सप्तमी तिथि का श्राद्ध कल, जानें श्राद्ध विधि और शुभ मुहूर्त

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Pitru Paksha 2025: पितृपक्ष चल रहा है. इस साल पितृपक्ष 21 सितंबर तक चलेगा. पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है. मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान यमराज आत्माओं को अपने परिवार के पास आने की अनुमति देते हैं, ताकि वे उनका तर्पण स्वीकार कर सकें. इस समय श्रद्धा और नियमों का पालन करते हुए किया गया श्राद्ध पितरों को प्रसन्न करता है. इससे घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है. पितृपक्ष के दौरान प्रत्येक तिथि का अपना विशेष महत्व होता है. 13 सितंबर को सप्तमी तिथि का श्राद्ध है. इस दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को होती है. 

सप्तमी श्राद्ध तिथि और शुभ मुहूर्त

श्राद्ध अनुष्ठान तिथि- शनिवार , 13 सितंबर 2025
सप्तमी तिथि प्रारंभ- 13 सितंबर 2025 सुबह 07:23 बजे.
सप्तमी तिथि समापन- 14 सिंतबर 2025 को सुबह 05:04 बजे.

सप्तमी श्राद्ध की विधि और सावधानियां

1. तिथि का चयन- पितृपक्ष में श्राद्ध हमेशा उसी तिथि को करना चाहिए जिस दिन आपके पूर्वज का निधन हुआ था. तिथि याद न होने पर अमावस्या के दिन श्राद्ध किया जा सकता है.

2. सामग्री- श्राद्ध के लिए आवशयक सामग्री में जौ, काले तिल, गाय का दूध, गंगाजल, कुश, फूल घी, शक्कर और सात्विक सब्जियां जरूर शामिल होने चाहिए.

3. स्थान- श्राद्ध किसी पवित्र स्थान या नदी किनारे किया जाना उचित होता है. जिसे श्राद्ध करना है उसे सुबह जल्दी उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनने चाहिए. फिर पितरों को याद करते हुए उचित स्थान ग्रहण करना चाहिए.

4. श्राद्ध विधि- हाथ में कुशा लेकर पितरों के नाम और गौत्र को बोलते हुए दाहिए हाथ से एक बर्तन में काले तिल और दूध मिश्रित गंगाजल अर्पित करें. इसे ही तर्पण कहा जाता है. इसके बाद पितरों को पिंड अर्पित करें और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें.

सप्तमी श्राद्ध में बरतने योग्य सावधानियां

श्राद्ध के समय सात्विक आहार लें और मन में नकारात्मक विचार लाने से बचें. पितरों के नाम से अर्पित भोजन का स्वयं सेवन न करें. श्राद्ध के दिन मदिरा, मांसाहार और तामसिक भोजन वर्जित है. श्रद्धा और मन की शुद्धि के बिना श्राद्ध अधूरा माना जाता है. गाय, कुत्ते, कौए, चींटी और देवी-देवताओं के लिए अलग से भोजन निकालना न भूलें. श्राद्ध के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और सामर्थ्य के अनुसार, दान-दक्षिणा दें.

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