का सौभाग्य भी मिला. उन्होंने अपनी पार्टी के जाट समुदाय से आने वाले संजीव बालयान को कांग्रेस, सपा, टीएमसी और अन्य के समर्थन से हराकर क्लब का चुनाव जीता. विपक्ष के समर्थन से हासिल हुई जीत उनके अगले कदम के बारे में लोगों में उत्सुकता जगाए हुए है.

दरअसल रूडी की महत्वाकांक्षा अब बिहार विधानसभा चुनावों में बड़ी भूमिका तलाश रही हैं. जाहिर है कि वो इस तरह के संदेश दे रहे हैं जिनसे लगता है कि वो इसके लिए कुछ भी करने को बेकरार हैं. आइये इस कहानी को डिटेल में समझते हैं.

क्या बीजेपी की रणनीति के तहत राजपूतों के नेता बन रहे हैं रूडी?

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों पर आधारित रही है, विशेषकर बिहार जैसे राज्यों में जहां राजपूत लगभग साढ़े तीन प्रतिशत से 4% आबादी वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं. क्लब के चुनाव में राजपूत-जाट टकराव होने से फायद यह हुआ कि रूडी अचानक राजपूतों के नेता बन गए. एक्स पर एक शख्स लिखता है कि पहले रूडी के ट्वीट पर हजार एक्प्रेशन मिलते थे जो अब लाखों में पहुंच गए हैं. रूड़ी (राजपूत) को राजपूत सांसदों का मजबूत समर्थन मिला, जबकि बालयान (जाट) को जाट लॉबी और ग्रामीण सांसदों का. अब सवाल उठता है. सोशल मीडिया पर बहुत से लोगों का कहना है कि यह बीजेपी की बिहार रणनीति का हिस्सा हो सकता है. रणनीति के तहत रूड़ी को बिहार में राजपूतों का प्रमुख नेता बनाया जा रहा है.

दरअसल राजीव प्रताप रूड़ी छह बार के सांसद हैं, जिन्होंने 1996, 1999, 2014 और 2024 में सारण (पूर्व में छपरा) से जीत हासिल की. पूर्व केंद्रीय मंत्री (वाणिज्य, नागरिक उड्डयन) के रूप में उनकी पहचान मजबूत है. लेकिन 2024 लोकसभा चुनावों में राजपूत असंतोष के कारण बीजेपी को आरा, औरंगाबाद और करकट जैसी सीटों पर हार मिली. बीजेपी किसी भी कीमत पर इन क्षेत्रों में दुबारा हारना नहीं चाहती है. बीजेपी की बिहार रणनीति हमेशा से जातीय संतुलन पर आधारित रही है. 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले, पार्टी ओबीसी, ईबीसी और ऊपरी जातियों को मजबूत करने पर फोकस कर रही है. सवाल उठता है कि क्या इसी आधार पर बिहार में बीजेपी रूडी को तैयार कर रही है. क्योंकि रूड़ी ने हाल ही में समस्तीपुर में महाराणा प्रताप की तस्वीर वाले पोस्टर लगवाए और जय सांगा का नारा दिया, जो राजपूत गौरव को जगाने का प्रयास जैसा लगता है.

 23 अप्रैल 2025 को पटना में वीर कुंवर शौर्य दिवस में रूड़ी ने मुख्य भूमिका निभाई, जहां उन्होंने कहा कि बिहार में सबसे उत्पीड़ित समुदाय राजपूत-क्षत्रिय हैं.साफ दिखता है कि वे खुद को राजपूत वोटों का ठेकेदार बनने की कोशिश कर रहे हैं. बिहार में 70 विधानसभा सीटों पर राजपूत निर्णायक हैं, और रूड़ी का दावा है कि वे इन वोटों को एकजुट कर सकते हैं. 

 लेकिन क्लब चुनाव में बालयान को अमित शाह के करीबी निशिकांत दुबे का समर्थन मिला, जबकि रूड़ी को विपक्ष का. कुछ लोगों का कहना है कि  यह पार्टी में आंतरिक कलह का संकेत देता है. पर सवाल यह है कि क्या बीजेपी में मोदी-अमित शाह के खिलाफ आज किसी भी नेता में बगावत करने की हैसियत है.

जो लोग कहते हैं कि गृहमंत्री अमित शाह ने क्लब के चुनावों में संजीव बालयान को समर्थन दिया था , क्या वो यह मानते हैं कि बीजेपी सांसदों ने शाह के कहने के बावजूद बालयान को वोट दिया? क्या ऐसा लगता है कि राजनाथ सिंह , बिहार के कई सांसदों ने अमित शाह के कहने के बावजूद संजीव बालयान को वोट नहीं दिया होगा? 

