राहुल गांधी या तेजस्वी यादव - वोटर अधिकार यात्रा से कौन ज्यादा फायदे में रहा?

6 days ago 1

सासाराम से शुरू होकर वोटर अधिकार यात्रा पटना पहुंचनी थी, पहुंच भी गई. और अच्छे से पहुंची भी, अगर छिटपुट घटनाओं को नजरअंदाज कर दें. ये यात्रा विपक्षी गठबंधन INDIA ब्लॉक के बैनर तले निकाली गई, और नेतृत्व कदम कदम पर राहुल गांधी के हाथ में ही दिखा. एक बार कमान तेजस्वी यादव के हाथ में भी आई थी, जब राहुल गांधी यात्रा में ब्रेक के दौरान उपराष्ट्रपति चुनाव के सिलसिले में दिल्ली लौटे थे. 

कहने को तो राहुल गांधी और तेजस्वी यादव साथ में वोटर अधिकार यात्रा निकाल रहे थे, लेकिन पूरी यात्रा में राहुल गांधी ही छाये रहे. तीन साल पहले राहुल गांधी जब भारत जोड़ो यात्रा पर निकले थे, तब भी कांग्रेस की ऐसी ही मंशा थी. लेकिन, विपक्ष के कम नेताओं का ही साथ मिला. न्याय यात्रा को लेकर तो सहयोगी दल नाराज ही इसलिए थे, क्योंकि कांग्रेस ने अकेले यात्रा निकालने की घोषणा कर डाली थी - लेकिन, अब लगता है कि राहुल गांधी ने सारी कसर निकाल ली है. 

बिहार के हिसाब से देखें तो तेजस्वी यादव ज्यादा तवज्जो मिलनी चाहिए थी. या कहें कि तेजस्वी यादव को भी वैसे ही मौजूदगी दर्ज करानी चाहिए थी, जैसे उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव जताते हैं. क्या तेजस्वी यादव ऐसा कर पाए? नहीं कर पाए. लेकिन, क्यों नहीं कर पाए? ये सवाल अभी बना रहेगा. 

वोटर अधिकार यात्रा का बिहार विधानसभा चुनाव में कितना प्रभाव होगा, अभी कोई अंदाजा नहीं है. भीड़ कभी कभार ही वोटों में तब्दील हो पाती है. अक्सर ऐसा नहीं ही होता है. वोटर अधिकार यात्रा के पूरे सफर को देखें तो काफिला जहां से भी गुजरा, ज्यादातर जगह कांग्रेस के झंडे और राहुल गांधी के नारों की ही गूंज अधिक सुनाई दी - और ये तेजस्वी यादव के लिए अच्छी बात नहीं कही जाएगी?

बड़ा सवाल ये है कि वोटर अधिकार यात्रा से तेजस्वी यादव को मिला क्या? अगर कांग्रेस और राहुल गांधी के हिस्से से तुलना करें तो?

राहुल प्रधानमंत्री के दावेदार, और तेजस्वी?

वोटर अधिकार यात्रा का हासिल यही है कि महफिल किसने लूटी? अगर तेजस्वी यादव के पूरे पखवाड़े समय देने के बाद भी कोई खास फायदा नहीं हुआ, तो वक्त ही बर्बाद माना जाएगा. तेजस्वी यादव तो पहले भी कई बार ऐसी यात्राएं कर चुके हैं. तब तो वो पार्टी कार्यकर्ताओं मिलते और चुनावी तैयारियों को आगे बढ़ाते देखे जाते रहे, लेकिन वोटर अधिकार यात्रा में? 

तेजस्वी यादव तो राहुल गांधी को बड़ा भाई बताते रहे, यहां तक की आने वाले चुनावों में उनको प्रधानमंत्री बनाने की भी बात करते रहे - लेकिन, राहुल गांधी तो बिहार चुनाव में विपक्ष के मुख्यमंत्री पद के चेहरे के नाम पर सवाल ही टाल देते हैं. जो बातें कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश कुमार करते रहे हैं, राहुल गांधी भी वैसी ही बातें करने लगते हैं. 

राहुल गांधी के वोटर अधिकार यात्रा से बिहार में कांग्रेस को ज्यादा सीटें मिलने की कोई गारंटी तो है नहीं, लेकिन एक संदेश तो गया ही है. जमीन पर जो भी स्थिति हो, चर्चा में तो कांग्रेस आ ही गई है. 

तेजस्वी यादव को लगता नहीं, बहुत फायदा हुआ है. क्योंकि, चर्चाओं में राहुल गांधी ज्यादा और तेजस्वी यादव कम पाए गए हैं. कम इसलिए क्योंकि कम तो राहुल गांधी को होना चाहिए था. 

तमिलनाडु से मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और तेलंगाना से रेवंत रेड्डी को वोटर अधिकार यात्रा में शामिल हुए. राहुल गांधी के लिए तो ये फायदे की बात रही. इंडिया ब्लॉक के लिए भी अच्छी बात रही, लेकिन तेजस्वी यादव के लिए? बिहार के लोग तो दोनों को ही उनके बयानों की वजह से पसंद नहीं करते. 

