नेपाल में Gen-Z के प्रदर्शनों के पीछे भ्रष्टाचार, सोशल मीडिया प्रतिबंध और राजशाही की बहाली जैसे मुद्दे सामने आ रहे हैं. इसे स्थानीय असंतोष का परिणाम बताया जा रहा जबकि कुछ लोग इसे डीप स्टेट की साजिश से जोड़ रहे हैं. संभावना जताई जा रही है कि इस बवाल के पीछे विदेशी ताकतें, जैसे अमेरिका या चीन, शामिल हो सकती हैं. जाहिर है कि यह भारत के लिए किसी भी रूप में ठीक नहीं है. पर जैसी खबरें आ रही हैं कि नेपाल की पूर्व प्रधान न्यायाधीश सुशीला कार्की अंतरिम सरकार की मुखिया बनने जा रही हैं.
बहुत संभावना है कि आज उनके नाम पर सेना मुहर लगा सकती है. गुरुवार को खबर लिखे जाने तक वो सेना प्रमुख से मिलने जा रही थीं. पर सबसे खास बात यह है कि एक मीडिया हाउस को दिए गए साक्षात्कार में उन्होंने भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की है. कार्की के बयान से ऐसा लगता है कि वे भारत को लेकर काफी संजीदा हैं. इसके पहले काठमांडू के मेयर बालेन शाह का भी नाम सामने आ रहा था. पर बालेन का इतिहास भारत विरोधी रहा है. कार्की के बयान से ऐसा लग रहा है कि वो कम से कम बंग्लादेश के अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद युनूस जैसी साबित नहीं होंगी. युनूस ने सत्ता संभालते ही भारत विरोधी बयान देकर अपने इरादे जता दिए थे.
सुशीला कार्की का साक्षात्कार और मोदी की तारीफ
सुशीला कार्की, नेपाल की पहली महिला प्रधान न्यायाधीश (2016-2017), ने भारतीय चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा कि भारत और नेपाल की जनता का रिश्ता सरकारों से परे है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली की तारीफ करते हुए कहा, मोदी जी को नमस्कार, मेरे जेहन में मोदी जी के लिए अच्छा इंप्रेशन है. यह बयान नेपाल में सियासी उथल-पुथल के बीच आया, जब भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के खिलाफ प्रदर्शनों ने सरकार को गिरा दिया, और कार्की को अंतरिम सरकार की भावी मुखिया नियुक्त किया गया.
कार्की ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से शिक्षा प्राप्त की और अपनी आत्मकथा में नेपाल की न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष का वर्णन किया है. उनकी भारत के प्रति सकारात्मक टिप्पणी उनके शैक्षिक और सांस्कृतिक जुड़ाव को दर्शाती है. उन्होंने कहा कि Gen-Z ने उन्हें समर्थन दिया, और वह प्रदर्शनों में शहीद हुए लोगों के परिवारों को सम्मान और सहयोग देना चाहती हैं. कार्की ने नेपाल की चुनौतियों को स्वीकार करते हुए कहा कि वह देश को विकास की राह पर ले जाएंगी.
बांग्लादेश में यूनुस और भारत विरोधी रुख
बांग्लादेश में 2024 में शेख हसीना की सरकार को छात्र आंदोलनों ने उखाड़ फेंका, और नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस अंतरिम सरकार के नेता बने. यूनुस पर भारत विरोधी बयान देने का आरोप लगा, जैसे कि उनके समर्थक मौलाना सैयद फैजुल करीम ने भारत को बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप करने वाला बताया. हसीना की सरकार भारत के साथ मजबूत संबंध रखती थी, और उनकी बर्खास्तगी ने भारत के लिए सुरक्षा और कूटनीतिक चुनौतियां पैदा कीं, विशेष रूप से पूर्वोत्तर में. यूनुस की सरकार को पश्चिमी प्रभाव में माना जाता है, और बीजेपी ने इसमें अमेरिकी डीप स्टेट और OSF की भूमिका का दावा किया.
यूनुस का उदय एक गैर-राजनीतिक व्यक्ति के रूप में हुआ, जो अचानक सत्ता में आए. यह डीप स्टेट की रणनीति से मेल खाता है, जहां अप्रत्याशित हस्तियां सत्ता में लाई जाती हैं. नेपाल में सुशीला कार्की का अंतरिम सरकार की मुखिया बनना इस पैटर्न से अलग है, क्योंकि उनकी भारत के प्रति सकारात्मक टिप्पणी और BHU से जुड़ाव उन्हें भारत विरोधी यूनुस से अलग करता है.
नेपाल (2025): नेपाल में सत्ता परिवर्तन अभी अनिश्चित है, लेकिन सुशीला कार्की का अंतरिम सरकार की मुखिया बनना और मोदी की तारीफ करना यह दर्शाता है कि नेपाल भारत विरोधी रास्ते पर नहीं गया है. राजशाही की मांग भारत के लिए सकारात्मक हो सकती है, क्योंकि यह सांस्कृतिक समानताओं को मजबूत कर सकती है.
