बिहार में एसआईआर प्रक्रिया के खिलाफ शुरू हुई 'वोटर अधिकार यात्रा' का पहला दौर खत्म हो गया है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने 16 दिनों में 23 जिलों और 1300 किलोमीटर का सफर तय कर बीजेपी के खिलाफ 'वोट चोरी' वाला नैरेटिव गढ़ने का दांव चला. सासाराम से शुरू हुई यात्रा का सोमवार को पटना में समापन हो गया है. लेकिन क्या दो हफ्ते में कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया ब्लॉक का असली मकसद सफल होगा?
राहुल-तेजस्वी 17 अगस्त को सासाराम से निकले और पटना तक यात्रा की. उन्होंने 'वोट चोरी' को मुद्दा बनाया और इस यात्रा का उद्देश्य भी यही था. बिहार में दो लड़कों की जोड़ी इसमें काफी हद तक कामयाब रही, लेकिन क्या उनका असली मकसद बिहार की चुनावी जंग जीतना और सत्ता में वापसी करना है?
बिहार में कांग्रेस साढ़े तीन दशकों से सत्ता से बाहर है तो आरजेडी 20 सालों से अपने दम पर वापसी नहीं कर सकी है. ऐसे में राहुल-तेजस्वी ने विधानसभा चुनाव से पहले यात्रा निकालकर सियासी माहौल बनाने की कवायद की. यात्रा में हर जगह अच्छी-खासी भीड़ जुटी और पार्टी कार्यकर्ताओं से लेकर नेताओं तक में जोश दिखा, लेकिन क्या यह जोश बिहार की चुनावी जीत में तब्दील हो पाएगा?
'एटम बम' के बाद राहुल का 'हाइड्रोजन बम'
पटना में 'वोटर अधिकार यात्रा' के समापन के मौके पर आयोजित रैली को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा है कि 'वोट चोरी' के 'एटम बम' के बाद अब 'हाइड्रोजन बम' आने वाला है. हाइड्रोजन बम का असर एटम बम से सैकड़ों या हजारों गुना अधिक शक्तिशाली हो सकता है. महादेवपुरा में हमने 'वोट चोरी' का 'एटम बम' फोड़ा था. अब बीजेपी के लोग सुन लें, उससे भी बड़ा 'हाइड्रोजन बम' आने वाला है, जब यह फटेगा तो नरेंद्र मोदी देश को अपना चेहरा नहीं दिखा पाएंगे.
इसका मतलब साफ है कि 'वोट चोरी' पर राहुल गांधी पहले के खुलासे से कहीं ज्यादा बड़ा खुलासा करेंगे. यात्रा से बने सियासी माहौल को आगे भी बनाए रखने की कोशिश की जाएगी. राहुल गांधी ने अपनी यात्रा के दौरान आम लोगों से जुड़कर एक तरफ कांग्रेस में जान फूंकने की कोशिश की, तो दूसरी तरफ आम लोगों को यह समझाने की भी भरपूर कोशिश की कि उनकी यात्रा का मकसद यह है कि बिहार में एक भी वोट की चोरी न हो. ऐसे में राहुल गांधी बिहार के बचे हुए जिलों में दूसरी यात्रा की घोषणा कर सकते हैं.
यात्रा से एजेंडा सेट करते दिखे राहुल गांधी
राहुल गांधी ने 'वोटर अधिकार यात्रा' के दौरान पूरी तरह से देसी पॉलिटिक्स करते हुए नज़र आए. उन्होंने गांवों में रात्रि विश्राम किया, दलित बस्तियों में चाय पी, बिल्कुल अनजान लोगों से घुले-मिले और मोटरसाइकिल से यात्रा कर आम लोगों से कनेक्शन बनाते नज़र आए. राहुल गांधी की बाइक पर उनकी बहन सांसद प्रियंका गांधी भी सवार हुईं, जिसकी तस्वीर काफी वायरल हुई. हालांकि, प्रियंका गांधी थोड़े समय के लिए इस यात्रा में शामिल हुईं, लेकिन दो दिन की यात्रा से मिथिलांचल के बेल्ट को साधती हुई नज़र आईं.