दरअसल बीजेपी हो कांग्रेस या कोई भी क्षेत्रिय पार्टी , आज की राजनीति में केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ जाकर कोई भी काम नहीं करता है. यही कारण है कि ऐसा लगता है कि रूडी कहीं बीजेपी के बड़े गेमप्लान का हिस्सा तो नहीं हैं. क्यों कि बिहार में राजपूतों का वोट किसी भी कीमत पर बीजेपी बिखरने नहीं देना चाहेगी.  इसलिए क्लब चुनावों जिस तरह रूडी को क्रॉस-पार्टी राजपूत एकीकरण का सपोर्ट मिला है,बीजेपी उसे बिहार में दुहराना चाहती है.जाहिर है कि अगर ऐसा होता है तो बीजेपी के लिए ये बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है.

क्या बीजेपी से बगावत कर सकते हैं राजीव प्रताप रूड़ी?

सामान्य तौर पर देखा जाए तो पिछले कई सालों से बीजेपी में रूडी को सक्षम लेकिन हाशिए पर बताया जा रहा है. इसलिए बगावत वाले मोड में आकर अपनी पार्टी से मोलभाव करने की रिस्क ले सकते हैं. वो यह दावा कर सकते हैं कि यदि वे बगावत करते हैं, तो बिहार चुनावों में भाजपा का राजपूत वोट बंट सकता है.

अब सवाल उठता है कि क्या रूड़ी बिहार में राजपूत वोटों के ठेकेदार बनने की मंशा से बीजेपी से बगावत कर सकते हैं? आगामी बिहार विधानसभा चुनावों के संदर्भ में यह संभावना महत्वपूर्ण है. रूडी राजपूत समुदाय के प्रमुख चेहरे हैं, जहां उन्होंने लालू प्रसाद, राबड़ी देवी और रोहिणी आचार्य को हराया है. 2024 लोकसभा चुनावों में राजपूत असंतोष से बीजेपी को आरा, औरंगाबाद जैसी सीटों पर नुकसान हुआ. 
 जिस तरह उन्होंने एक महिला पत्रकार को दिए गए इंटरव्यू में वे 70 विधानसभा सीटों पर राजपूत वोटों को निर्णायक बताते हैं उससे तो यही लगता है कि उनकी महत्वाकांक्षाएं बढ़ चुकी हैं. विपक्ष का समर्थन लेना और उसी बहाने बार बीजेपी के कुछ नेताओं जैसे निशिकांत दूबे आदि को टार्गेट करना संदेह को और बढ़ा रहा है.

कई बार ऐसा लगता है कि यदि बीजेपी उन्हें केंद्रीय भूमिका या टिकट न दे, तो वे राजपूत वोटों को एकजुट कर स्वतंत्र या विपक्षी मोर्चा बना सकते हैं. जैसा शत्रुघ्न सिन्हा ने 2019 में किया. रूड़ी की स्वतंत्र यात्रा निकालने की बात पार्टी को फायदा पहुंचाने का दावा करती है, लेकिन यह उनकी बढती महत्वाकांक्षा का संकेत भी है. 

कॉन्स्टिट्यूशन क्लब का चुनाव जीतने के बाद रूडी और विपक्ष के रिश्ते 

 कॉन्स्टिट्यूशन क्लब, जो सांसदों और पूर्व सांसदों के लिए एक प्रमुख सामाजिक केंद्र है, का चुनाव आमतौर पर बिना टकराव के होता है. लेकिन इस बार यह भाजपा बनाम भाजपा का मैदान बन गया. रूडी (राजपूत समुदाय से) को राजपूत सांसदों का मजबूत समर्थन मिला, जबकि बालयान (जाट समुदाय से) को जाट लॉबी और ग्रामीण सांसदों का.  चुनाव में अमित शाह, जेपी नड्डा, सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे दिग्गजों ने वोट डाले. गौरतलब है कि इसके पहले तक ये बड़े नाम इस क्लब के चुनाव में शिरकत नहीं करते थे. खास बात यह रही कि विपक्ष ने रूडी का खुलकर साथ दिया. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उनकी जीत को असामान्य हाथ मिलाना बताते हुए बधाई दी.

 कपिल सिबल ने ट्वीट किया कि गुप्त मतदान में चाणक्य हार जाते हैं. बिहार में निष्पक्ष चुनाव में भी ऐसा ही होगा.

 सागरिका घोष ने कहा कि अमित शाह समर्थित उम्मीदवार हार गया, जबकि विपक्ष ने रूडी को समर्थन दिया.

 रूडी ने खुद कहा, यह मेरी 25 वर्षों की मेहनत का नतीजा है, और सभी दलों से समर्थन मिला. 

विपक्ष के लिए खुश होने वाली बात यही थी कि रूडी ने एक बार भी इसे मोदी या शाह की जीत नहीं बताया. इसलिए भी विपक्ष को ऐसा लगा कि यह जीत मोदी और शाह की हार है. क्लब चुनाव में विपक्ष का समर्थन लेना एक रणनीतिक कदम हो सकता है, जो बिहार में राजपूतों को पार्टियों से ऊपर उठाकर एकजुट करने का प्रयास है. दूसरी ओर, यह भाजपा नेतृत्व (शाह-नड्डा) के खिलाफ बगावत का बिगुल भी हो सकता है.

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