सूर्यदेव की बहन, कार्तिकेय की मां या योगमाया... छठ माता का स्वरूप कैसा है

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भारतीय पूजा पद्धति में देवी देवताओं की जो नाम परंपरा है, उनमें तिथियों के आधार पर भी देवी-देवताओं का नामकरण किया गया है. इसके लिए हर तिथि के अलग-अलग देवी-देवता भी निर्धारित हैं. जैसे एकादशी तिथि की देवी एकादशी माता हैं, दशमी तिथि की देवी दशा माता हैं तो इसी तरह छठवीं तिथि की देवी षष्ठी कहलाती हैं. 

बच्चों की रक्षा और पोषण करने वाली देवी
इन्हें, षष्ठी (संस्कृत) शष्ठी, सोष्ठी (बंगाली) या छठी (हिंदी) माता या देवी के तौर पर जाना जाता है. देवी की पूजा भारत के विभिन्न अलग-अलग क्षेत्रों में होती दिखती ही है, इसके साथ ही देवी की पड़ोसी देश नेपाल में भी मान्यता है. भारत में देवी को बच्चों की रक्षिका, पोषण की देवी माना जाता है तो वहीं नेपाल में भी श्रद्धालु ऐसा मानते हैं कि देवी शोष्ठी देवी बच्चों को बीमारी से बचाती हैं.  

इसके अलावा देवी वनस्पति और प्रजनन की देवी भी हैं और माना जाता है कि वे बच्चों को गर्भ में भी सुरक्षा प्रदान करती हैं साथ ही प्रसव के दौरान सहायता करती हैं. उन्हें अक्सर एक मातृसुलभ आकृति के रूप में चित्रित किया जाता है या फिर मूर्ति के रूप में उकेरा जाता है. देवी की सवारी बिल्ली, कहीं-कहीं हाथी तो कहीं कमल दिखाई जाती है. जहां वह सौम्य और मातृत्व भाव के साथ शिशुओं को स्तनपान करा रही होती हैं. 

कैसा होता है माता का स्वरूप
वे विभिन्न रूपों में प्रतीकात्मक रूप से पूजी जाती हैं, जिनमें मिट्टी का घड़ा, बरगद का पेड़ या उसका हिस्सा शामिल है, या किसी बड़े पुराने पेड़ के नीचे लाल पत्थर रखकर बनाया गया उनका स्थान ही उनका पूजा स्थल होता है. उनके पूजा के लिए समर्पित स्थानों को षष्ठी तला कहा जाता है. षष्ठी की पूजा हिंदू पंचांग के प्रत्येक चंद्र मास के छठे दिन के साथ-साथ बच्चे के जन्म के छठे दिन करने का विधान है. गर्भधारण की इच्छा रखने वाली महिलाएं और अपने बच्चों की रक्षा सुनिश्चित करने की इच्छुक माताएं षष्ठी की पूजा करती हैं तथा उनसे आशीर्वाद और सहायता की प्रार्थना करती हैं. देवी को खासतौर पर पूर्वी भारत में पूजा जाता है. 

नवजात बच्चों को खिलाने वाली बैमाता या योगमाया
इसके अलावा आप अपने आस-पास ध्यान दें. जिन घऱों में छोटे बच्चे होते हैं उनके बिस्तर के नीचे कोई लोहा, लोहे का चाकू या माचिस रख दिया जाता है. लोहे का सीधा संबंध देवी स्वरूप से है, जो नकारात्मक शक्तियों को दूर करता है. वहीं जब बच्चे नींद में हंस रहे होते हैं, या कई बार बिना किसी की मौजूदगी के भी कहीं एक ओर देखकर हंस रहे होते हैं तो कहा जाता है कि बच्चों को देवी माता खेल खिला रही हैं. इस देवी को कई स्थानों पर विमाता, बिमाता या बैमाता कहा जाता है. पुराणों में जिन्हें योगमाया कहा जाता है, लोकभाषा में वही बिमाता कहलाती हैं. यही देवी षष्ठी हैं, जो नवजात शिशुओं की देखरेख करती हैं.

भगवान सूर्य की बहन भी कहलाती हैं
देवी षष्ठी ही छठी मैया (छठी मईया) के नाम से भी जानी जाती हैं, देवी प्रकृति का छठा रूप और भगवान सूर्य की बहन को छठ पूजा के दौरान पूजा जाता है. देवी षष्ठी की जड़ें हिंदू लोक परंपराओं में खोजी जा सकती हैं. इस देवी के संदर्भ हिंदू ग्रंथों में 8वीं और 9वीं शताब्दी ईसा पूर्व से ही मिलते हैं, जिसमें वे बच्चों के साथ-साथ युद्ध के देवता और देवताओं के सेनापति कार्तिकेय से जुड़ी होती हैं. कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है. प्रारंभिक संदर्भों में उन्हें स्कंद की पालक मां माना गया है. जिन्हें कृत्तिकाएं कहा गया है और इनकी संख्या छह है. इन्होंने ही स्कंद का पालन किया था और इन छह कृत्तिकाओं को सम्मिलित रूप से भी छठी माता कहा जाता है. सभी छह कृत्तिकाएं देवी पार्वती की ही छह शक्तियों का स्वरूप हैं. 

छठ पूजा के दौरान इन्हीं देवियों की पूजा की जाती है, जिन्हें षष्ठी देवी का रूप माना जाता है. इस तरह आखिरी में भी छह कृत्तिकाओं का कनेक्शन भी छठवीं तिथि की देवी कात्यायनी से जुड़ जाता है. यही देवी बच्चों की दयालु रक्षक और उन्हें ममता प्रदान करने के रूप में देखी जाती है.

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