सुशीला कार्की की भूमिका और भारत के लिए महत्व
सुशीला कार्की की अगर नियुक्ति होती है तो नेपाल के लिए एक स्थिर और भारत के प्रति सकारात्मक नेतृत्व का संकेत है. उनकी BHU से शिक्षा और भारत के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण नेपाल-भारत संबंधों को मजबूत कर सकता है. कार्की ने 2017 में महाभियोग का सामना किया था, जब सत्ताधारी दलों ने उन्हें निलंबित करने की कोशिश की, जिससे उनकी स्वतंत्र और भ्रष्टाचार विरोधी छवि मजबूत हुई. उनका यह कहना कि भारत और नेपाल की जनता का रिश्ता सरकारों से परे है. दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और ऐतिहासिक बंधन को रेखांकित करता है.
नेपाल में कार्की का नेतृत्व भारत के लिए गनीमत है, क्योंकि यह यूनुस जैसे भारत विरोधी नेता के उदय को रोकता है. बांग्लादेश में यूनुस की सरकार ने भारत के साथ तनाव बढ़ाया, जबकि कार्की की टिप्पणियां भारत के साथ सहयोग को बढ़ावा दे सकती हैं.
क्यों जरूरी है नेपाल में भारत समर्थक सरकार की
नेपाल भारत और चीन के बीच एक महत्वपूर्ण बफर जोन है. भारत-नेपाल की 1,751 किलोमीटर की खुली सीमा भारत की उत्तरी सीमा की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में चीन के साथ तनाव के संदर्भ में. नेपाल में भारत समर्थक नेतृत्व, जैसे सुशीला कार्की, यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि नेपाल में चीन का बढ़ता प्रभाव, जैसे बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), सीमित रहे.
बांग्लादेश में 2024 में मोहम्मद यूनुस की भारत विरोधी टिप्पणियों ने भारत की क्षेत्रीय स्थिति को कमजोर किया. नेपाल में ऐसा होने से रोकने के लिए भारत समर्थक नेतृत्व जरूरी है. बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भारत के संबंध अच्छे नहीं हैं. इस बीच अगर नेपाल भी भारत विरोधी शक्तियों के हाथ में आ गया तो यह देश के लिए दुर्भाग्य ही होगा.
नेपाल की खुली सीमा भारत के लिए सुरक्षा चुनौती है. अवैध हथियारों की तस्करी, मानव तस्करी, और आतंकी गतिविधियां इस सीमा के माध्यम से हो सकती हैं. हाल ही में चार चीनी नागरिकों को नेपाल सीमा से भारत में अवैध प्रवेश की कोशिश करते पकड़ा गया. भारत समर्थक नेतृत्व सीमा निगरानी और सहयोग को मजबूत कर सकता है, जिससे भारत की आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित हो.
भारत नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, और दोनों देशों के बीच 7 बिलियन डॉलर से अधिक का व्यापार होता है. भारत समर्थक नेतृत्व यह सुनिश्चित कर सकता है कि नेपाल में भारत के आर्थिक हित, जैसे हाइड्रोपावर परियोजनाएं और व्यापारिक समझौते, सुरक्षित रहें. बांग्लादेश में यूनुस की सरकार ने भारत के साथ व्यापारिक और कूटनीतिक संबंधों को जटिल बनाया, जिसे नेपाल में टाला जा सकता है.
बांग्लादेश में युनूस के आने का नुकसान सह चुका है भारत
बांग्लादेश में 2024 में शेख हसीना की सरकार के पतन और मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के सत्ता में आने से भारत के लिए भू-राजनीतिक, आर्थिक, और सुरक्षा संबंधी कई नुकसान हुए. शेख हसीना की सरकार भारत की करीबी सहयोगी थी, जिसने भारत के साथ मजबूत कूटनीतिक और सुरक्षा संबंध बनाए रखे.
यूनुस का भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और चिकन नेक कॉरिडोर पर बयान भारत के लिए सुरक्षा चिंता का विषय बना. यह भारत के क्षेत्रीय प्रभाव को कमजोर करता है, क्योंकि बांग्लादेश अब पश्चिमी और चीनी हितों की ओर झुक रहा है.
बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़े, जिसमें मंदिरों और हिंदू व्यापारियों को निशाना बनाया गया. भारत ने इन हमलों की निंदा की और यूनुस सरकार से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. यह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में अस्थिरता का खतरा बढ़ाता है, क्योंकि बांग्लादेश से अवैध प्रवास और आतंकी गतिविधियां बढ़ सकती हैं.
भारत और बांग्लादेश के बीच 14 बिलियन डॉलर का व्यापार है, लेकिन यूनुस सरकार ने भारतीय यार्न आयात पर प्रतिबंध लगाया, जिससे भारत का टेक्सटाइल उद्योग प्रभावित हुआ. भारत ने जवाब में बांग्लादेश को दी गई ट्रांस-शिपमेंट सुविधा वापस ले ली, जिससे बांग्लादेश का भूटान, नेपाल, और म्यांमार के साथ व्यापार प्रभावित हुआ.
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