सवाल ये है कि क्या राहुल गांधी ने कांग्रेस को बिहार में आरजेडी की पिछलग्गू होने की तोहमत से उबार दिया है? 
और क्या राहुल गांधी आरजेडी को यात्रा के दौरान कांग्रेस की पिछलग्गू बनाने में सफल हो पाए हैं?

ये दोनों सवाल काफी महत्वपूर्ण हैं. जवाब तो बाद में मिलेगा, लेकिन लोग अभी से संभावित जवाब को महसूस कर रहे हैं. कन्हैया कुमार तो नहीं, लेकिन पप्पू यादव को तो राहुल गांधी ने मैदान में उतार ही दिया है. तेजस्वी यादव के बारे में पप्पू यादव की बात तो सुन ही चुके हैं, राहुल गांधी के बारे में भी सुनिए, बिहार ने नई करवट ले ली है... बिहार में परिवर्तन की आवाज बुलंद है... जब तक राहुल गांधी हैं, तब तक संविधान सुरक्षित है... लोकतंत्र सुरक्षित है, जनता सुरक्षित है और देश सुरक्षित है... राहुल गांधी ने बिहार और देश के अधिकारों की रक्षा के लिए जो यात्रा निकाली है, पूरा बिहार, इंडिया गठबंधन के नेता और देश के युवा उनकी तरफ विश्वास के साथ देख रहे हैं... बिहार के युवा और गरीब पूरी तरह राहुल गांधी के साथ खड़े हैं.

देश के क्षेत्रीय दलों के पास विचारधारा के अभाव वाले राहुल गांधी के बयान के बाद काफी प्रतिक्रिया हुई थी. आरजेडी नेता मनोज झा का कहना था कि कांग्रेस क्षेत्रीय दलों को ड्राइविंग सीट पर बैठने दे, और खुद सहयोगी की भूमिका में बनी रहे. ये सुझाव उन राज्यों के लिए था, जहां क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व है. क्या राहुल गांधी ने कांग्रेस को बिहार में ड्राइविंग सीट पर ला दिया है? यात्रा के दौरान तो यही दिखा, बाद की बात और है. 

ममता का दूर रहना, अखिलेश का करीब आना

टीएमसी नेता ममता बनर्जी का दूरी बना लेना भी वोटर अधिकार यात्रा में कांग्रेस के दबदबे का संकेत है. ममता बनर्जी दिल्ली में तो इंडिया ब्लॉक की बैठकों में बड़े नेताओं को भेजती हैं, लेकिन बिहार में राहुल गांधी के मोर्चे पर आगे नजर आने के कारण ही लगता है, रस्मअदायगी भर की है. 

ममता बनर्जी की मौजूदगी की बात अलग होती. अगर कहीं ममता बनर्जी नहीं जातीं तो ये देखा जाता है कि प्रतिनिधि के तौर पर किसे भेजा है? डेरेक ओ'ब्रायन अक्सर ऐसे मौकों पर पहुंचते हैं. कई बार दूसरे सीनियर नेता भी जाते हैं. जिस तरह से ममता बनर्जी ने अभिषेक बनर्जी को दिल्ली की जिम्मेदारी दी है, ऐसा लग रहा था वोटर अधिकार यात्रा में वो जरूर शामिल होंगे - लेकिन ममता बनर्जी ने युसुफ पठान और ललितेशपति त्रिपाठी को भेज दिया. ये वही युसुफ पठान हैं जिन्हें विदेश दौरे पर भेजे जाने वाले सांसदों के प्रतिनिधिमंडल में भी शामिल नहीं होने दिया गया था. 

वोटर अधिकार यात्रा में अखिलेश का साथ आना महत्वपूर्ण जरूर है. पूरी यात्रा का यही वो पहलू है, जो तेजस्वी यादव के पक्ष में जाता है. निश्चित तौर पर अखिलेश यादव SIR यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के मुद्दे पर राहुल गांधी के साथ रहे हैं, लेकिन बिहार के जातीय समीकरणों के हिसाब से भी उनकी मौजूदगी बहुत मायने रखती है. 

वोटर अधिकार यात्रा के मंच से अखिलेश यादव ने अवध की तरह मगध से भी बीजेपी को खदेड़ने की अपील की है. अखिलेश यादव, असल में अयोध्या से बीजेपी के 2024 का लोकसभा चुनाव हार जाने की याद दिला रहे हैं.  अखिलेश यादव बिहार के MY-फैक्टर वाली राजनीति में फिट हैं, और तेजस्वी यादव के लिए फायदेमंद हो सकते हैं. अगर एमके स्टालिन और रेवंत रेड्डी से कुछ डैमेज होता है, तो उसे भी कुछ हद तक संभाल सकते हैं.

वोटर यात्रा की पूर्णाहूति पर जो तस्वीर सामने आ रही है, राहुल गांधी के 2025 के पहले बिहार दौरे के मकसद को समझना आसान हो गया है - राहुल गांधी ने कांग्रेस को सीटों के मोलभाव के लिए बेहतर स्थिति में ला दिया है, और तेजस्वी यादव कहीं चूक गए हैं. 

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