रूस और चीन की दोस्ती का पौधा क्या US से दुश्मनी की खाद पर फला-फूला?

6 days ago 1

चीन और रूस के नेता- शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन अक्सर साथ दिखते हैं. पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका के खिलाफ भी वे साझा इंट्रेस्ट रखते हैं. दोनों ही देश एक वक्त पर कम्युनिस्ट विचारधारा वाले रहे. कुल मिलाकर, इनके बीच वो सबकुछ है, जिसे देखकर यकीन हो जाए कि वे नेचुरल पार्टनर हैं. लेकिन इनका रिश्ता काफी उतार-चढ़ाव से गुजर चुका. लंबी सीमाएं साझा करते ये पड़ोसी कभी कट्टर दुश्मन हुआ करते थे. 

दूसरे विश्व युद्ध ने रिश्ते को आगे बढ़ाया

वर्ल्ड वॉर के बाद का वक्त था. चीन में माओत्से तुंग की सरकार आई थी. इधर सोवियत यूनियन (अब रूस) पहले से ही दुनिया का सबसे बड़ा कम्युनिस्ट देश था. एक विचारधारा दोनों को पास लाने लगी. रूस अमेरिका के चलते अकेला पड़ा हुआ था. उसे बीजिंग का साथ मिल गया. वहीं बीजिंग को भी मजबूत देश से हथियार और तकनीक की मदद मिलने लगी. दोनों को लगा कि आपसी साथ उन्हें समृद्ध करेगा. 

लेकिन जल्द ही संबंधों में शक आ गया. चीनी लीडर को लगने लगा कि रूस उसे बराबरी का दर्जा नहीं दे रहा. वहीं रूस भी चीन की बढ़ती ताकत से परेशान होने लगा. साठ का दशक आते-आते रिश्ते में खटास आने लगी.

विचारधारा से शुरू लड़ाई सीमा तक पहुंच गई

बीजिंग को शक था कि रूस कहीं न कहीं कम्युनिस्ट आंदोलन के साथ धोखा कर रहा है. दूसरी तरफ मॉस्को को चीन की कल्चरल रिवॉल्यूशन जैसी नीतियां खतरनाक लगने लगीं. बात शुरू हुई आइडियोलॉजी से लेकिन जल्द ही बॉर्डर टेंशन में बदल गई. 

दरअसल दोनों लगभग चार हजार किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं. ये सीमा ठीक से बंटी हुई नहीं थी. दोनों अलग नक्शे बनाते और दूसरे इलाकों पर दावा जताते. 

russia china disputed border before USSR (Photo- Unsplash)रूस और चीन के बीच चार हजार किलोमीटर की सीमा विवादित थी. (Photo- Unsplash)

इनके बीच सीमा विवाद अमूर और उजूरी नदियों के इलाकों पर था. इसके अलावा अल्ताई पर्वतीय इलाका, कई द्वीप और नदियों के कई किनारे विवादित थे. ये फसाद वैसे 19वीं सदी से ही था, जो बस सतह के नीचे दबा हुआ था. उस वक्त में रूस ने किंग डायनेस्टी से बड़े इलाके ले लिए थे. सोवियत संघ के दौर में चीन ने इन संधियों को मानने से इनकार कर दिया और तनाव बढ़ने लगा. 

बॉर्डर पर झड़पें होने लगीं

मार्च 1969 में चीन और रूस के सैनिक उजूरी नदी के पास भिड़ गए. लड़ाई हालांकि छुटपुट नुकसान के बाद रुक गई लेकिन इसका असर बड़ा रहा. दुनिया को समझ आया कि दो एक जैसी सोच वाले देश भी लड़ सकते हैं. अमेरिका पहले से ताक में था. उसने चीन से रिश्ते बनाने शुरू कर दिए. ये अलग बात है कि यह रिश्ता किसी मुकाम नहीं पहुंच सका लेकिन बीजिंग से मॉस्को का भरोसा हटाने के लिए इतना काफी था. दोनों के बीच तनाव बढ़ता चला गया और सीमाओं पर भारी फौज तैनात हो गई. 

