इंडिया टुडे कॉन्क्लेव साउथ के मंच पर सोमवार को पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, ओपी रावत और अशोक लवासा पहुंचे. चुनाव आयोग के इन तीनों पूर्व अधिकारियों ने वोट चोरी विवाद से लेकर वोटर लिस्ट में गड़बड़ी और बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन तक, हर विषय पर अपनी बेबाक राय रखी.
पूर्व चुनाव आयुक्तों ने बिहार वोटर लिस्ट रिवीजन के आइडिया को सही बताया, लेकिन इसकी टाइमिंग पर सवाल भी उठाए. चुनाव आयोग ने बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन किया और अब ये देशभर में कराए जाने की तैयारी है. इसे लेकर सवाल पर पूर्व चुनाव अधिकारियों ने कहा कि वोटर लिस्ट का समयबद्ध ऑडिट समझ आता है, लेकिन चुनाव से ठीक पहले ऐसा किया जाना नहीं समझ आता.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा कि लोगों से 11 दस्तावेजों (इसमें आधार शामिल नहीं है) में से कोई एक जमा करने के लिए कहा गया. इससे संसाधन विहीन मतदाताओं पर बोझ पड़ने का खतरा है. उन्होंने सवालिया अंदाज में कहा कि जब भीषण बाढ़ और भारी मॉनसूनी बारिश तबाही मचा रहे हैं, गरीब लोग आजीविका का जुगाड़ करेंगे या दस्तावेज लाने के लिए एक से दूसरे दफ्तर के चक्कर लगाएंगे?
ओपी रावत ने कहा कि एसआईआर 10, 15 या 20 साल बाद होता है. आखिरी बार साल 2003 में एसआईआर हुआ था. उन्होंने एसआईआर पर उठते सवालों को लेकर कहा कि चुनाव जब करीब होते हैं, तब काल्पनिक मुद्दे बढ़ जाते हैं. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा कि चुनाव आयोग पहले अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों में डुप्लिकेट प्रविष्टियों का पता लगाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करता था.
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उन्होंने कहा कि ईआरओ-नेट सिस्टम के जरिये फोटो और जनसांख्यिकीय विवरण का मिलान किया जाता था. डुप्लिकेट प्रविष्टि पर मतदाताओं के खिलाफ एक्शन लेने की बजाय उनको नोटिस भेजकर इस बात की जानकारी देने के लिए कहा जाता था कि वे कहां के वोटर रहना चाहते हैं. जिससे अन्य क्षेत्रों की वोटर लिस्ट से उनका हटाया जा सके.
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ओपी रावत ने कहा कि एसआईआर का उद्देश्य मतदाताओं को अपराधी बनाना नहीं, समस्या का समाधान करना था. वोटर लिस्ट में गड़बड़ी के आरोप पर पूर्व चुनाव आयुक्तों ने कहा कि यह कभी परफेक्ट नहीं रही है. गड़बड़ी की संभावनाएं रहती हैं. उन्हें दूर किया जाना चाहिए. उठते सवालों को एड्रेस किया जाना चाहिए.
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