'वोट चोरी' के मुद्दे तक राहुल गांधी और तेजस्वी ने अपनी यात्रा को सीमित नहीं रखा, बल्कि बिहार की सियासी फिज़ा को अपने पक्ष में बनाने के लिए कई अहम मुद्दे सेट करने का दांव चला. उन्होंने जाति जनगणना और आरक्षण का मुद्दा भी उठाया. राहुल यह संदेश देने की कोशिश करते नज़र आए कि उनके दबाव में मोदी सरकार ने जाति जनगणना करने का ऐलान तो कर दिया है, लेकिन वह इसे सही से नहीं करेगी. साथ ही उन्होंने ऐलान किया कि इंडिया ब्लॉक की सरकार बनने पर पचास प्रतिशत आरक्षण की सीमा को हटा देंगे. इस तरह सामाजिक न्याय का एजेंडा सेट कर राहुल गांधी ने दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यकों को साधने का दांव चला.
बिहार में कांग्रेस के हौसले हुए बुलंद
राहुल गांधी ने 'वोटर अधिकार यात्रा' के जरिए बिहार में कांग्रेस की 'बार्गेनिंग पावर' को बढ़ा दिया है. बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी ने जिस तरह ज़मीन पर उतरकर सियासी माहौल बनाते हुए नज़र आए, वैसा इससे पहले किसी अन्य राज्य में कांग्रेस की तरफ से होता नहीं दिखा है. कहा जा सकता है कि राहुल गांधी ने फ्रंट सीट पर बैठकर इस पूरी यात्रा को सफल बनाने का प्रयास किया, जबकि तेजस्वी यादव उनके साथ-साथ बैक सीट पर ही नज़र आए.
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि काफी समय बाद कांग्रेस बिहार की ज़मीन पर जीवंत नज़र आई है. बिहार में कांग्रेस के समर्थकों, उनके कैडर और नेताओं में एक नया जोश देखने को मिला है. हालाँकि, कांग्रेस के लिए यह फ़ायदा संगठन के स्तर पर है, न कि चुनावी स्तर पर. सत्ता से बाहर होने के चलते बिहार में कांग्रेस का संगठन लगभग खत्म सा हो गया था. ज़मीनी स्तर पर न तो कार्यकर्ता हैं और न ही मज़बूत नेता. राहुल गांधी की यात्रा से पार्टी के कार्यकर्ताओं को नई ऊर्जा मिली है, लेकिन यह ऊर्जा वोट में कितनी तब्दील होगी, यह नतीजों के बाद ही पता चलेगा.
कांग्रेस ने कैसे बनाया सियासी माहौल?
राहुल-तेजस्वी ने जिन 110 सीटों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपनी यात्रा से कवर किया है, उनमें से लगभग 80 सीटों पर एनडीए के घटक दलों का कब्ज़ा है. महागठबंधन के पास केवल 30 सीटें ही हैं. इस तरह, एनडीए के मज़बूत गढ़ वाली सीटों पर राहुल ने यात्रा निकालकर बीजेपी और जेडीयू के खिलाफ सियासी माहौल बनाने की कोशिश के साथ-साथ कांग्रेस के लिए ज़मीन तैयार की है.
कांग्रेस को सबसे ज़्यादा फ़ायदा हुआ है, लेकिन यह कहना तय नहीं है कि उन्हें वोट मिलेगा. यात्रा के रूट में 23 ज़िले कवर किए गए. 2020 के चुनाव में इनमें से कांग्रेस सिर्फ 9 सीटें जीती थीं, जबकि 16 सीटों पर पार्टी दूसरे नंबर पर रही थी. इन 110 सीटों पर महागठबंधन के मुक़ाबले एनडीए ज़्यादा मज़बूत है. ऐसे में राहुल के सामने इसी स्थिति को बदलने की चुनौती थी.
