शहाबुद्दीन अमर रहे का नारा लगाकर तेजस्‍वी यादव कहां फंस गए? 

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बिहार की राजनीति में कानून व्यवस्था का मुद्दा बहुत हॉट हो गया है. आरजेडी नेता और प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव लगातार नीतीश कुमार को प्रदेश में बढ़ते अपराध के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. उनके इस दावे का आधार बिहार में बढ़ती आपराधिक घटनाएं, खासकर हत्या, लूट, और बलात्कार जैसे मामले हैं. एक हद तक तेजस्वी ने गिरती कानून व्यवस्था के नाम परएनडीए को बैकफुट पर धकेल दिया था. पर कहा जा रहा है कि रविवार को आरजेडी के फाउंडेशन डे पर तेजस्वी ने शहाबुद्दीन अमर रहे के नारे लगाकर अपनी साफ सुथरी राजनीति को एक बार फिर शक के दायरे में डाल दिया है. जाहिर है कि अगर जंगल राज के दिनों के कुख्यात माफियाओं का महिमामंडन आरजेडी करने की कोशिश करेगी तो उसे आगामी विधानसभा चुनावों में मुंह की खानी पड़ सकती है. तेजस्वी यादव  के शहाबुद्दीन अमर रहे जैसे नारे तेजस्वी के इस नैरेटिव को कमजोर करते हैं कि वह माफिया राजनीति से दूर हटकर अपने पिता लालू यादव और माता राबड़ी देवी से अलग एक साफ सुथरी सरकार बनाएंगे.

1- तेजस्वी का नीतीश पर जंगलराज का आरोप और उनकी विश्वसनीयता का सवाल

तेजस्वी यादव ने बिहार में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर नीतीश कुमार की सरकार पर जंगलराज लौटाने का आरोप लगाते रहे हैं. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि बिहार में कानून व्यवस्था की स्थिति कुछ महीनों में बेहद खराब हुई है. तेजस्वी ने सीएम नीतीश कुमार पर आरोप लगाते हुए कहा कि वे अचेत अवस्था में हैं. मेरे घर के बगल में गोलियां चलीं, लेकिन कोई पकड़ा नहीं गया. उनके अनुसार, बिहार में हर जिले में जघन्य अपराध हो रहे हैं, और नीतीश सरकार ने अपराधियों को खुली छूट दे रखी है. तेजस्वी ने यह भी दावा किया कि नीतीश कुमार अब मानसिक रूप से शासन करने के लिए स्वस्थ नहीं हैं, और उनकी सरकार अपराध नियंत्रण में पूरी तरह विफल रही है.

  तेजस्वी ने अपराध बुलेटिन जारी कर रोजाना होने वाली आपराधिक घटनाओं, जैसे हत्या और बलात्कार की जिलेवार जानकारी दी है, ताकि जनता के बीच यह संदेश जाए कि नीतीश का शासन जंगलराज में बदल गया है. पर शहाबुद्दीन अमर रहे जैसे नारे तेजस्वी के जंगलराज के आरोपों को बुरी तरह कमजोर करते हैं. क्योंकि शहाबुद्दीन का नाम RJD के उस दौर से जुड़ा है, जिसे नीतीश और बीजेपी जंगलराज कहकर प्रचारित करते रहे हैं.

1990-2005 के दौरान लालू-राबड़ी के शासन को जंगलराज के रूप में जाना जाता है, जब शहाबुद्दीन जैसे बाहुबलियों को कथित तौर पर राजनीतिक संरक्षण प्राप्त हुआ करता था. NCRB के आंकड़ों के अनुसार, उस दौर में बिहार में हत्या, अपहरण, और रंगदारी जैसे अपराध चरम पर थे. शहाबुद्दीन उस दौर में सिवान में डर का पर्याय थे.जाहिर है कि तेजस्वी का एक कुख्यात माफिया के लिए इस तरह के नारे लगाना उनकी छवि को ऐन चुनाव के मौके पर नकारात्मक बनाता है.

हत्या और रंगदारी जैसे अपराधों के न रोक पाने के आरोपों से घिरी वर्तमान जेडीयू और बीजेपी ने इस नारे का इस्तेमाल तेजस्वी और RJD को घेरने के लिए किया है. एक्स पर एक पोस्ट में कहा गया कि तेजस्वी को अपने परिवार के शासनकाल का हिसाब देना चाहिए, जब अपराधियों को सरकारी संरक्षण मिलता था, और 65,000 हत्याओं का रिकॉर्ड लालू-राबड़ी के राज में कायम हुआ. 

