ममता बनर्जी का बंगाली बनाम बाहरी वाला दांव उल्टा पड़ने लगा है. बल्कि, तगड़ा बैकफायर कर रहा है. बीजेपी ने ममता बनर्जी की मिसाइल का मुंह अब तृणमूल कांग्रेस की तरफ मोड़ दिया है - और मोहरा बन रहे हैं बहरामपुर से टीएमसी सांसद यूसुफ पठान.
यूसुफ पठान पश्चिम बंगाल में बीजेपी के निशाने पर तो हैं ही, गुजरात के बडोदरा में उनके मकान पर बुलडोजर एक्शन का भी खतरा मंडराने लगा है. वडोदरा नगर निगम ने यूसुफ पठान को निगम के प्लॉट से अतिक्रमण हटाने का नोटिस भेजा था, जिसके खिलाफ वो गुजरात हाई कोर्ट गए थे. हाई कोर्ट से यूसुफ पठान की अर्जी तो खारिज हुई ही, अदालत ने नगर निगम को जमीन वापस लेने की भी हिदायत दे डाली है - खास बात ये है कि निगम ने नोटिस उनको सांसद बनने के बाद भेजा था.
अब तक तो ममता बनर्जी ही बीजेपी नेताओं को बाहरी बताकर हमला बोला करती थीं, लेकिन अब बीजेपी टीएमसी नेता की कमजोर कड़ियों को खोज खोज कर हमला करने लगी है. पश्चिम बंगाल में भाषा आंदोलन चला रहीं ममता बनर्जी के खिलाफ केंद्रीय मंत्री सुकांत मजूमदार ने मोर्चा खोल दिया है, और पिछले कुछ दिनों से वो टीएमसी नेता के खिलाफ ही बंगाली बनाम बाहरी मुद्दे को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं.
बीजेपी नेता सुकांत मजूमदार का कहना है कि ममता बनर्जी की नीतियां पश्चिम बंगाल के स्थानीय लोगों के हितों के खिलाफ हैं, और तृणमूल कांग्रेस बाहरी लोगों को बढ़ावा दे रही है - जिस तरह से यूसुफ पठान का नाम लेकर बीजेपी ममता बनर्जी के खिलाफ बंगाली बनाम बाहरी का मुद्दा उठा रहे है, भाषा आंदोलन के लिए ये मजबूत काउंटर अटैक साबित हो सकता है
बंगाली बनाम बाहरी के मुद्दे पर घिरतीं ममता बनर्जी
2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भी ममता बनर्जी ने बंगाली बनाम बाहरी की बहस शुरू कर मुद्दा बना दिया था. जैसे वो बीजेपी के जय श्रीराम के स्लोगन को लेकर आक्रामक हो जाती थीं, बिल्कुल वैसे ही वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री अमित शाह को बाहरी बोलकर निशाना बनाती थीं. तब बंगाल में होने वाली हर घटना के लिए वो बाहरी लोगों के बहाने बीजेपी को टार्गेट किया करती थीं.
पश्चिम बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके सुकांत मजूमदार ने उसी हथियार का मुंह ममता बनर्जी की तरफ मोड़ दिया है. ममता बनर्जी के हाल के हमलावर तेवर और आंदोलन के जवाब में सुकांत मजूमदार ने कहा कि बंगाल को चलाने के लिए बंगाली तैयार है. कहते हैं, आपके जाने का समय आ गया है... आपने बंगालियों का जितना नुकसान किया है, उतना बंगाल का किसी ने भी नुकसान नहीं किया है.
और फिर उसी लहजे में पूछ बैठते हैं, अगर बंगालियों का आपको इतना ही ख्याल होता तो आप यूसुफ पठान को यहां नहीं लातीं.
बतौर क्रिकेटर खासे लोकप्रिय रहे यूसुफ पठान को ममता बनर्जी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में बहरामपुर से कांग्रेस के लोकसभा में विपक्ष के नेता रह चुके अधीर रंजन चौधरी के खिलाफ चुनाव लड़ाया था. ममता बनर्जी का ये प्रयोग कारगर साबित हुआ, यूसुफ पठान ने अधीर रंजन चौधरी को चुनाव में चलता कर दिया.
यूसुफ पठान गुजरात से आते हैं, और बीजेपी को ममता बनर्जी को घेरने का बढ़िया मौका मिल गया है. यूसुफ पठान को ममता बनर्जी बंगाली तो साबित नहीं ही कर सकतीं. जिस बिनाह पर ममता बनर्जी मोदी-शाह या बीजेपी नेताओं को बाहरी बताकर हमला बोल देती हैं, भला उसी पैमाने पर यूसुफ पठान का क्या बोलकर बचाव करेंगी?