अमेरिकी दखल से टला संकट

रिपोर्ट्स यह भी कहती हैं कि इस झड़प के बाद रूस को डर हो गया कि चीन कहीं यूएस से मिलकर उसपर हमले न कर बैठे. मॉस्को के नेताओं ने तभी चीन पर परमाणु हमला करने की योजना बनाई थी. प्लान लीक होकर अमेरिका तक पहुंच गया. वो तब तक ग्लोबल ठेकेदार की अपनी भूमिका में आ चुका था. उसने चेताया कि अगर रूस हमला करे तो वो भी जंग में आ जाएगा.

दबाव के बाद रूस चुप बैठ गया और बड़ा खतरा टल गया. इस बीच चीन ने भी परमाणु हथियारों बढ़ाने पर ध्यान दिया ताकि कोई उसे धमका न सके. रूस यहां से शांत होने लगा. 

 xi jinping with vladimir putin (Photo- Reuters)चीन और रूस के बीच दोस्ती की बड़ी वजह अमेरिका से साझा नफरत रही. (Photo- Reuters)

धीरे-धीरे बर्फ पिघलने लगी

दोनों के बीच युद्ध का खतरा तो टल चुका था लेकिन तनाव बना हुआ था. साल 1980 के दशक तक रूस के नेता मिखाइल गोर्बाचेव ने चीन से बातचीत शुरू कर दी. नेताओं के दौरे भी होने लगे. दोनों देशों ने तभी तय किया कि वे सीमा विवाद को बीच में नहीं आने देंगे. यह वो समय था, जब रूस कमजोर होकर टूटने की कगार पर था, जबकि चीन तेजी से आगे आ रहा था. 

साल 1991 में रूस (तब सोवियत यूनियन) टूट गया. रूस नया देश बना. नए मुल्क के पास तजुर्बा और रौब तो था लेकिन आर्थिक और राजनीतिक तौर पर पुराना दमखम बाकी नहीं था. आर्थिक और राजनीतिक रूप से कमजोर देश को नए पार्टनर की जरूरत थी. इधर चीन दुनिया की बड़ी ताकत होने की ओर था. उसे अपने जैसे देशों की जरूरत थी, जो पश्चिम के खिलाफ हों. ऐसे में उन्होंने पुरानी दुश्मनी भुलाकर साथ आने का फैसला किया.

कई अहम संधियां हुईं

सोवियत संघ के टूटते ही रूस और चीन ने सीमा विवाद सुलझाने के लिए पहली बड़ी संधि की. इसके बाद के दशक में कई समझौते हुए, जिससे सीमा विवाद लगभग खत्म हो गया. कुछ हिस्से चीन को मिले, जबकि बड़ा भाग रूस के पास रहा. इसी बीच ट्रीटी ऑफ गुड-नेबरलिनेस एंड फ्रेंडली कोऑपरेशन नाम की साझेदारी हुई. इसमें पक्का हुआ कि दोनों एक-दूसरे के दुश्मनों को सपोर्ट नहीं करेंगे. साथ ही आपस में सारे सहयोग करेंगे. चीन ने रूस से तेल, गैस और हथियार खरीदने शुरू किए, जबकि रूस को चीन का बड़ा बाजार मिल गया.

अब कैसी है स्थिति

आज चीन और रूस खुद को नो लिमिट्स पार्टनर्स मानते हैं. पुतिन और शी जिनपिंग कई बार एक-दूसरे से मिल चुके. यूक्रेन जंग में चीन ने रूस का खुला समर्थन तो नहीं किया, लेकिन बैकडोर से उसकी मदद की. एक वक्त पर महाशक्ति रह चुका रूस भी चीन को बराबरी से देखता है. दोनों बाजार, तकनीक और तेल शेयर करते हैं, लेकिन सबसे जरूरी है साझा दुश्मनी. यही वो गोंद है, जो दोनों देशों को जोड़े हुए है. अमेरिका और लगभग पूरे पश्चिम से नफरत इन्हें साथ रखती आई है. 

---- समाप्त ----

Read Entire Article