2-शहाबुद्दीन परिवार से दूरी बनाकर तेजस्वी ने जो कमाया उसे पल भर में गंवा दिया

मोहम्मद शहाबुद्दीन, RJD के पूर्व सांसद और सिवान के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन की 2021 में मृत्यु के बाद उनकी पत्नी हिना शहाब और बेटे उसामा शहाब राजनीति में सक्रिय हैं. पर RJD ने 2015 के बाद, खासकर तेजस्वी यादव के उदय के साथ शहाबुद्दीन परिवार से दूरी बनाने की रणनीति अपनाई. इसका एक मात्र उद्देश्य था कि RJD की छवि को जंगलराज से मुक्त किया जा सके. संभवतया तेजस्वी यादव को स्थापित करने के लिए ये फैसला लिया गया था. उनके नेतृत्व में बिहार ऐसे युवा और प्रगतिशील वोटरों को आकर्षित करने का प्लान था आरजेडी को अपराधियों से जुड़ी पार्टी होने के चलते समर्थन देने से हिचकते थे.

इस रणनीति के तहत, RJD ने शहाबुद्दीन परिवार को पार्टी के आधिकारिक कार्यक्रमों से दूर रखा और उनकी रिहाई या गतिविधियों पर सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं की. उदाहरण के लिए, 2022 के गोपालगंज विधानसभा उपचुनाव में, RJD ने शहाबुद्दीन परिवार का समर्थन नहीं लिया, जिसके चलते पार्टी हार गई. इसके पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. लेकिन सिवान एरिया की सीटों पर आरजेडी को मिलने वाली लगातार हार के चलते शायद पार्टी ने अपना यह फैसला बदल दिया. 2024 में ही हिना शहाब और उनके बच्चों को पार्टी में फिर से शामिल किया गया. उसी नीति पर चलते हुए कल आरजेडी के फाउंडेशन डे पर तेजस्वी यादव ने शहाबुद्दीन अमर रहें का नारा लगाकर अपने लिए मुश्किल खड़ी कर दी है.

3-शहाबुद्दीन और आरजेडी दोनों की जरूरत 

शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब अपने पति के जिंदा रहते ही राजनीति में सक्रिय हो गईं थीं. शहाबुद्दीन के जेल में रहने पर हिना ही सबकुछ देखती थीं.आपराधिक मामले में सजा होने के बाद चुनाव आयोग ने शहाबुद्दीन के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया था. राजद ने हिना शहाब को 2009 और 2014 में लोकसभा चुनाव के लिए सिवान सीट से टिकट दिया पर दोनों ही बार पराजय मिली. 2024 का लोकसभा चुनाव हिना ने निर्दलीय लड़ा,लेकिन फिर भी जीत नसीब नहीं हुई. जाहिर है कि आरजेडी और शहाबुद्दीन दोनों मिलकर और अलग-अलग लड़कर भी देख लिए पर दोनों को सफलता नहीं मिली.

अब 2025 बिहार विधानसभा चुनाव लालू और तेजस्वी यादव के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. उधर, शहाबुद्दीन की पत्नी हिना को भी अपने बेटे की चिंता सता रही है. ओसामा की राजनीति में एंट्री बिना लालू यादव की मदद के संभव नहीं है. ऐसे में दोनों पक्षों को एक साथ एक बार फिर आना पड़ा है.

4-प्रशांत किशोर के चलते शहाबुद्दीन परिवार को गले लगाना मजबूरी हो गया

प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी RJD के पारंपरिक वोट बैंक, विशेष रूप से मुस्लिम वोटरों, में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है. मुस्लिम आबादी, जो बिहार की कुल जनसंख्या का 17.70% है, RJD के लिए एक महत्वपूर्ण वोट बैंक रहा है. प्रशांत किशोर ने 2024 में घोषणा की कि जन सुराज पार्टी 2025 के चुनाव में सभी 243 सीटों पर लड़ेगी और कम से कम 40 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देगी. 

RJD ने हाल के वर्षों में मुस्लिम समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं देने का आरोप लगा था. उदाहरण के लिए, 2020 के विधानसभा चुनाव में RJD ने केवल 19 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया, जबकि मुस्लिम आबादी के अनुपात के हिसाब से यह संख्या बहुत कम थी. 
 प्रशांत किशोर ने यह वादा करके आरजेडी के लिए और मुश्किल खड़ा कर दिया कि उनकी पार्टी मुस्लिम उम्मीदवारों के खर्च का भुगतान करेगी. प्रशांत कहते हैं कि बिहार में मुस्लिम आबादी के अनुपात के हिसाब से 1,650 मुखिया और सरपंच पद होने चाहिए, लेकिन केवल 1,200 हैं. जनसुराज पार्टी का यह दावा RJD के मुस्लिम वोटरों को आकर्षित करने की कोशिश है. शायद यही सब कारण है कि तेजस्वी यादव ने वक्फ बोर्ड संशोधन बिल जैसे मुद्दों पर जिस तरह का आक्रामक रुख अपनाया है वैसी उनसे उम्मीद नहीं थी.
 

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