बांग्ला भाषा को लेकर ममता बनर्जी हर कुछ दिन पर कोई नया फरमान लेकर आती हैं. पश्चिम बंगाल सरकार ने नए आदेश में साइनबोर्ड पर सबसे ऊपर बांग्ला में नाम लिखना जरूरी कर दिया है. कुछ दिन पहले ऐसे ही सिनेमा हाल और मल्टीप्लेक्स में प्राइम टाइम के दौरान एक बंगाली फिल्म दिखाया जाना अनिवार्य कर दिया गया था.
अपने नेताओं को बांग्ला में भाषण देने की सलाह के बाद ममता बनर्जी अब सभी से बंगाली ही बोलने की अपील कर रही हैं. ममता बनर्जी का ये संदेश प्रवासी मजदूरों के लिए भी लगता है. ममता बनर्जी का कहना है, बंगाली में ज्यादा बोलो, डरो मत... हम साफ साफ कहना चाहते हैं कि हम अपनी मातृभाषा बंगाली ही बोलेंगे, लेकिन हम दूसरी भाषाओं का भी सम्मान करते हैं...
जलपाईगुड़ी में एक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भावनात्मक तौर पर लोगों से कनेक्ट होने की कोशिश की, मैं रोज अपमान झेलती हूं... क्योंकि मैं बंगाल का विकास चाहती हूं.
टीएमसी में बाहरी नेताओं का दबदबा
बीजेपी अब ममता बनर्जी की उस छवि पर चोट करने का प्रयास कर रही है, जो टीएमसी नेता ने बंगाली अस्मिता की एकमात्र संरक्षक होने का बना रखा है. यूसुफ पठान के मुद्दे पर भी टीएमसी की तरफ से बचाव की कोशिश हुई है. तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि यूसुफ पठान जैसे लोग बंगाल की जनता की सेवा के लिए चुने गए हैं, न कि किसी बाहरी एजेंडे के लिए. टीएमसी का कहना है कि बीजेपी नेता ऐसे बयान देकर सामाजिक भेदभाव पैदा करना चाहते हैं.
ममता बनर्जी की मुश्किल ये है कि सिर्फ यूसुफ पठान ही नहीं, तृणमूल कांग्रेस में ऐसे नेताओं की भरमार हो गई है जो बीजेपी के निशाने पर आसानी से आ सकते हैं. ऐसे ही एक टीएमसी नेता हैं साकेत गोखले. साकेत गोखले भी गुजरात से ही आते हैं, और ममता बनर्जी ने साकेत गोखले को यूसुफ पठान से पहले ही राज्यसभा भेज दिया था. 2021 में टीएमसी का दामन थामने वाले साकेत गोखले को ममता बनर्जी ने 2023 में राज्यसभा भेजा था.
झारखंड के हजारीबाग से आने वाले बीजेपी नेता रहे यशवंत सिन्हा को ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया था. वो विपक्ष की तरफ से उपराष्ट्रपति पद का चुनाव भी लड़ चुके हैं. ये बात अलग है कि पिछले उपराष्ट्रपति चुनाव में जब यशवंत सिन्हा भी मैदान में थे, ममता बनर्जी की पार्टी ने चुनाव से ही दूरी बना ली थी.
ममता बनर्जी ने दो और ऐसे लोगों को लोकसभा सांसद बना रखा है, जो पश्चिम बंगाल से बाहर के हैं, और उनमें भी एक पूर्व क्रिकेटर हैं. फिल्म स्टार शत्रुघ्न सिन्हा और पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद भी तृणमूल कांग्रेस के ही लोकसभा सांसद हैं. शत्रुघ्न सिन्हा आसनसोल लोकसभा सीट से, और कीर्ति आजाद बर्धमान-दुर्गापुर से.
और बाहरियों के दायरे में तो बीजेपी ममता बनर्जी के सबसे करीबी भरोसेमंद और बड़े नेताओं में से एक डेरेक ओ’ब्रायन को भी आसानी से निशाना बना सकती है. बेशक डेरेक ओ’ब्रायन बांग्ला भाषा बोलते, लिखते और पढ़ते भी हैं, लेकिन वो आयरिश मूल के हैं, और एंग्लो-इंडियन क्रिश्चियन समुदाय से आते हैं. कोलकाता में इस समुदाय की छोटी सी आबादी रहती है. 1860 में डेरेक ओ’ब्रायन का परिवार भारत आया, और पूर्वजों ने बंगाली परिवार में शादी की - और वो भी आज ममता बनर्जी के भाषा आंदोलन के खास नुमाइंदा बने हुए हैं.
पश्चिम बंगाल में अगले साल यानी 2026 में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. ममता बनर्जी भी चुनाव की ही तैयारी कर रहे हैं, और बीजेपी भी उसी मिशन में लगी हुई है.
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