चुनावी राज्य बिहार (Bihar) में वोटर रिवीजन को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है. अब असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखी है और कहा है कि इस तरह से जल्दबाजी में वोटर रिवीजन नहीं होना चाहिए. इस पूरे मसले पर AIMIM के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने आजतक के साथ बातचीत की है.
उन्होंने कहा, "इंटेंसिव रिवीजन के दूरगामी प्रभाव होंगे. चुनाव आयोग ने किसी भी राजनीतिक पार्टी से बातचीत नहीं की. ये पूरी तरह से फेलियर होगा."
'आर्टिकल 14 का उल्लंघन...'
ओवैसी ने आगे कहा, "एक महीने में आठ करोड़ लोगों के नाम डालना है, आयोग का कहना है कि 4.96 करोड़ नाम वोटर लिस्ट में आ गए हैं. लेकिन अभी भी एक महीने में 2 करोड़ 80 लाख नाम कैसे एड करेंगे. बीएलओ को किसी तरह की कोई ट्रेनिंग नहीं दी गई है. 2024 के लोकसभा चुनाव में जिन्होंने वोट किया, उनके वोट का क्या होगा. आपने दो अलग-अलग क्लासेज बना दिया लेकिन कोई सही वजह नहीं बताया. यह पूरी तरह से आर्टिकल 14 का उल्लंघन है."
उन्होंने कहा कि जो वोटर 1 जून 1987 से पहले पैदा हुआ, उसको जन्म प्रमाणपत्र देना होगा. जो उसके बाद और दिसंबर 2004 के दौरान पैदा हुआ, उसको अपना और मां/पिता का सर्टिफिकेट देना पड़ेगा. इसके अलावा, जो दिसंबर 2004 के बाद पैदा हुआ, उसको अपना, मां और पिता का सर्टिफिकेट देना होगा.
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'लोगों की जिंदगी पर असर पडे़गा...'
AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, "चुनाव आयोग को ये बात तो मालूम होगी कि बिहार में बर्थ रजिस्ट्रेशन रेट 2004 में 11 प्वाइंट, 2005 में 16.9 था. कहां से लाएंगे? इसके अलावा, बीएलओ को बहुत ज्यादा पॉवर दे दी गई है. अगर वो दो या तीन बार किसी के घर जाते हैं और वो नहीं मिलता है, तो उसको अधिकारी है कि वो उस व्यक्ति को सस्पेक्टेड फॉरेन नेशनल्स बता सकता है. ऐसे में भारत का नागरिक वोट देने से महरूम हो जाएगा और वहीं सिटिजनशिप एक्ट में नोटिस चली जाने के बाद उसकी जिंदगी पर असर पड़ेगा."
उन्होंने आगे कहा कि अगर सिटिजनशिप एक्ट की बात की जा रही है, तो 2024 के चुनाव में वोट क्यों करने दिया गया. अगर लोकसभा चुनाव में कोई 25 हजार वोट से हारा, तो इस 2025 विधानसभा चुनाव में 25 हजार वोट कम हो जाने के बाद हमें अधिकार मिलना चाहिए कि पिछले चुनाव नतीजे पर सवाल उठाएं. अगर कोई घर शिफ्ट कर रहा है, तो बर्थ सर्टिफिकेट मांगा जा रहा है.
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ओवैसी ने कहा, "जब ये माना जा रहा है कि महाराष्ट्र में गलत नाम इलेक्टोरल लिस्ट में आ गए थे, तो इसका ये मतलब नहीं है कि आप एक ही महीने में सब कुछ करेंगे. आप ये काम दिल्ली में करिए, केंद्र शासित प्रदेश में करिए."
उन्होंने आगे कहा, "हमारा डर इस बुनियाद पर है कि चुनाव आयोग ने अपने प्रेस नोट में कहा कि ऐसा करने के पीछे पांच वजहें- अर्बनाइजेशन, माइग्रेशन, नॉन-रिपोर्टिंग ऑफ डेथ, वोटर्स इंक्लूजन और फॉरेन गैर-कानून इमिग्रेन्स हैं. तो क्या गैर-कानूनी इमिग्रेन्स 2024 में वोट डाले थे? ये सब बताने से चुनाव आयोग क्यों घबरा रहा है? सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन हो रहा है."