बिहार कांग्रेस के सह-प्रभारी सुशील पासी कहते हैं कि बिहार में 'वोट चोरी' के खिलाफ राहुल गांधी ने यात्रा निकालकर एक तरह से क्रांति का आगाज़ किया है, जिसकी गूंज अब पूरे देश में सुनाई दे रही है. चुनाव आयोग और बीजेपी का गठजोड़ देश के सामने उजागर हो गया है. राहुल गांधी की यात्रा से पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश आया है और चुनाव से पहले यह पार्टी के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है.
क्या कांग्रेस का खत्म होगा वनवास?
कांग्रेस बिहार की सत्ता से करीब 35 सालों से बाहर है. कांग्रेस बिहार में आरजेडी के सहारे सत्ता में वापसी की कोशिश में है, लेकिन आरजेडी भी 20 साल से सत्ता में अपने दम पर नहीं आ सकी है. 2020 में तेजस्वी की अगुवाई में महागठबंधन ने एनडीए को कांटे की टक्कर दी थी, लेकिन सत्ता में वापसी का सपना साकार नहीं हो सका.
पांच साल के बाद राहुल और तेजस्वी ने एक साथ मिलकर एनडीए के खिलाफ सियासी माहौल बनाने के लिए पूरी ताकत लगाई, लेकिन यात्रा के दौरान पीएम मोदी के लिए कहे गए अपशब्दों को बीजेपी ने मुद्दा बनाने का दांव चला. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि अगर राहुल गांधी को थोड़ी भी शर्म है तो मोदी जी और उनकी दिवंगत माँ के लिए कहे गए अपशब्दों पर माफ़ी मांगें.
नीतीश के दांव का कैसे करेंगे काउंटर
वहीं, बिहार में चुनाव से पहले तेजस्वी यादव ने मुफ्त वाली लुभावनी घोषणाओं का दांव चला, तो लगा कि वे ऐसा करने वाले बिहार की पहली पार्टी के नेता हैं. तब किसी को अनुमान नहीं था कि नीतीश कुमार के पास इतने तीर हैं कि अगर वह बेधना चाहें, तो शायद ही कोई उनके आगे टिके. इसके बाद नीतीश ने जैसे ही मुफ्त की योजनाओं की ओर कदम बढ़ाया, विपक्षी महागठबंधन का दांव फेल होने लगा.
नीतीश कुमार ने 125 यूनिट मुफ्त बिजली, 400 से 1100 रुपये की सामाजिक सुरक्षा पेंशन, 1 करोड़ लोगों को नौकरी-रोजगार, सवा करोड़ से ज़्यादा महिलाओं का जीविका दीदी के रूप में नीतीश से जुड़ना और 2.97 करोड़ परिवारों की एक-एक महिला को 10 हजार की आर्थिक मदद जैसे कामों से लोगों से सीधे मुखातिब हुए हैं.
नीतीश कुमार ने कल्याणकारी योजनाओं का ऐलान कर एनडीए को बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सियासी फ़िज़ा को अपने पक्ष में बनाए रखने का दांव चला. ऐसे में सवाल उठता है कि विपक्ष (महागठबंधन) कितना मज़बूत 'काउंटर-नैरेटिव' बना पाता है या नहीं. ऐसे में तेजस्वी यादव यही कहते हुए नज़र आए कि बिहार की मौजूदा सरकार नक़लची है. उनके पास कोई रोडमैप नहीं है और वे सिर्फ़ महागठबंधन की नक़ल कर रहे हैं. उनके पास कोई विज़न नहीं है. तेजस्वी उनसे आगे हैं और नीतीश सरकार पीछे-पीछे चल रही है. क्या जनता को डुप्लीकेट सीएम चाहिए या ओरिजिनल?
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