चीन ने बुधवार को दलाई लामा की उत्तराधिकार योजना को खारिज कर दिया. नए दलाई लामा का चुनाव कैसे होगा इस पर मौजूदा दलाई लामा के विचारों को दलाई लामा ने खारिज कर दिया है. चीन ने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी भावी उत्तराधिकारी को उसकी मंजूरी लेनी होगी. चीन के इस बयान ने चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के साथ तिब्बती बौद्ध धर्म के दशकों पुराने संघर्ष में एक नया अध्याय जोड़ दिया है?
तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने बुधवार को कहा था कि दलाई लामा की संस्था जारी रहेगी और केवल गादेन फोडरंग ट्रस्ट को ही भविष्य में किसी पुनर्जन्म को दलाई लामा के रूप में मान्यता देने का अधिकार होगा. गादेन फोडरंग ट्रस्ट की स्थापना दलाई लामा ने 2015 में की थी.
दलाई लामा के बयान से यह अटकलें समाप्त हो गईं कि उनकी मृत्यु के बाद उनका कोई उत्तराधिकारी होगा या नहीं.
इस रविवार को दलाई लामा का 90वां जन्मदिन था. इस मौके पर उनकी इस घोषणा ने बीजिंग के साथ दलाई लामा के तनाव को नई ऊंचाई दे दी.
दलाई लामा का परिचय
दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म के सर्वोच्च आध्यात्मिक नेता हैं. वर्तमान 14वें दलाई लामा तेंजिन ग्यात्सो का जन्म 1935 में हुआ था और वह 1950 से तिब्बत के निर्वासित नेता हैं. वे भारत के धर्मशाला में रहते हैं.
दलाई लामा तिब्बती बौद्धों के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शक हैं जो विश्व भर में बौद्ध धर्म के मूल्यों करुणा, शांति और अहिंसा को बढ़ावा देते हैं. उनकी शिक्षाएं और वैश्विक व्याख्यान बौद्ध दर्शन को लोकप्रिय बनाते हैं.
दलाई लामा तिब्बत की स्वायत्तता के प्रतीक हैं, उन्हें चीन अलगाववादी मानता है. वे तिब्बत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता के बजाय वास्तविक स्वायत्तता की मांग करते हैं. उनकी वैश्विक उपस्थिति और पश्चिमी देशों का समर्थन चीन के लिए चुनौती है.
दलाई लामा के उत्तराधिकार प्लान पर चीन ने क्या कहा?
चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने दलाई लामा की घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "दलाई लामा के पुनर्जन्म को धार्मिक परंपराओं, चीनी कानूनों के साथ-साथ धार्मिक रीति-रिवाजों और ऐतिहासिक परंपराओं (जैसे गोल्डन अर्न प्रणाली) का पालन करना होगा, और इसे चीन की केंद्रीय सरकार की मंजूरी लेनी होगी. चीन ने दलाई लामा को "राजनीतिक निर्वासित" और "अलगाववादी" करार देते हुए कहा कि तिब्बत और तिब्बती बौद्ध धर्म पर उसका नियंत्रण है.
बता दें कि 1959 में कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक माओत्से तुंग के नेतृत्व में चीनी सेना ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था. इसके बाद दलाई लामा तिब्बतियों के एक बड़े समूह के साथ भारत में शरण लेने आ गए. इस घटना ने दुनिया का ध्यान खींचा. इसके बाद से वह हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहते हैं.
दलाई लामा को शरण दिए जाने की वजह से चीन भारत से खफा रहता है. ये मुद्दा भारत-चीन के बीच विवाद का विषय है. अब उनके उत्तराधिकारी को तिब्बती स्वायत्तता के लिए संघर्ष को जारी रखना पड़ सकता है. लेकिन चीन इसका घोर विरोधी है.
माओ निंग ने कहा कि दलाई लामा और तिब्बती बौद्ध धर्म के दूसरे सबसे बड़े पुजारी पंचेन लामा के पुनर्जन्म के लिए 18वीं सदी के किंग राजवंश द्वारा शुरू की गई स्वर्ण कलश विधि प्रक्रिया की सदियों पुरानी परंपरा से गुजरना पड़ता है.
यहां पुनर्जन्म का आशय यह है कि एक मनुष्य को ही दलाई लामा घोषित किया जाएगा. पंचेन लामा का भी चयन इसी तरह किया जाएगा.
चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा कि वर्तमान 14वें दलाई लामा को उनके पूर्ववर्ती की मृत्यु के बाद पारंपरिक अनुष्ठानों के बाद मान्यता दी गई थी, लेकिन उनकी मान्यता तत्कालीन केंद्रीय सरकार द्वारा सीधे दी गई थी, जिससे उन्हें स्वर्ण कलश प्रक्रिया से छूट मिली हुई थी.
माओ निंग ने यह भी बताया कि कैसे 2007 में पारंपरिक समारोह को चीन के आधिकारिक नियमों में शामिल किया गया था, साथ ही इस प्रक्रिया में विदेशी व्यक्तियों और पार्टियों द्वारा हस्तक्षेप पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध लगाया गया था.
नई दिल्ली में चीन के राजदूत ने क्या कहा?
ये मुद्दा कितना अहम है ये इस बात से पता चलता है कि इस विषय पर चीनी दूतावास का बयान आया है. भारत में चीन के राजदूत जू फेइहोंग ने कहा कि जीवित बुद्ध के पुनर्जन्म की प्रथा 700 से अधिक वर्षों से जारी है और इसने कठोर धार्मिक अनुष्ठानों और ऐतिहासिक परंपराओं का निर्माण किया है.
उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, "13वें दलाई लामा के निधन के बाद 14वें दलाई लामा की खोज धार्मिक अनुष्ठानों और ऐतिहासिक परंपराओं के अनुसार की गई थी, और तत्कालीन चीन सरकार की मंजूरी के साथ लॉटरी से छूट दिए जाने के बाद उन्हें सिंहासन पर बैठाया गया था."
जू फेइहोंग ने कहा कि चीन की सरकार धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता की नीति को लागू करती है.
उन्होंने कहा, "यह कानून के अनुसार जीवित बुद्ध के पुनर्जन्म की परंपरा की रक्षा करता है. दलाई लामा के पुनर्जन्म में चीन में खोज और पहचान, स्वर्ण कलश से लॉटरी निकालना और केंद्रीय चीनी सरकार की मंजूरी जैसी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए."
क्या है जीवित बुद्ध की परंपरा?
जीवित बुद्ध की परंपरा तिब्बती बौद्ध धर्म में अवतार की मान्यता पर आधारित है, जिसमें दलाई लामा और पंचेन लामा जैसे आध्यात्मिक नेता बोधिसत्वों के अवतार माने जाते हैं. उनकी मृत्यु के बाद वरिष्ठ लामाओं द्वारा रहस्यमयी संकेतों, स्वप्नों और परीक्षणों के माध्यम से उनके अवतार की खोज की जाती है. यह परंपरा तिब्बती संस्कृति और धर्म में आध्यात्मिक निरंतरता और नेतृत्व को बनाए रखती है.
अब तक दलाई लामा का चयन कैसे होता आया है?
दलाई लामा की मृत्यु के बाद वरिष्ठ लामाओं और तिब्बती बौद्ध नेताओं की एक खोज समिति बनती है. वे पवित्र झील ल्हामो ला-त्सो में दर्शन, स्वप्न, ज्योतिषीय संकेत और अन्य रहस्यमयी संकेतों, जैसे- धुआं, बादल के आधार पर संभावित अवतार की खोज करते हैं.
इस प्रक्रिया में संभावित बच्चों आमतौर पर 2-5 वर्ष की आयु वाले बच्चों की पहचान की जाती है. इन बच्चों का परीक्षण होता है जिसमें वे पिछले दलाई लामा की वस्तुएं जैसे छड़ी, चश्मा, किताबें को पहचानते हैं. इस दौरान बच्चे को असाधारण आध्यात्मिक गुण दिखाने होते हैं.
परंपरागत रूप से पंचेन लामा दलाई लामा की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. दोनों एक-दूसरे की पहचान में सहायता करते हैं.
चयनित बच्चे को ल्हासा (अब निर्वासन में धर्मशाला) ले जाया जाता है, जहां उसे बौद्ध दर्शन, तर्कशास्त्र, और तिब्बती संस्कृति की गहन शिक्षा दी जाती है.
बता दें कि वर्तमान 14वें दलाई लामा तेंजिन ग्यात्सो को 1937 में 2 वर्ष की आयु में इन्ही परंपराओं के आधार पर दलाई लामा चुना गया था. यह प्रक्रिया आध्यात्मिक निरंतरता और तिब्बती पहचान को बनाए रखती है.
चीन दलाई लामा के चयन में क्यों दखल देना चाहता है?
चीन दलाई लामा के चयन में दखल इसलिए देना चाहता है क्योंकि यह उसके लिए राजनीतिक और रणनीतिक मसला है. चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया है और तिब्बत ही बौद्ध धर्म का केंद्र है.
वहीं मौजूदा दलाई लामा की राजनीतिक विचारधारा चीन से अलग है क्योंकि वे तिब्बत के लिए स्वायत्तता की मांग करते हैं. अपनी भड़ास निकालने के लिए चीन दलाई लामा को "अलगाववादी" मानता है.
दलाई लामा के उत्तराधिकारी को नियंत्रित करके चीन तिब्बत में अपनी पकड़ मजबूत करना और तिब्बती बौद्ध धर्म पर प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है. चीन स्वर्ण कलश की प्रणाली और ऐतिहासिक दावों का हवाला देकर चयन प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना चाहता है. ताकि वो अपने पसंद का दलाई लामा पहुंचे. अगर चीन एक वफादार दलाई लामा की नियुक्ति कर देता है तो तिब्बती आंदोलन कमजोर हो सकता है.
इसका एक और मकसद तिब्बत के मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण को रोकना है. मौजूदा दलाई लामा अपने यूरोपीय संपर्कों और अमेरिकी आउटरिच से यह काम बखूबी कर रहा है.
साथ ही यह भारत और पश्चिमी देशों के प्रभाव को कम करने की रणनीति है. भारत में दलाई लामा की उपस्थिति देश की धार्मिक सहिष्णुता की छवि को मजबूत करती है. धर्मशाला में निर्वासित तिब्बती सरकार का रहना भारत को तिब्बती स्वायत्तता आंदोलन का केंद्र बनाता है. भारत के लिए ये एक तरह से चीन पर लगाम लगाने की रणनीति है. दलाई लामा ने कहा है कि तिब्बती बौद्धों के अगले धर्मगुरु का अवतार भारत में हो सकता है, दलाई लामा का ये बयान चीन के दखल को चुनौती देता है और भारत को इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बनाता है. इसलिए चीन नए दलाई लामा के चुनाव में अपनी अहम भूमिका चाहता है.